नहाय खाए के साथ चैती छठ का आज से शुभारंभ

नहाय खाए के साथ चैती छठ का आज से शुभारंभ
– महानंदा नदी की गंदगी से छठ व्रती है परेशान, शासन प्रशासन को नहीं है इसका ध्यान
अशोक झा, सिलीगुड़ी: छठ का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार कार्तिक माह में तो दूसरी बार चैत्र माह में। इस माह मनाए जाने वाले छठ की महत्ता कहीं अधिक है। यह सबसे कठिन व्रत में एक है। सिलीगुड़ी में महानंदा नदी को यहां का लाइफ लाइन कहा जाता है। लेकिन अब यह नदी गंदगी के कारण महानंदा महागंदा होती जा रही है। इसके घाट पर छठ व्रत बड़ी संख्या में लोग करते है। आश्चर्य की बात है कि इसको लेकर शासन ओर प्रशासन को इसकी कोई फिक्र नहीं है। कहते है कि चैत्र नवरात्रि के मध्य में यह छठ पूजा मनायी जाती है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है। मंगलवार को नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत हो रही है। इस व्रत के पहले दिन ही नदियों में स्नान करके छठव्रती चूल्हे पर आम की लकड़ी से अरवा चावल का भात, कद्दु की सब्जी व चना दाल बनाएंगे। उसके बाद दूसरे दिन यानी खरना 2 अप्रैल, बुधवार को संध्या समय होगा। इस दिन छठव्रती दिनभर निर्जला उपवास रखकर सूर्यास्त के बाद स्नान-ध्यान करके दूध-चावल की खीर बनाएंगी। व्रती अपनी परंपरा के अनुसार कहीं केवल चावल तो कहीं चावल और दूध से बनी खीर का प्रसाद आम की लकड़ी से प्रज्वलित अग्नि पर तैयार करेंगी। इसके पहले अग्निदेव की पूजा की जाती है और छठी मईया का आह्वान किया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती का 36 घंटे का कठिन व्रत आरंभ होगा। तीसरा दिन: अनुष्ठान के तीसरे दिन, 3 अप्रैल को, छठव्रती निर्जला व्रत रखकर संध्या समय में अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करेंगी। चौथा दिन: चौथे दिन, 4 अप्रैल की सुबह जलाशयों, तालाबों और नदियों में उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद छठ महापर्व का समापन होगा। जानें व्रत पारण की प्रक्रिया:
ज्योतिषाचार्य डॉ एन के बेरा के अनुसार, उगते हुए भगवान सूर्य को दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद उनकी पूजा का आयोजन किया जाता है. छठ व्रति को पूर्णाहुति के समय ब्राह्मणों को भोजन, अन्न और फल का दान देकर व्रत का पारण करना चाहिए. इससे छठ व्रति को विशेष लाभ प्राप्त होता है.
चैती छठ पूजा का महत्व: चैती छठ एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए जाना जाता है. इसका धार्मिक महत्व गहरा है और इसे सूर्य की उपासना, प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और आत्मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है. महिलाएं इस अवसर पर निर्जला उपवास रखती हैं और पवित्र नदियों के घाटों पर स्नान-ध्यान करके सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। छठ पूजा में निष्ठा, संयम और तप का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार में खुशहाली प्राप्त होती है।