चैती छठ: आज व्रतियों द्वारा दिया जायेगा अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य
उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे जुदा है जीवन का चक्र

अशोक झा, सिलीगुड़ी: लोक आस्था के महापर्व छठ के तीसरे दिन यानी व्रती अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसके एक दिन पहले बुधवार को खरना करके 36 घंटे के व्रत की शुरुआत हो गई है। छठ के चारों दिन का अलग-अलग महत्व होता हैं। छठ के तीसरे दिन यानी आज शाम को व्रती घाटों पर आकर कमर तक पानी में उतर कर सूर्य को संध्या अर्घ्य देंगे। आज सूर्यास्त का समय शाम को 5 बजकर 48 मिनट पर होगा। इसके बाद श्रद्धालु कल यानी शुक्रवार को सप्तमी पर उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत खोलेंगे और कल सुबह 6 बजकर 48 मिनट पर सूर्योदय होगा। सभी लोग पर्व में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और छठी मैया की पूजा कर रहे हैं। छठ पूजा पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व : सूर्यदेव को जीवनदाता माना जाता है। धरती पर सूर्य और नदियों के बिना जीवन संभव नहीं है। यही कारण है कि किसी नदी या घाट पर खड़े होकर ही सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। नदी या घाट पर जाने की व्यवस्था न होने पर किसी संग्रह किए हुए जल में भी खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जल का स्पर्श जरूरी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहों का राजा होता है। सूर्य को भाग्य, सफलता और निरोगी काया से जोड़कर देखा जाता है इसलिए जिस तरह सूर्योदय होने से प्रकाश होता है, उसी तरह जीवन के प्रकाशमय होने की कामना की जाती है।छठ पूजा में डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने का महत्व: जीवन में संतुलन और ऊर्जा के लिए सूर्य को अर्घ्य देना महत्वपूर्ण माना जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है जीवन के उतार-चढ़ाव को समझना। जैसे सूर्य हर दिन डूबता है और फिर उगता है, वैसे ही जीवन में भी सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं। इसके साथ ही अगर इसे जीवन के एक अन्य पहलु से जोड़कर देखा जाए, तो सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि हर अंत एक नई शुरुआत लेकर आता है। वरिष्ठजनों को नमन करने का प्रतीक है डूबते सूर्य को अर्ध्य देना: डूबते हुए सूर्य को जीवनकाल की जमा-पूंजी यानी अनुभव से जोड़कर देखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि वरिष्ठजन जो प्रकृति चक्र से गुजरते हुए जीवन के हर चरण को देख चुके हैं। वे धीरे-धीरे अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन यह उनका अंत नहीं है बल्कि एक नए जीवन, एक नए सवेरे का आरंभ है। संघर्षों से गुजरते हुए जीवन जीते चले जाना भी एक उपलब्धि है इसलिए ढलता सूर्य यानी हमारे वरिष्ठजन भी नमन के अधिकारी हैं।छठ का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार कार्तिक माह में तो दूसरी बार चैत्र माह में। इस माह मनाए जाने वाले छठ की महत्ता कहीं अधिक है। यह सबसे कठिन व्रत में एक है। चैत्र नवरात्रि के मध्य में यह छठ पूजा मनायी जाती है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है।