आज महागौरी की हो रही है पूजा, कन्या पूजन के साथ होगा मनोकामना पूर्ण

 

अशोक झा, सिलीगुड़ी : माता महागौरी का वाहन बैल और उनका शस्त्र त्रिशूल है। परम कृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से विश्व में विख्यात हुईं। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं। अधिकतर घरों में अष्टमी की पूजा होती है। कई लोग अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं। जानें कब करें हवन व कन्या पूजन: पंडित अभय झा के अनुसार,अष्टमी पर पूरे दिन शुभ समय है, लेकिन 10.30 से 12 बजे तक विशेष पूजन मुहूर्त है। पूजन व कन्या पूजन दोनों श्रेष्ठ रहेगा। पंडित झा अनुसार, पांच अप्रैल को सूर्योदनी अष्टमी तिथि शुभ योग में पुनर्वसु नक्षत्र में विद्यमान है। यह शाम 7:29 बजे तक है। अष्टमी, हवन व कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त: नवरात्रि की अष्टमी पर कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने से मनोकामना पूरी होती है। शिव जी के दर्शन और कृपा से इनका शरीर अत्यंत गौर हो गया था. तब से इनका नाम गौरी हो गया।माता गौरी का उल्लेख रामायण में भी आता है और माता सीता ने भी श्रीराम की प्राप्ति के लिए इन्हीं की पूजा की थी। माता गौरी श्वेत वर्ण की हैं और श्वेत रंग में इनका ध्यान अत्यंत लाभकारी है। विवाह संबंधी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक है। ज्योतिष में माता गौरी का संबंध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है। आज माता महागौरी का दिन है। माता महागौरी की पूजन विधि: इस दिन पूजा पीले वस्त्र धारण करके आरंभ करें। उसके बाद मां के सामने घी का दीपक जलाएं और फिर ध्यान लगाएं। पूजा में माता को सफेद या पीले फूल अर्पित करें। उसके बाद उनके मंत्रों का जाप करें. अगर माता महागौरी की पूजा मध्यरात्रि में की जाए तो इसके परिणाम ज्यादा शुभ होंगे। माता महागौरी की पूजा की विशेष बातें: – मां की उपासना सफेद वस्त्र धारण करके ही करें। मां को सफेद फूल और सफेद मिठाई अर्पित करें। और माता को इत्र भी अर्पित करें। माता की पूजा इस तरह करने से मनचाहा विवाह हो जाता है। अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन की परंपरा: नवरात्र केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है। ये नारी शक्ति और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है। इसलिए, नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा है। हालांकि, नवरात्र में हर दिन कन्याओं के पूजन की परंपरा है। कन्या पूजन में 2 से 11 वर्ष की कन्या के पूजन का विधान है। अलग अलग उम्र की कन्या देवी के अलग-अलग रूप को बताती है।

Back to top button