जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं, समझे और दूसरे को समझाएं
श्री रामनवमी: श्रीराम का जीवन सामाजिक समरसता का अनुकरणीय पाथेय

अशोक झा, कोलकाता: जिस भगवान श्रीराम के आदर्श की दुनिया दुहाई देती है आज उन्हीं के जन्मदिन रामनवमी को मनाने के लिए हमें संगीन के साए से गुजरना पड़ेगा। आश्चर्य की बात है कि बंगाल सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर कर दिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी समुदाय के लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की है। राज्य सरकार ने रामनवमी के लिए सुरक्षा कड़ी कर संवेदनशील क्षेत्रों में 29 आईपीएस अफसरों को तैनात किया है। साथ ही कोलकाता में पांच हजार पुलिसकर्मी तैनात करने का भी निर्देश दिया गया है। रामनवमी जुलूसों की तस्वीरें लेने और वीडियो बनाने का भी फैसला किया है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, रामनवमी की आड़ में अशांति फैलाने की साजिश की खुफिया रिपोर्ट मिलने पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। इसमें कोलकाता, मुर्शिदाबाद, हावड़ा, पश्चिमी मेदिनीपुर, उत्तर-दक्षिण 24 परगना, अलीपुरद्वार, कूचबिहार आदि में अतिरिक्त पुलिस बल व रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती की गई है। रविवार को रामनवमी पर राज्य में इस बार दो हजार रैलियों का ऐलान हुआ है। भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने डेढ़ करोड़ हिंदुओं के घरों से निकलने का दावा किया है। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए कंट्रोल रूम बनाया गया है। रैलियों पर ड्रोन से निगाह रखने की तैयारी है।दो बार हो चुकी हिंसा: राज्य में पिछले 2 सालों में रामनवमी जुलूस में हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं। 2023 में हुगली और हावड़ा में जुलूस के दौरान पत्थरबाजी की घटना के बाद तीन लोगों की मौत हो गई थी।सियासत भी तेज: रामनवमी को लेकर बंगाल में सियासत भी तेज हो गई है। शुभेंदु ने नंदीग्राम में अयोध्या के तर्ज पर राममंदिर बनाने का ऐलान किया है। इसकी आधारशिला रामनवमी पर रखेंगे। भाजपा ने चेतावनी दी कि यदि रैलियों पर हमले हुए तो विरोध करेंगे। इस सब के बीच सिलीगुड़ी समेत उत्तर बंगाल में भव्य रामनवमी शोभायात्रा निकालने की तैयारी की गई है। विहिप के राष्ट्रीय महासचिव सिलीगुड़ी पहुंचे हुए है। सांसद और विधायक समेत बड़ी संख्या में वनवासी भी शोभायात्रा में उपस्थित रहेंगे। बीएचपी,भाजपा समेत सैकड़ों सामाजिक संगठन इस पर्व में हिस्सा लेकर अपने एकता का परिचय देने वाली है। पुलिस प्रशासन लगातार सुरक्षा के व्यापक इंतजाम में है। वनवासी राम का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक समरसता का अनुकरणीय पाथेय है। श्रीराम ने वनगमन के समय प्रत्येक कदम पर समाज के अंतिम व्यक्ति को गले लगाया। केवट के बारे में हम सभी ने सुना ही है, कि कैसे भगवान राम ने उनको गले लगाकर समाज को यह संदेश दिया कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर एक ही जीव आत्मा है। बाहर भले ही अलग दिखते हों, लेकिन अंदर से सब एक हैं। यहां जाति का कोई भेद नहीं था। वर्तमान में जिस केवट समाज को वंचित समुदाय की श्रेणी में शामिल किया जाता है, भगवान राम ने उनको गले लगाकर सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है। सामाजिक समरसता के भाव को नष्ट करने वाली जो बुराई आज दिखाई दे रही है, वह पुरातन समय में नहीं थी। समाज में विभाजन की रेखा खींचने वाले स्वार्थी व्यक्तियों ने भेदभाव को जन्म दिया है। वर्तमान में हम स्पष्ट तौर पर देख रहे हैं कि समाज को कमजोर करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है, जिसके कारण जहां एक ओर समाज की शक्ति तो कमजोर हो रही है, वहीं देश भी कमजोर हो रहा है। वर्तमान में राम राज्य की संकल्पना को साकार करने की बात तो कही जाती है, लेकिन उसके लिए सकारात्मक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए रामायण हम सभी को उचित मार्ग दिखा सकती है।यह भी सर्वविदित है कि राम वन गमन के दौरान भगवान राम ने निषाद राज को भी गले लगाया, केवट को भी पूरा सम्मान दिया। इतना ही नही भगवान राम ने उन सभी को अपना अंग माना जो आज समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। इसका यही तात्पर्य है कि भारत में कभी भी जातिगत आधार पर समाज का विभाजन नहीं था। पूरा समाज एक शरीर की ही तरह था। जैसे शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होता है, तब पूरा शरीर अस्वस्थ हो जाता था। इसी प्रकार समाज की भी अवधारणा है, समाज का कोई भी हिस्सा वंचित हो जाए तो सामाजिक एकता की धारणा समाप्त होने लगती है। हमारे देश में जाति आधारित राजनीति के कारण ही समाज में विभाजन के बीजों का अंकुरण किया गया। जो आज एकता की मर्यादाओं को तार-तार कर रहा है। भगवान राम ने अपने वनवास काल में समाज को एकता के सूत्र में पिरोने का काम पूरे कौशल के साथ किया। समाज की संग्रहित शक्ति के कारण ही भगवान राम ने आसुरी प्रवृति पर प्रहार किया। समाज को निर्भयता के साथ जीने का मार्ग प्रशस्त किया। इससे यही शिक्षा मिलती है समाज जब एक धारा के साथ प्रवाहित होता है तो कितनी भी बड़ी बुराई हो, उसे नत मस्तक होना ही पड़ता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो संगठन में ही शक्ति है। इससे यह संदेश मिलता है कि हम समाज के साथ कदम मिलाकर नहीं चलेंगे तो हम किसी न किसी रुप में कमजोर होते चले जाएंगे और हमें कोई न कोई दबाता ही चला जाएगा। सम्पूर्ण समाज हमारा अपना परिवार है। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। जब इस प्रकार का भाव बढ़ेगा तो स्वाभाविक रुप से हमें किसी भी व्यक्ति से कोई खतरा भी नहीं होगा। आज समाज में जिस प्रकार के खतरे बढ़ते जा रहे हैं, उसका अधिकांश कारण यही है कि समाज का हिस्सा बनने से बहुत दूर हो रहे हैं। अपने जीवन को केवल भाग दौड़ तक सीमित कर दिया है। यह सच है कि व्यक्ति ही व्यक्ति के काम आता है। यही सांस्कृतिक भारत की अवधारणा है।सत्य, न्याय एवं सदाचार के प्रतीक हैं भगवान श्रीराम: पूरे विश्व में भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रुप में पहचाना जाता है, जब हम भारत को राष्ट्र बोलते हैं, तब हमें इस बात का बोध होना ही चाहिए कि राष्ट्र आखिर होता क्या है? हम इसका अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि राष्ट्र की एक संस्कृति होती है, एक साहित्यिक अवधारणा होती है, एक आचार विचार होता है, एक जैसी परंपराएं होती हैं। भगवान राम के जीवन में इन सभी का साक्षात दर्शन होता है, इसलिए कहा जा सकता है कि राम जी केवल वर्ग विशेष के न होकर सम्पूर्ण विश्व के हैं। उनके आदर्श हम सभी के लिए हैं। हमें राम जी के जीवन से प्रेरणा लेकर ही अपने जीवन को उत्सर्ग के मार्ग पर ले जाने का उपक्रम करना चाहिए। इस लेख का तात्पर्य यही है कि भगवान श्रीराम का जीवन हमारे सामाजिक जीवन के उत्थान के लिये अत्यंत ही प्रासंगिक इसलिए भी है क्योंकि वर्तमान में हम देख रहे हैं कि कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्व अपना हित साधने के लिये समाज में फूट पैदा करने का प्रयास करते हैं। समाज की फूट का दुष्परिणाम हमारे देश ने भोगा है। भारत इसी फूट के कारण ही वर्षों तक गुलाम बना। आज भी देश में लगभग वैसी ही स्थिति है। जो काम पहले अंग्रेज करते थे, वह काम आज राजनीतिक दल कर रहे हैं। हमें आज पुनः सामाजिक एकता के प्रयासों को गति प्रदान करने होगी, तभी हमारा देश शक्तिशाली होगा।