सुनियोजित हिंसा के बाद बंगाल की घटना को लेकर सबकी नजर राज्यपाल पर

कोर्ट में राज्य सरकार की रिपोर्ट चौंकाने वाले, विहिप की मांग हिंदुओं की सुरक्षा के लिए राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन

अशोक झा, कोलकाता: बंगाल इन दिनों बांग्लादेश बनने की राह पर है। बंगाल का माहौल गरम है। हालांकि, बीएसएफ ने मोर्चा संभाल लिया है। अब जमीनी हकीकत का पता लगाने के लिए पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस मुर्शिदाबाद का दौरा किया है। मु्ख्यमंत्री ममता की गुजारिश को दरकिनार कर गवर्नर बोस मुर्शिदाबाद दौरे पर गए हैं। यहां वह जमीनी स्थिति का आकलन किया। वह मुर्शिदाबाद में लॉ एंड ऑर्डर का हाल देखा। पीड़ितों से मिलें। उनकी बातें सुनें और हकीकत में क्या हुआ, अपनी आंखों से देखा। मुर्शिदाबाद की आंखो-देखी पर एक रिपोर्ट तैयार करेंगे। अगर उनकी रिपोर्ट में कानून-व्यवस्था में गंभीर खामियां पाई जाती हैं तो क्या होगा? क्या गवर्नर की खराब रिपोर्ट से ममता सरकार गिर सकती है? आखिर राज्यपाल के अधिकार क्या-क्या होते हैं? दरअसल, मुर्शिदाबाद 8 अप्रैल से ही हिंसा की आग में जल रहा है। 11 अप्रैल को तो वक्फ कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और भी हिंसक हो गया। उस हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। मुर्शिदाबाद के सुती, धुलिया, समरेसरगंज और जंगीपुर जैसे इलाकों में जमकर हिंसा हुई। इस दौरान तोड़फोड़, आगजनी और पथराव देखने को मिले। भाजपा का दावा है कि वक्फ पर हिंसा की वजह से करीब 500 हिंदू परिवार पलायन को मजबूर हुए हैं और मालदा में शरण लेकर रह रहे हैं। भाजपा ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। वहीं, कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर मुर्शिदाबाद में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती है।क्यों टेंशन में ममता सरकार?:
हालांकि, अब मुर्शिदाबाद में तनाव कम होने लगा है। यही वजह है कि राज्यपाल बोस हालात का जायजा लेने के लिए मुर्शिदाबाद पहुंचे थे। इस दौरे से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनसे कुछ दिन इंतजार करने की अपील की थी मगर राज्यपाल ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने का मन बना लिया था। गवर्नर बोस मुर्शिदाबाद में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर स्थिति का आकलन किया। आखों-देखी पर केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे। अगर उनकी रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल रही है, तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र को राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं। मुर्शिदाबाद में किस तरह हिंसा हुई, यह देखा जा सकता है।
क्या हैं राज्यपाल के अधिकार : किसी राज्य के राज्यपाल को भारत के संविधान ने काफी शक्तियां दी हैं। राज्यपाल के पास तो इतने अधिकार और पावर हैं कि सरकारें तक गिर सकती हैं। चलिए मुर्शिदाबाद कांड के बहाने इसे विस्तार से जानते हैं।
रिपोर्ट भेजने का अधिकार (अनुच्छेद 356): अगर राज्यपाल को लगता है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है या कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई है तो वे केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज सकते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकती है। इसके बाद राज्य सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है और विधानसभा को निलंबित या भंग किया जा सकता है।
राज्य के लॉ एंड ऑर्डर पर निगरानी: गवर्नर को राज्य की कानून-व्यवस्था पर नजर रखने और केंद्र को सूचित करने का पूरा अधिकार है। मुर्शिदाबाद हिंसा जैसे मामलों में अगर गवर्नर की रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताएं अथवा खामियां उजागर होती हैं तो यह केंद्र के लिए राज्य में दखल का आधार बन सकता है।विशेष परिस्थितियों में दखल: यह तो सबको पता है कि किसी भी राज्य में राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। गवर्नर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ही काम करते हैं। अगर गवर्नर को लगता है कि राज्य सरकार संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रही, तो वे सेंटर यानी केंद्र को कार्रवाई की सलाह दे सकते हैं।उन्होंने हिंसा पीड़ितों को आश्वासन दिया कि उनकी शिकायतों के समाधान के लिए सक्रिय कार्रवाई की जाएगी।पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने वैष्णबनगर के परलालपुर हाईस्कूल स्थित शरणार्थी शिविर में शरण लिए बच्चों, महिलाओं और पुरुषों से बात की। उन्होंने शरण लिए लोगों से मुलाकात के बाद कहा, ”मैंने यहां शिविर में रह रहे परिवार के सदस्यों से मुलाकात की. मैंने उनकी शिकायतें सुनीं और उनकी भावनाओं को समझा। राज्यपाल ने पीड़ित परिवारों को भरोसा दिलाया कि दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। विस्थापित लोग मूल रूप से हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद जिले के रहने वाले हैं, जो सुरक्षा की तलाश में पड़ोसी मालदा जिले में आए हैं। तृणमूल कांग्रेस की मुर्शिदाबाद इकाई ने सांसद यूसुफ पठान से हिंसा प्रभावित जिले का दौरा करने को कहा। जिला तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व पिछले सप्ताह सांप्रदायिक झड़पों के दौरान बहरामपुर के सांसद के मुर्शिदाबाद न जाने से नाखुश है।विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने कहा है कि वह शनिवार (19 अप्रैल) को देशव्यापी प्रदर्शन कर मुर्शिदाबाद जिले में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करेगी। वीएचपी ने कहा के अनुसार ये घटनाएं आतंकवादी कृत्य के बराबर है और इसलिए इनकी जांच एनआईए को सौंपी जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुर्शिदाबाद में हाल में हुए सांप्रदायिक हिंसा को पूर्व नियोजित करार दिया था. उन्होंने बीएसएफ के एक वर्ग, गृह मंत्रालय के तहत आने वाली केंद्रीय एजेंसियों और बीजेपी पर कथित तौर पर बांग्लादेश से सीमा पार घुसपैठ कराकर तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया था।मुर्शिदाबाद हिंसा मामले में अब तक कुल 315 गिरफ्तारियां की गई हैं, जिनमें दो नाबालिग भी शामिल हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक विशेष खंडपीठ के आदेश के तहत तैयार अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है।राज्य के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) जावेद शमीम के अनुसार हिंसा भड़काने के लिए जिम्मेदार अन्य लोगों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने के प्रयास जारी है। पोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि दो नाबालिगों को छोड़कर गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को आज तक जमानत पर रिहा नहीं किया गया है। पुलिस ने अब तक गलत सूचना और अफवाह फैलाने के लिए कुल 1,257 यूआरएल (यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर) को ब्लॉक किया है । रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा 8 अप्रैल 2025 को रघुनाथगंज थाने के अंतर्गत पीडब्ल्यूडी मैदान में वक्फ कानून के खिलाफ एक आंदोलन से शुरू हुई थी। उस दोपहर अचानक भीड़ बेकाबू हो गई और सरकारी तथा सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने लगी और पुलिसकर्मियों पर हमला किया गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपद्रवियों के पास घातक हथियार भी थे और उन्होंने ड्यूटी पर मौजूद पुलिसकर्मियों से हथियार और गोला-बारूद भी छीन लिए. पुलिस ने बताया है कि जिला खुफिया शाखा से सूचना मिली थी कि 11 अप्रैल को रघुनाथगंज थाना अंतर्गत उमरपुर, सुती थाना अंतर्गत सजुर मोड़ और समसेरगंज थाना अंतर्गत पुराने डुकबंगला मोड़ में जुमे की नमाज के बाद कुछ स्थानीय लोगों की ओर से आंदोलन की आशंका है। रिपोर्ट में स्थानीय लोगों की संलिप्तता की ओर इशारा करने वाली यह बात काफी हद तक राज्य सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उन दावों को खारिज करती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुर्शिदाबाद जिले के उन इलाकों में पिछले लगभग पूरे सप्ताह हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे बाहरी लोग शामिल थे। साथ ही यह भी सवाल उठाता है कि क्या जिला खुफिया शाखा से मिली सूचनाओं को हल्के में लिया गया था। क्या गिर जाएगी ममता सरकार? अब सवाल है कि क्या गवर्नर की रिपोर्ट पर क्या सच में ममता सरकार गिर सकती है? सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो यह इतना आसान नहीं लग रहा। किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है. इसके लिए कई शर्तों का पूरा होना जरूरी है। जैसे राज्यपाल की रिपोर्ट में यह स्पष्ट होना चाहिए कि राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया है। केंद्र सरकार को इस रिपोर्ट को संसद में पेश करना होगा. फिर संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलनी होगी।।सुप्रीम कोर्ट भी इस प्रक्रिया की समीक्षा कर सकता है। ऐसा एस. आर. बोम्मई बनाम भारत सरकार (1994) मामले में तय हुआ था। यही वजह है कि अब सबकी नजर उस रिपोर्ट पर है, जो गवर्नर तैयार करेंगे।

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