ईस्टर संडे प्रभु यीशु के उनके पुनरुत्थान और आशा का प्रतीक
उत्साह और परंपरा के साथ एक दूसरे को दिया जा रहा उपहार

अशोक झा, सिलीगुड़ी: ईस्टर संडे एक ईसाई का महत्वपूर्ण पर्व है जो प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के जश्न का प्रतीक है। ये पर्व एक नई आशा और नए जीवन का संदेश देता है। इस दिन चर्चों में विशेष सेवाएं आयोजित की जाती हैं। गुड फ्राइडे को ईसा मसीह के कैल्वरी पर्वत पर क्रूस पर चढ़ाए जाने की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन को ‘गुड’ कहे जाने का कारण यह है कि मसीह ने मानवता के पापों को धोने के लिए स्वयं को बलिदान किया। यही बलिदान ईसाई धर्म में मोक्ष और परम प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन चर्चों में विशेष प्रार्थना सभाएं होती हैं, और श्रद्धालु शोक और आत्मचिंतन में समय बिताते हैं। आज आशा और नवीनीकरण का उत्सव: ईस्टर संडे, गुड फ्राइडे के दो दिन बाद आता है और यह दिन ईसा मसीह के पुनरुत्थान की खुशी में मनाया जाता है। बाइबल के अनुसार, मसीह को शुक्रवार को क्रूस पर चढ़ाया गया था और तीसरे दिन रविवार को वे मृतकों में से जी उठे – यही घटना ईसाई विश्वास की नींव है। ईसाई लोगों की मान्यता के अनुसार, प्रभु यीशु मसीह को ईश्वर का पुत्र माना जाता है। वे लोगों को एक-दूसरे की मदद करने, नफरत को त्याग कर प्रेम को अपनाने और ईश्वर में आस्था रखने की सीख देते थे। लेकिन उनकी लोकप्रियता और बढ़ती हुई मान्यता से कुछ लोग चिंतित हो गए और उन्होंने झूठे आरोपों के आधार पर यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। यह घटना ‘गुड फ्राइडे’ के दिन हुई, जब प्रभु यीशु को क्रूस पर लटकाया गया था. लेकिन इस दुखद घटना के तीन दिन बाद, रविवार के दिन, एक चमत्कार हुआ- प्रभु यीशु पुनर्जीवित हो गए। तभी से इस दिन को ईस्टर संडे के रूप में मनाया जाता है।ईस्टर के दिन क्या होता है?: ईस्टर संडे का दिन प्रार्थना, भक्ति और उत्सव से भरा होता है। सुबह से ही चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। चर्चों को विशेष रूप से सजाया जाता है. मोमबत्तियों, फूलों और धार्मिक प्रतीकों से वातावरण को पवित्र बनाया जाता है। प्रार्थना के बाद लोग एक-दूसरे को ईस्टर की शुभकामनाएं देते हैं और प्रभु यीशु के बलिदान एवं पुनरुत्थान की कथा को याद करते हैं। कई स्थानों पर जुलूस और संगीत समारोह भी आयोजित किए जाते हैं।ईस्टर अंडे का महत्व : ईस्टर पर्व में अंडे का विशेष स्थान होता है। अंडा जीवन की उत्पत्ति और नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है। जैसे अंडे से जीवन चूजे की शुरुआत होती है, वैसे ही ईस्टर का संदेश भी नया जीवन, नई आशा और पुनर्जन्म से जुड़ा है। प्राचीन परंपराओं के अनुसार, ईस्टर पर रंग-बिरंगे अंडे तैयार किए जाते हैं। इन अंडों को चित्रकारी कर सजाया जाता है और बच्चों को उपहार स्वरूप दिया जाता है। यह परंपरा बच्चों और बड़ों दोनों में उत्साह भर देती है। ईस्टर अंडा, केवल एक प्रतीक नहीं बल्कि एक ऐसा संदेश है जो बताता है कि हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है, हर रात के बाद एक नई सुबह आती है, और हर दुःख के बाद एक नई आशा जागती है। ईस्टर संडे के उत्सव की प्रमुख परंपराएं: प्रातःकालीन प्रार्थना सेवाएं: चर्चों में विशेष पूजा, भजन और बाइबल पाठ होते हैं।सफेद और सफेद वस्त्र पहनना: यह पुनरुत्थान, प्रकाश और आशा का प्रतीक है। ईस्टर अंडे की परंपरा: रंग-बिरंगे अंडे जीवन और पुनर्जन्म के प्रतीक माने जाते हैं, और बच्चे अंडे खोजने के खेल में भाग लेते हैं।।उत्सव भोज: परिवारजन मिलकर विशेष भोजन करते हैं, जिससे समुदाय और प्रेम की भावना प्रकट होती है।शुभकामनाओं का आदान-प्रदान: लोग एक-दूसरे को “Happy Easter” कहकर मसीह के पुनरुत्थान की बधाई देते हैं। Easter की तिथि कैसे तय होती है?ईस्टर की तिथि वसंत विषुव के बाद आने वाले पहले पूर्ण चंद्रमा के बाद आने वाले रविवार को मनाई जाती है। इस कारण, हर वर्ष इसकी तिथि बदलती रहती है। वर्ष 2025 में, यह संयोग से आज है।नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले ईस्टर पर्व को भाईचारे और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन ईसा मसीह के जीवित होने के बाद उनको यातनाएं देने वाले और सूली पर चढ़ाने वाले लोगों को भी बहुत पश्चाताप हुआ था। ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार ‘ईस्टर’ शब्द की उत्पत्ति ‘ईस्त्र’ शब्द से हुई थी। यूरोप में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार ईस्त्र वसंत और उर्वरता की एक देवी थी, जिसकी प्रशंसा में अप्रैल माह में उत्सव होते थे। इन उत्सवों के कई अंश यूरोप के ईस्टर उत्सवों में आज भी देखने को मिलते हैं। इसीलिए इसे नवजीवन या ईस्टर महापर्व का नाम दे दिया गया। कुछ देशों में ईस्टर दो दिन तक भी मनाया जाता है और दूसरे दिन को ईस्टर सोमवार कहा जाता है। ईस्टर संडे के दिन ईसाई धर्म के लोग गिरजाघरों में जाकर यीशु को याद करते हैं, उनकी याद में मोमबत्तियां जलाते हैं, बाइबिल पढ़ते हैं और अपने प्रभु यीशु के जीवित होने की खुशी में एक-दूसरे को बधाई देते हैं। ईस्टर रविवार के पहले सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण तथा अन्य धार्मिक परंपराएं पूरी की जाती हैं और असंख्य मोमबत्तियां जलाकर यीशु में अपना विश्वास प्रकट किया जाता है। ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियां अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में बांटना ईसाई धर्म में एक प्रचलित परम्परा है।ईस्टर के पहले वाले रविवार को ‘खजूर रविवार’ के नाम से जाना जाता है। इस संबंध में मान्यता है कि इसी रविवार के दिन ईसा मसीह ने यरुशलम में प्रवेश किया था। ईसाई विद्वानों के मतानुसार 29 ई. को ईसा मसीह गधे पर सवार होकर यरुशलम पहुंचे थे और वहां के लोगों ने खजूर की डालियों से उनका स्वागत किया था, इसीलिए इस दिन को ‘पाम संडे’ कहा जाता है। यहीं यरुशलम में उनके खिलाफ षड़यंत्र रचा गया और राजद्रोह के आरोप में शुक्रवार को सूली पर चढ़ा दिया गया। ईसा मसीह को सूली पर लटकाने की घटना को गुड फ्राइडे के नाम से जाना जाता है और इसके तीसरे दिन यानी संडे को ईसा मसीह के दोबारा जीवित होने की घटना को ईस्टर संडे के रूप में मनाया जाता है। ईसाई धर्म में इस घटना को इस बात प्रमाण भी माना जाता है कि सत्य कभी नष्ट नहीं हो सकता। ईस्टर की आराधना उषाकाल में ईसाई महिलाओं द्वारा की जाती है क्योंकि माना जाता है कि यीशु का पुनरूत्थान इसी वक्त हुआ था। ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ईसा मसीह को मृत्युदंड दिया गया तो उनके अनुयायी बहुत निराश और हताश हो गए थे लेकिन गुड फ्राइडे के तीसरे दिन रविवार को मरियम मदीलिनी नामक एक महिला ईसा मसीह की कब्र पर गई, जहां उस समय गहन अंधकार छाया था। महिला ने देखा कि ईसा मसीह की कब्र पर पत्थर नहीं है। उसने इसके बारे में ईसा के अनुयायियों को बताया, जिन्होंने वहां आकर देखा तो कब्र में केवल कफन पड़ा था, ईसा मसीह नहीं थे। कुछ देर बाद वे सभी वहां से चले गए लेकिन महिला वहीं बैठकर रोने लगी। तभी उसने देखा कि कब्र में जहां ईसा मसीह का शव रखा था, वहां दो स्वर्गदूत सफेद कपड़े पहने खड़े थे, एक ईसा मसीह के सिर के पास और दूसरा पैरों के पास। दोनों देवदूतों ने महिला से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वे उसके ईसा मसीह को लेकर चले गए हैं। तभी उसने वहां ईसा मसीह को देखा। देवदूतों ने उसे कहा कि वे अब परम पिता के पास जा रहे हैं। इस घटना के तुरंत बाद महिला फिर ईसा के अनुयायियों के पास आई और उनको बताया कि कैसे प्रभु ईसा मसीह पुनः जीवित हो गए हैं। ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईसा मसीह पुनः जीवित होने के बाद 40 दिन तक पृथ्वी पर रहे और अंत में वे अपने कुछ शिष्यों के साथ आसमान में चले गए। ईस्टर के दिन ईसाई धर्म के लोग अपने घरों को अंडों से सजाते हैं और एक-दूसरे को अंडे उपहार स्वरूप भी देते हैं। दरअसल ईस्टर पर अंडों का विशेष महत्व है क्योंकि ईसाई धर्म के लोग अंडे को नया जीवन और उमंग का प्रतीक मानते हैं।