आज विश्व पृथ्वी दिवस: पृथ्वी को प्राकृतिक आपदाओं से बचाए रखने के लिए लेना होगा संकल्प

जीव सृष्टि और जंतु सृष्टि के संरक्षण के साथ ही

– “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या” हम धरती मां के संतान को उन्हें बचाने के लिया आना होगा आगे

अशोक झा, सिलीगुड़ी: पृथ्वी को प्राकृतिक आपदाओं से बचाए रखने के लिए संकल्प लेने का दिन विश्व पृथ्वी दिवस आज है। पूर्व की तरह इस वर्ष भी देश के विभिन्न जगहों में कई समारोहों के जरिए पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी न सिर्फ पृथ्वी की हरियाली बरकरार रखने के लिए संकल्प लेंगे। बल्कि लोगों में जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण नीतियों में कई तरह की बदलाव लाने का प्रयास करेंगे। इस अवसर पर मां कल्याणी वेलफेयर सोसाइटी के संयोजक अशोक झा का कहना है कि “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या” विश्व पृथ्वी दिवस की बधाई। हम धरती मां के संतान है। आइए, इस अवसर पर पेड़ लगाकर धरती मां को हरा-भरा, स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त बनाएं और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भागीदारी निभाएं। पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार उत्तर बंगाल। यह प्रकृति प्रेम के लिए दुनिया में मशहूर था। यहां के मौसम में एक बार आने के बाद लोग कभी वापस नहीं गए। लेकिन अब यहां भी जलवायु परिवर्तन लोगों को डरा रहा है। जलवायु परिवर्तन किसी एक कारण से नहीं हुआ है। इसके पीछे बहुत से कारण है। जलवायु परिवर्तन एक दिन में हो गया, ऐसा नहीं है। बरसों से प्रकृति का दोहन हो रहा है। अब उसकी समय अवधि पूरी हो चुकी है। लंबे समय से प्रकृति का दोहन होने के कारण वर्तमान में इस कदर जलवायु परिवर्तन हुआ है, जिसका दुष्परिणाम हर कोई देख रहा है। गर्मी, बरसात और सर्दी यह तीनों मौसम अब अपने समय अवधि पर नहीं होते हैं। इनका निश्चित समय अवधि बदल गया है। यह कहना है उत्तर बंगाल में पर्यावरण के लिए अनवरत काम करने वाले नैफ के संयोजक अनिमेष बसु और सचिव शंकर मजूमदार का। उन्होंने कहा कि मनुष्य ही केवल इस सृष्टि का एकमात्र जीव नहीं है। जीव जंतुओं का जीवन चक्र मनुष्य के साथ और मनुष्य का जीवन चक्र उनके साथ जुड़ा हुआ है। उनका अस्तित्व रहेगा तो हमारा भी अस्तित्व रहेगा और यदि उन पर संकट आएगा तो हमारे अस्तित्व पर भी संकट आएगा। उन्होंने कहा कि हम प्रलय की प्रतीक्षा ना करें, बल्कि अभी से धरती को हरा भरा बनाएं। हम सबको आस्था के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के कारकों पर भी विचार करते हुए उसके निवारण का उपाय करना होगा। जीव सृष्टि और जंतु सृष्टि के संरक्षण के साथ ही मानव सृष्टि की सुरक्षा और संरक्षण हो पाएगी। उन्होंने कहा कि हर साल 22 अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए प्रेरित करना है। साथ ही लोगों को उन कारणों के विषय में भी अवगत कराना है, जिनकी वजह से पृथ्वी पर प्रदूषण बढ़ रहा है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। इस वर्ष का थीम: इस साल विश्व पृथ्वी दिवस 2025 का विषय ‘हमारी शक्ति, हमारा ग्रह’ रखा गया है।वर्ष 1969 में यूनेस्को सम्मेलन में पहली बार शांति कार्यकर्ता जॉन मैककोनेल ने पृथ्वी दिवस को मनाने का प्रस्ताव रखा था। पहले इस दिन को सेलिब्रेट करने का मकसद अर्थ को सम्मान देना था। सबसे पहली बार 22 अप्रैल, 1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका में पृथ्वी दिवस मनाया गया। इसके बाद डेनिस हेस ने 1990 में विश्व स्तर पर इसे मनाए जाने का प्रस्ताव रखा। इसमें 141 देशों ने भागीदारी की। 2016 में पृथ्वी दिवस को जलवायु संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यह थीम रिन्यूएबल एनर्जी की ओर ग्लोबल बदलाव लाने और क्लाइमेट चेंज से मुकाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देता है। इस वर्ष का मुख्य लक्ष्य 2030 तक वैश्विक स्तर पर स्वच्छ बिजली उत्पादन को तीन गुना करना है। इस थीम के तहत न केवल रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण के लिए बेस्ट ऑप्शन है, बल्कि यह एक ह्यूमन रिवॉल्यूशन भी ला सकती है, जिससे सभी के लिए कम लागत वाली और लगभग असीमित ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। रिन्यूबल एनर्जी में इन्वेस्ट करने से वायु प्रदूषण कम होगा, गंभीर बीमारियों का खतरा घटेगा और अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के कई कारण हैं। फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और दूषित रसायन, अपशिष्टों का अनुचित निस्तारण, जैविक ईंधन से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं और शोर, पेड़ों की अधाधुंध कटान से बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी और जल स्रोतों का प्रदूषण, अति भूजल दोहन, परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ आदि दीर्घकालिक प्रदूषण का कारण बनते हैं।
ग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग को बनाना होगा मजबूत : ग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग पर लंबे समय से काम कर रहे अनिमेष बसु का कहना है कि प्रदेश सरकार ने ‘ जल धरो जल भरो योजना लेकर आई। पर यह कितना कारगर हुआ इसका कोई जमीनी लेखा जोखा नहीं है। भूगर्भ जलस्तर सुधार में लाभ होता है और पशुओं को पेयजल भी सुलभ होता है। ये योजना जल संकट की समस्या को कम करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने और समुदाय के लिए स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराने में मदद करती है. इसके अलावा, यह योजना ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के अवसरों का विस्तार करने और पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद करती है। जन भागीदारी में सुधार, कृषि में सुधार, स्वास्थ्य में सुधार और सबसे अहम जलवायु परिवर्तन से बचाव होगा। लेकिन यह सब कागज पर ही दिखाई देता है। लोगों में जागरूकता की कमी :उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को लेकर आमजन जागरूक नहीं हैं। भूजल दोहन और बर्बादी के साथ ही कई अन्य प्रकार के प्रदूषण के लिए शिक्षित वर्ग भी जिम्मेदार है. इसकी शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी चाहिए। अपने आस पड़ोस से करने चाहिए. सरकार के कदम उठाने के अलावा हर व्यक्ति को भी अपना पहला कदम आगे उठाना है। अपने पर्यावरण को बचाना है. इसके लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने घर के आसपास साफ सफाई का ध्यान रखें।पेड़ पौधे लगाए. वनों को काटा न जाए. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्र में जमीन और बाग बगीचे होते हैं. आज के दौर में वह लोग भी अपने बाग बगीचों को खत्म कर रहे हैं. उन्हें जागरूक होने की जरूरत है. ताकि जो हाल शहरीय क्षेत्र का हुआ है, वह हाल ग्रामीण क्षेत्र का न हो. लोग हरे भरे पेड़ पौधों को नष्ट न करें।
नियमों के ताक पर प्लास्टिक का इस्तेमाल : कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सख्त कानून बने हुए हैं। लेकिन, नियमों को ताक पर रखकर लोग प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं। दुकानों पर धड़ल्ले से प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। कभी कभार नगर निगम की ओर से अभियान तो चलाया जाता है पर वह कारगर नहीं है। बढ़ता प्रदूषण से बढ़ी दिक्कत :शहरों में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहा है। अस्थमा, सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर आदि बीमारियां हो रही हैं. वहीं, दूषित जल पीने से डायरिया और अन्य रोग फैल रहे हैं। आंखों में होने वाली एलर्जी से आए दिन लोग परेशान हैं। इस समय मौसम में काफी बदलाव हुआ है। हमारे वातावरण में जितने भी रासायनिक तत्व हैं वह हमारे नाक और मुंह के जरीए अंदर जा रहा है। जिसके कारण फेफड़ों में दिक्कत, सांस लेने में समस्या वाले मरीज अधिक संख्या में ओपीडी में आ रहे हैं।

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