वक्फ संपत्तियां का वास्तविक उद्देश्य “समाज के कल्याण के लिए उसका वास्तविक उपयोग”: सुकांत मजूमदार

सुप्रीम कोर्ट सिर्फ पांच याचिकाओं की करेंगी सुनवाई

अशोक झा, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वफ़ संशोधन कानून को।लेकर दी गई याचिका का रद्द कर दिया गया है। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता को पहले से लंबित पांच मामलों में हस्तक्षेप याचिका दायर करें।यह याचिका सैयद आलो अकबर ने दायर किया था।कोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से याचिका को वापस लेने के लिए कहा. कोर्ट ने कहा कि हमने 17 अप्रैल को आदेश दिया था कि केवल पांच याचिकाओं पर ही सुनवाई होगी। पांच मई को होने वाली सुनवाई केवल प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी। केंद्र सरकार का वक्फ अधिनियम का बचाव: बता दें कि केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते ही जवाब दाखिल कर वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं में लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. सरकार ने हलफनामा में कहा है कि वक्फ कानून 2025 से किसी भी तरह से संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है. सरकार ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है।केंद्र ने अधिनियम के किसी भी प्रावधान पर रोक लगाने का विरोध करते हुए कहा कि कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेगी । केंद्रीय मंत्री सह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि वफ़ के नाम पर मुसलमानों को गुमराह किया जा रहा है। मजूमदार ने साथ ही कहा कि यह गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए बनाया गया है। मजूमदार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने दावा किया कि राज्य में वक्फ संपत्तियों को कुछ निहित स्वार्थ के लिए लूटा जा रहा है।मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ”वक्फ (संशोधन) अधिनियम गरीब मुसलमानों के कल्याण और लाभ के लिए है लेकिन टीएमसी मुसलमानों को गुमराह कर रही है।”इस अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक झड़पें भी हुई थीं। उन्होंने कहा कि ”गरीब मुसलमान गरीब ही बने हुए हैं, जबकि कुछ अवैध तरीकों का सहारा लेकर अमीर बन गए हैं।”मजूमदार ने कहा कि इस क्षेत्र में स्थित कर्णसुवर्ण नामक स्थान सातवीं शताब्दी में गौड़ साम्राज्य के राजा शशांक की भूमि थी। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री ने कहा, ” हमें यह विचार बदलना होगा कि मुर्शिदाबाद नवाबों की भूमि है। हम इस बात से इनकार नहीं करते कि यह बंगाल सूबे के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला की भूमि भी थी, लेकिन इससे भी अधिक यह राजा शशांक की भूमि थी। मजूमदार ने दावा किया कि हाल ही में मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के दौरान पुलिस प्रशासन ने अपना काम ठीक से नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ में लिप्त हैं।उन्होंने कहा, ” मुख्यमंत्री ने कहा था कि मुर्शिदाबाद में हिंसा बांग्लादेश से आए लोगों ने की थी, लेकिन जाफराबाद में पिता-पुत्र की हत्या के आरोप में पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया है, वे स्थानीय लोग हैं।”उन्होंने कहा, ”अगर पुलिस हिंदुओं को सुरक्षा नहीं दे सकती, तो उन्हें आत्मरक्षा में हथियार रखने का अधिकार है।केंद्र सरकार के मंत्री ने वक्फ कानून संशोधन पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह संशोधन मुस्लिम समाज के विकास, उत्थान और सशक्तिकरण के लिए है पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा पर उन्होंने कहा कि वहां की सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफल रही है. मंत्री ने विपक्षी दलों पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द हाल ही में जो चर्चा हुई है, वह दुर्भाग्य से धार्मिक आख्यानों से घिरी हुई है, जिससे प्रस्तावित सुधारों के मुख्य उद्देश्य से ध्यान भटक रहा है- वक्फ संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना। 2 अप्रैल को 1995 के वक्फ कानून में बदलाव को लेकर लाया गया वक्फ बोर्ड संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिली। इस बिल का मकसद वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाने के साथ महिलाओं को इन बोर्ड में शामिल करना है। सरकार के अनुसार मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठ रही मांगों को देखते हुए यह कदम उठाया गया। इस विधेयक की मदद से वक्फ अधिनियम के कई खंडों को रद्द कर दिया गया। उसके बाद भी क्यों हंगामा हो रहा है। यह पहचानना जरूरी है कि इस्लाम में वक्फ की अवधारणा मूल रूप से संस्थागत शक्ति के बजाय दान और जन कल्याण के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए, संशोधनों को धर्म पर हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से निपटने के लिए एक आवश्यक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके लिए दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है- विधेयक को धार्मिक विवाद के बजाय सामाजिक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए ।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुरान में वक्फ की अवधारणा का कोई सीधा उल्लेख नहीं है। इसके बजाय कुरान जिस चीज पर जोर देता है, वह दान का कार्य है और अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्रिय संपत्ति को दान करना है। “जब तक आप अपनी प्रिय चीजों में से कुछ दान नहीं करते, तब तक आप धार्मिकता प्राप्त नहीं कर सकते।” (सूरह अली इमरान 92) जैसी आयतें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि इस्लाम वक्फ जैसे किसी भी फॉर्मा संरचना को निर्दिष्ट किए बिना धर्मार्थ कार्यों को बढ़ावा देता है। इसलिए, प्रस्तावित संशोधनों को केवल धार्मिक उल्लंघन से जोड़ना गुमराह करने वाला और भ्रामक है। वक्फ अधिनियम 1999 का प्राथमिक उद्देश्य धार्मिक, धर्मार्थ और पवित्र उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों की सुरक्षा करना था। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, वक्फ बोर्डों को अनियमित शक्ति और पारदर्शिता की कमी के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। मौजूदा कानून वक्फ बोर्डों को उचित सत्यापन के बिना किसी भी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करने का अधिकार देता है, जिससे अनगिनत विवाद और शक्ति का कथित दुरुपयोग होता है। इसके अलावा, कुछ बोर्डों ने कानून के शासन को कमजोर करते हुए व्यक्तियों को न्यायिक राहत मांगने से सक्रिय रूप से प्रतिबंधित किया है। चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने जवाबदेही बढ़ाने पर केंद्रित संशोधनों का प्रस्ताव किया है। इन संशोधनों में वक्फ घोषित होने से पहले संपत्तियों का अनिवार्य सत्यापन, विवादित संपत्तियों की न्यायिक जांच, वक्फ बोर्डों में महिलाओं और विविध प्रतिनिधियों को शामिल करना और बोर्डों की असुरक्षा को कम करना शामिल है।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव विवाद का विषय बना हुआ है। हालांकि, हनफी न्यायशास्त्र, जिसका अधिकांश भारतीय मुसलमान पालन करते हैं, स्पष्ट रूप से कहता है कि मुतवल्ली (वक्फ प्रशासक) का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है, बल्कि वह ईमानदार और सक्षम व्यक्ति होना चाहिए। दारुल उलूम देवबंद के फतवा संख्या 34944 से इसकी पुष्टि होती है, जो वक्फ संपत्तियों के संरक्षक के रूप में सक्षम गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की अनुमति देता है। यह दर्शाता है कि गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का विरोध न केवल निराधार है, बल्कि स्थापित इस्लामी न्यायशास्त्र के भी विपरीत है। वक्फ संशोधन विधेयक को धार्मिक उल्लंघन के बजाय सामाजिक सुधार के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। यह इस्लामी मूल्यों को चुनौती देने के बारे में नहीं है, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर प्रणालीगत खामियों को दूर करने के बारे में है। न्यायिक जांच, पारदर्शी संपत्ति सत्यापन और समावेशी शासन सुनिश्चित करके, विधेयक का उद्देश्य समुदाय के हितों की रक्षा करना और भ्रष्टाचार को रोकना है। इन संशोधनों को धर्म पर हमला समझकर गलत व्याख्या करना विधेयक के वास्तविक उद्देश्य से ध्यान भटकाता है- वक्फ संपत्तियों की जवाबदेही और बेहतर प्रबंधन को बढ़ावा देना। यह सही समय है कि धार्मिक संवेदनशीलता से हटकर सामाजिक जवाबदेही की ओर बात की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वक्फ संपत्तियां अपने वास्तविक उद्देश्य- समाज के कल्याण की सेवा करें।

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