आदि शंकराचार्य की जयंती विशेष: आध्यात्मिकता के प्रकाश स्तंभ आदिगुरु शंकराचार्य, जिन्हें माना जाता है शिव का स्वरूप
आदि शंकराचार्य की जयंती विशेष: आध्यात्मिकता के प्रकाश स्तंभ आदिगुरु शंकराचार्य, जिन्हें माना जाता है शिव का स्वरूप

अशोक झा, सिलीगुड़ी: हिंदू महीने के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है। आज का दिन आदि शंकराचार्य की जयंती है, जिन्हें जगतगुरु शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है। सनातन धर्म के उत्थान में आदिगुरु शंकराचार्य जी का महत्वपूर्ण स्थान है। केरल राज्य के कालड़ी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में आदि गुरु शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था।।उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्यम्बा था। मात्र कम उम्र में वे वेदों के ज्ञाता बन गए और संन्यास धारण कर लिया। हिंदू पंचांग के अनुसार उनका जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था, जिसे आदि शंकराचार्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांत को स्थापित कर सनातन धर्म को नई दिशा दी। समाज में फैली धार्मिक भ्रांतियों को दूर कर उन्होंने सही धार्मिक शिक्षा का प्रचार किया। उनका जीवन मात्र 32 वर्षों का रहा, लेकिन उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में हिंदू धर्म को संगठित और सुदृढ़ किया। आध्यात्मिकता के प्रकाश स्तंभ आदिगुरु शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार मठों-ज्योतिर्मठ (उत्तर), शारदा मठ (पश्चिम), गोवर्धन मठ (पूर्व) और श्रंगेरी मठ (दक्षिण)-की स्थापना की। आज भी इन मठों के प्रमुख को “शंकराचार्य” की उपाधि दी जाती है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये साक्षात भगवान शिव के अवतार थे क्योंकि आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में जो चमत्कार किए वो किसी साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। उन्होंने सनातन धर्म की पुन:स्थापित किया और अखाड़ों की नींव रखी। साथ ही अनेक मठ मंदिरों की स्थापना की। आगे जानिए आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़े रहस्य: 8 साल की आयु में पढ़ लिए सारे वेद: आदि गुरु शंकराचार्य बाल्यकाल से ही बहुत विद्वान थे। उन्होंने मात्र 8 साल की उम्र में ही सारे वेद का ज्ञान प्राप्त कर लिया। इतनी कम उम्र के बच्चे के लिए वेदों का अध्ययन कर लेना और उन्हें कंठस्थ करना कोई साधारण बात नहीं थी, इससे पता चलता है कि उनमें कोई दिव्य शक्ति थी। 3 बार किया पूरे देश का भ्रमण: आदि गुरु शंकराचार्य ने जब देखा कि अन्य धर्म सनातन पर हावी हो रहे हैं तो वे भारत यात्रा पर निकले और देश के अलग-अलग हिस्सों में मठ-मंदिरों की स्थापना की। इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की थी। बद्रीनाथ-केदारनाथ आदि मंदिरों की पुर्नस्थापना भी इन्होंने ही की। इसलिए इन्हें मानते हैं महादेव का अवतार: आदि शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित्
षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात् ।। अर्थात्- आदि गुरु शंकराचार्य 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों में निपुण हो गए, 12 वर्ष की आयु में उन्होंने सभी शास्त्र पढ़ लिए। मात्र 16 वर्ष की आयु में शांकरभाष्य की रचना की और 32 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया। आदि गुरु शंकराचार्य ने कईं ऐसे चमत्कार किए जो सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। इसलिए इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।करवाई सोने की बारिश: एक बार एक गरीब ब्राह्मण के मन में दान की भावना देखकर आदि गुरु शंकराचार्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसी समय कनकधारा स्त्रोत की रचना की और उसका पाठ किया, जिससे देवी लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उस गरीब व्यक्ति के घर में सोने की बारिश की।इन्होंने ही की 4 मठों की स्थापना: आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन परंपरा की जीवित रखने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में 4 मठों की स्थापना की। इन मठों के प्रमुख आज भी शंकराचार्य ही कहलाते हैं। ये 4 मठ ही प्रमुख 13 अखाड़ों के साधु-संतों को नियंत्रित करते हैं।
ऋग्वेद के विद्वान श्री सत्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती बने 71 वें शंकराचार्य:
ये चार पीठ हैं- पुरी (गोवर्धन पीठ), द्वारका (शारदा), बद्रीनाथ (ज्योतिष पीठ) और कर्नाटक (श्रृंगेरी पीठ)।बात करें तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ के बारे में तो यह कांचीपुरम में स्थित है। कांची कामकोटि पीठ की स्थापना का श्रेय आदि शंकर को दिया जाता है और इस पीठ के प्रमुख को शंकराचार्य कहते है। कहा जाता है कि इस पीठ की स्थापना 482 ईसा पूर्व में की गई थी। बुधवार 30 अप्रैल 2025 को आंध्रप्रदेश के ऋग्वेद के विद्वान श्री सत्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती शंकराचार्य प्राचीन कामकोटि पीठ के कनिष्ठ पुजारी के रूप में नियुक्त हुए। इन्होने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मंदिरों में सेवा की है। साथ ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद समेत कई धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया है। आइये जानते हैं आखिर कांची कामकोटि पीठ में कैसी होता है नए शंकराचार्य का चयन।कांची कामकोटि पीठ में शंकराचार्य की चयन प्रक्रिया: परंपरा के अनुसार कांची मठ में शंकराचार्य का संन्यासी होना आवश्यक होता है। शंकराचार्य को वर्तमान शंकराचार्य से उत्तराधिकारी की मान्यता लेनी होती है, जोकि गुरु-शिष्य की परंपरा के अनुसार होता है।कांची मठ में भी आचार्य को वर्तमान संत श्री विजयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य से उत्तराधिकारी की मान्यता मिली।शंकराचार्य परंपरा के अनुसार, शंकराचार्य के रूप में नियुक्त होने के बाद नया नाम दिया जाता है. कांची मठ में भी संन्यास दीक्षा समारोह के दौरान वर्तमान संत श्री विजयेंद्र सरस्वती ने गणेश शर्मा द्रविड़ को ‘सत्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती शंकराचार्य’ नाम दिया। नया नाम देने के बाद शंकराचार्य का अभिषेक भी किया जाता है। अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर सत्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती शंकराचार्य का कांची कामकोटि पीठ के 71 वें शंकराचार्य के रूप में अभिषेक किया गया।