बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में खुलेगी एक आधुनिक मणि परीक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला
वाराणसी। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा मंजूर की गई SATHI योजना के तहत, वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में एक आधुनिक मणि परीक्षण और अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना होने जा रही है। 27 अप्रैल को दोपहर 3.30 बजे, गुणवत्ता टेस्टिंग और रत्नों के व्यापार से जुड़े उद्योग प्रतिनिधियों और रत्न विज्ञान के विशेषज्ञों के बीच एक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें महत्वपूर्ण शिक्षकों में से पूर्व महानिदेशक, जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जे एन दास, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग से प्रोफेसर एनवीचलपति राव और भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के पूर्व उच्च अधिकारी नीरज पांडे शामिल थे। भूविज्ञान और रसायन विभागों के संस्थागत सदस्यों के साथ साथ, भारतीय उद्योग संघ के अध्यक्ष राजेश भाटिया भी मौजूद थे। वाराणसी से लगभग 20 शीर्ष रत्न व्यापारियों ने इस उद्योग गोष्ठी में हिस्सा लिया। बैठक में उद्योग प्रतिनिधियों ने अहम सुझाव दिए जो प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए उपकरणों की खरीद में शामिल किए जाएंगे। SATHI-BHU के समन्वयक और विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर अनिल के त्रिपाठी ने बताया कि यह इस क्षेत्र में इस प्रकार की पहली प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। इस प्रयोगशाला को बीएचयू के सेंट्रल डिस्कवरी सेंटर (सीडीसी) में स्थान दिया जाएगा। इस प्रयोगशाला के संचालन और सुचारू कामकाज सुनिश्चित करने के लिए भूविज्ञान, रसायन और भौतिकी के विभागों से मिनरलॉजी और एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसे विशेषज्ञों कों शामिल कर एक टीम का गठन किया गया है, साथ ही भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के रत्न परीक्षण प्रयोगशाला के पूर्व प्रमुख जैसे बाहरी विशेषज्ञ भी होंगे। प्रस्तावित रत्न परीक्षण सुविधा कई नवीनतम विकसित उपकरणों से लैस होगी, जिसमें एक एफटीआईआर (फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोप), लेजर रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी, ईडी-एक्सआरएफ (एनर्जी डिस्पर्सिव एक्स-रे फ्लोरेसेंस स्पेक्ट्रोमीटर), टेबल टॉप एक्सआरडी (एक्स-रे डिफ्रैक्टोमीटर), यूवी-वीआई-एनआईआर (अल्ट्रा वायलेट, विसिबल और नियर इन्फ्रारेड) स्पेक्ट्रोमीटर, द्विबिंबीय और ध्रुवीय माइक्रोस्कोप, और एक लेजर कटर शामिल होंगे। इन उपकरणों का उपयोग रत्नों की संरचना, रासायनिक गुणधर्म, रंग और समावेशन जैसे विभिन्न पहलुओं की पहचान करने के लिए किया जाएगा। इस सुविधा को 3.75 करोड़ रुपये के निवेश से स्थापित किया जाएगा।