जातीय जनगणना देश के लिए विनाशकारी साबित होगी
क्या खून लोग जाति देखकर देंगे, क्या अपने ही जाति के डॉक्टर को दिखाएंगे ?
जातीय जनगणना देश के लिए विनाशकारी साबित होगी
*भेदभाव मुक्त सामाजिक एवं जातीय संरचना ही सनातन की पहचान*
• जातिवादी देश को टुकड़े में बांटकर लूटना चाहते हैं।
• क्या खून लोग जाति देखकर देंगे, क्या अपने ही जाति के डॉक्टर को दिखाएंगे ?
• जातीय जनगणना एक दूसरे के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देगा।
• विशाल भारत संस्थान द्वारा भेदभाव मुक्त सामाजिक एवं जातीय संरचना विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित।
• विशाल भारत संस्थान ने पेश की एकता की मिसाल।
• डोमराज मुख्य अतिथि एवं महंत अवध किशोर दास ने अध्यक्षता की।
वाराणसी, 21 मई। बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जातिवादी नेताओं ने जातीय जनगणना के सहारे समाज में नफरत फैलाने और देश को तोड़ने का कुचक्र रचा है। इनकी मनसा को देखते हुए काशी के बुद्धिजीवियों जिसमें प्रोफेसर, पत्रकार, शोध छात्र, अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता लमही के सुभाष भवन में काशी के डोमराज ओम चौधरी के नेतृत्व में जुटे। विशाल भारत संस्थान ने भेदभाव मुक्त सामाजिक एवं जाति संरचना विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि सनातन संस्कृति के सर्वोच्च सम्मानित डोमराज ओम चौधरी ने सुभाष मंदिर में मत्था टेका एवं माल्यार्पण और दीपोज्वलन कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। काशी के बुद्धिजीवी इस बात पर सहमत थे कि किसी भी कीमत पर जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। भेदभाव को खत्म करने का संदेश देने के लिए संगोष्ठी का मंच ही काफी था। मंच पर काशी का आदिकालीन राज परिवार डोमराज ओम चौधरी, काशी के संत महंत अवध किशोर दास, संस्कृत के आचार्य डॉ० पवन पाण्डेय, दिग्गज दलित विचारक ज्ञान प्रकाश एवं डॉ० राजीव श्रीगुरुजी विराजमान थे।
संस्कृत के आचार्य डॉ० पवन पाण्डेय, डोमराज ओम चौधरी, महंत अवध किशोर दास एवं डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने संस्कृत सम्भाषण केन्द्रम् का उद्घाटन पोस्टर प्रदर्शित कर किया। इस केन्द्रम् के जरिये बच्चे और आम लोग संस्कृत बोलना सीखेंगे। अब लमही गांव की महिलायें भी संस्कृत में बातों का आदान–प्रदान करेंगी।
संगोष्ठी में प्रस्ताव पारित कर जातिवादी नेताओं से पूछे गए कई सवाल –
1. जातीय जनगणना से हिन्दू जातियों में विभाजित होकर एक दूसरे के खिलाफ लामबंद होंगे, जिनकी संख्या कम होगी वे हिंसा और भेदभाव के शिकार होंगे। इसका जिम्मेदार कौन होगा ?
2. जिस जाति की संख्या कम होगी, वो संख्या बढ़ाने में लग जायेंगे। इससे जनसंख्या का विस्फोट होगा। इसका जिम्मेदार कौन होगा ?
3. कम संख्या वाली जातियों में असुरक्षा की भावना घर करेगी।
4. जब कोई बीमार पड़ेगा और उसको खून की जरूरत होगी तो क्या उसी की जाती के लोग खून देंगे ?
5. क्या बच्चों को सिर्फ उसी के जाति के शिक्षक पढ़ाएंगे ?
6. जातिवादी नेता और उनके परिवार को उन्हीं के जाती के डॉक्टर देखेंगे ?
7. ऐसे में सेवा, मदद और आपसी मेल–मिलाप की भावना खत्म होगी और हर बात में लोग जाती की तलाश करेंगे।
8. देश को टुकड़े में बांटने वाले दोषी नेताओं के भरोसे देश को नहीं छोड़ा जा सकता।
9. जातीय जनगणना का हर स्तर पर विरोध किया जाना आवश्यक है।
मुख्य अतिथि डोमराज ओम चौधरी ने कहा कि जो विषय रखा गया है, वो हमेशा से ही सामयिक रहा है और मैं समझता हूं कि ये तब तक सामयिक रहेगा जब तक भेदभाव और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीति को पूरी तरह से हमारे समाज से खत्म नहीं कर दिया जाता। मैं चूंकि खुद दलित समाज से हूं तो इस चीज को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है और कर रहा हूं। ये अलग बात है कि डोम राज परिवार से होने के नाते मणिकर्णिका घाट और उसके आस पास के इलाकों में मुझे इस भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि वहां लोगों की भावनाएं धार्मिक आस्था से जुड़ी होती है। मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आई कि जब प्रभु श्री राम ने कोई भेदभाव न करते हुए सबको एक समान समझते हुए सबका कल्याण किया तो उन्हीं प्रभु श्री राम के अनुयाई होते हुए हमने भेदभाव करना कहां से सीख लिया।
संगोष्ठी में विषय रखते हुए विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि देश को तोड़ने और जातियों में विभाजित करने की किसी भी मंशा को सफल नहीं होने देना है। जातियों की गणना से सामाजिक संरचना बिखर जाएगी। कर्म के आधार पर बनाई गई जातियों में सबको सबकी जरूरत होती है। जातियों को एक सूत्र में बांधने और भेदभाव मुक्त बनाने वाले प्रयास की जरूरत है। वोट के लोए देश को बर्बाद करने वाले जातिवादी नेता देश के लिए कैंसर की तरह हैं। देश को बचाने के लिए सभी समूहों को आगे आना होगा।
दलित विचारक ज्ञान प्रकाश ने कहा कि जातीय जनगणना के सबसे ज्यादा कुप्रभाव दलित जातियों पर पड़ेगा। अभी तो एक साथ रहते हैं तो सुरक्षित हैं, लेकिन जब कोई उन्मादी दलित जातियों पर हमला करेगा तो दूसरी जाति के लोग उसकी मदद नहीं करेंगे। जातीय जनगणना दलितों के खिलाफ भयानक साजिश है।
संस्कृत के आचार्य डॉ० पवन पाण्डेय ने कहा कि इस संसार में कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं होता लेकिन उसको सही रास्ता दिखाने वाला दुर्लभ होता है। पूरी दुनियां में हमारी संस्कृति का जो विस्तार है उसका कारण संस्कृत है। जब हम संस्कृत से दूर हुए तब हमारी संस्कृति भी सिमटती चली गई और हम कमजोर होते चले गये। जन्म से हम सभी शुद्र होते हैं, गुण, कर्म और संस्कारों से ही हमारी पहचान होती है।
अध्यक्षता कर रहे महंत अवध किशोर दास ने कहा कि ईश्वर ने गुण और कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बनाई है। हम सभी मनु की संतान हैं और मानव संतान में कोई भी जाति भेद नहीं है। समाज चलाने के लिये चारों वर्णों की आवश्यकता होती है। किसी एक बिना हमारा समाज अपंग हो जायेगा। हम सभी परमात्मा के ही अंश हैं।
वरिष्ठ पत्रकार डा० कविन्द्र नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि जिसने संस्कृत छोड़ दिया, उसने अपनी संस्कृति छोड़ दी। भगवान ने स्वयं कहा है कि समाज के ये चार वर्ण मैंने स्वयं रचा है, जिसका आधार गुण और कर्म है।
संगोष्ठी में अमित श्रीवास्तव, अजीत सिंह टीका एवं अजय कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
संगोष्ठी का संचालन डा० अर्चना भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद नजमा परवीन ने दिया। संगोष्ठी में नाजनीन अंसारी, डा० मृदुला जायसवाल, सुजाता गनेगा, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, लक्ष्मी, उर्मिला, गीता देवी, सरोज देवी, पूनम, प्रियंका, किशुना, प्रभावती, संदीप पाण्डेय, अखिलेश, अशोक सहगल, विवेक श्रीवास्तव, डा० धनंजय यादव, दीपक गोंड, अफरोज, फिरोज, डा० भोलाशंकर गुप्ता आदि लोगों में भाग लिया।