काशी हिन्दू विश्वविद्यालय करेगा कोयले के बायोमिथेनाइजेशन की अहम परियोजना पर अध्ययन
स्वच्छ ऊर्जाः कोयले के बायोमिथेनाइजेशन से निकलेगी नई राह
वाराणसी। देश में ऊर्जा संकट को देखते हुए कोयला मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को कोयले के बायोमिथेनाइजेशन (Biomethanization of Coal) पर काम करने के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना दी गई है। परियोजना के तहत यह अध्यन किया जाएगा कि कोयले को इन-सीटू (वह प्राकृतिक व मूल स्थिति जिसमें धरती के भीतर कोयला मौजूद रहता है) स्थिति में ‘‘मीथेन‘‘ में परिवर्तित करने के लिए जैविक विधि कितनी कारगर सिद्ध होती है। यह कार्य बीएचयू के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रकाश कुमार सिंह और वनस्पति विज्ञान की प्रो. आशा लता सिंह के सहयोग से होगा। भारत में पहली बार इस तरह की परियोजना पर कार्य हो रहा है, जिसके लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को चुना गया है। इस विषय पर भारत में कोई कार्य अब तक नहीं हुआ है। इस कार्य में सफलता मिलने से दो आवश्यक परिणाम निकलेंगे। पहला यह कि कोयले को ज़मीन के अंदर ही इन-सीटू स्थिति में मिथेन में परिवर्तित कर ग्रीन एनर्जी प्राप्त की जा सके, तथा दूसरा, कोयला खनन रोकने से पर्यावरण को होने वाले दुष्परिणाम से भी बचाया जा सकेगा। हाल ही में ‘‘कोल इंडिया‘‘ के सी.एम.पी.डी.आई. के वरिष्ठ अधिकारियों ने बीएचयू का दौरा किया और परियोजना की बारीकियों को जाना।
ज्ञातव्य है कि प्रो. प्रकाश सिंह तथा प्रो. आशा लता सिंह की टीम डी.एस.टी. (DST) के एक अन्य प्रोजेक्ट में यह अध्ययन कर रहे हैं कि भारत के पूर्वाेत्तर और कुछ अन्य स्थानों में पाए जाने वाले सल्फर-युक्त (High sulfur coal) कोयले से ‘‘बायो केमिकल तकनीक‘‘ द्वारा कैसे सल्फर को कम किया जा सके। इससे सल्फर द्वारा होने वाले पर्यावरणीय क्षति से बचा जा सकता है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को इस महत्वपूर्ण परियोजना पर कार्य करने का अवसर ऐसे समय में प्राप्त हुआ है, जब विश्वविद्यालय द्वारा अंतर्विषयी शोध व अनुसंधान पर विशेष जोर दिया जा रहा है। कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन का कहना है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अंतर्विषयी शोध के लिए उपयुक्त वातावरण व व्यवस्था मुहैया कराता है, और विश्वविद्यालय के सदस्यों को इसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए।