उत्तरप्रदेश में आदिपुरुष फ़िल्म पर तत्काल प्रतिबंध लगाने को लेकर काशी से उठी मांग

वाराणसी। रामायण की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि 1987 में बनी रामायण कोविड काल में दूरदर्शन पर पुनः प्रसारित हुई।16 अप्रैल 2020 को इसे 7 . 7 करोड़ दर्शकों ने देखा था।जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है। अस्सी के दशक में लोग पूजा की थाली लेकर टी वी पर ही रामायण धारावाहिक के पात्रों की आरती करते थे। आज सिनेमाघरों से ‘आदिपुरुष’ को देखकर बाहर निकलने वाले लोग क्षोभ और दुख से भरे हैं। दर्शक इस फ़िल्म को बनाने वाले लोगों को भला-बुरा कह रहे हैं।

रामायण श्रीराम का चरित्र है। जिसे भारत के लोगों ने अपने जीवन में उतारा है। भारत के लोग इन चरित्रों से प्रेरणा लेकर इनके जैसा बनाने का प्रयास करते हैं। कहा जाता है कि पुत्र हो तो राम जैसा, भाई हो तो लक्ष्मण जैसा, पत्नी हो तो सीता जैसी, सेवक हो तो हनुमान जैसा। लेकिन इस फ़िल्म में भूमिका हमारे आदर्श देवताओं की छवि को तार-तार कर दिया गया है। यह हमारी आस्था के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है।

फिल्म आदिपुरुष में जिस तरह से टपोरी भाषा और अंदाज़ के डायलॉग बोले गए हैं, वे पवित्र राम कथा के पात्रों की मर्यादा और उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ करते हैं । राम कथा के साथ इस तरह के अभद्र और विवेकहीन प्रयोगों का हम विरोध करते हैं। धूर्तता के साथ फ़िल्मकारों द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि आज की नई पीढ़ी को समझाने के लिए इस तरह की टपोरी भाषा का इस्तेमाल किया गया। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि हमारे आराध्य भगवानों की छवि को युवा पीढ़ी के मन में टपोरियों की तरह दिखाने के लिए ही षड्यंत्रपूर्वक यह फ़िल्म बनायी गई है।

ठीक 7 महीने बाद जब अयोध्या में जन्मभूमि पर निर्मित हो रहे भव्य मंदिर में रामलला की मूर्ति विराजित होने जा रही है । ऐसे समय में यह अभद्र फिल्म महज संयोग है या फिर एक सुनियोजित प्रयोग ?

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन पर अमर्यादित फिल्म हिन्दू धर्म का उपहास है । इसलिए हम काशीवासी अपने प्रदेश के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज से यह माँग करते हैं कि :-
1. उत्तरप्रदेश में आदिपुरुष फ़िल्म पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।
2. फिल्म निर्माता, निर्देशक, संवाद लेखक एवं कलाकारों को इस दुष्कृत्य पर सजा हो क्योंकि इनलोगों ने गम्भीर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अपराध किया है।
3. कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दू धर्म एवं आस्था के साथ खिलवाड़ बंद हो।
4. कला एवं संस्कृति के नाम पर विकृति एवं हिन्दू धर्म का उपहास अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

साथ ही छविगृह मालिकों से निवेदन है की ऐसी फ़िल्में अपने सिनेमाघरों में प्रदर्शित न करें। आम जनता से आग्रह है की ऐसी दूषित सोच एवं गलत संस्कृति का पोषण न करें।सब मिलकर अपनी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा करें।

विरोध प्रदर्शनों में मुख्य रूप से आदेश भट्ट, डॉ. सन्तोष ओझा, आनन्द पाण्डेय, विपिन सेठ, विद्यासागर उपाध्याय, अजय सिंह, श्याम कश्यप, नीतीश सिंह, राम जी कश्यप, राजेश जयसवाल, मोनू चौरसिया, यश नायक, आलोक राय, संजय सिन्हा, अरूण शेट्टी, देवनारायण मुखर्जी, ताराप्रसाद, राजन पाण्डेय, धीरज सिंह, प्रतीक पाण्डेय, पंकज तिवारी, पीयूष सिंह, मनोज यादव, शंकर तिवारी, अनुराग गुप्ता, सूरज मिश्रा, आदित्य महर्षि समेत सैकड़ों कार्यकर्ता रहे।

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