विकास भवन और राजभवन के बीच टकराव जारी, मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
सर्च कमेटी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर तक नाम भेजने का दिया आदेश

अशोक झा, सिलीगुड़ी: बंगाल की मुख्यमंत्री इन दिनों विदेश दौरे पर है। इसी बीच राज्यपाल और शिक्षा का विकास भवन के बीच टकराव खुलकर सामने आया है। पश्चिम बंगाल के सरकारी विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपतियों ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ कानूनी नोटिस भेजा है।शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने आग में घी डालने का काम किया। बंगाल के राज्यपाल के साथ राज्य सरकार के साथ टकराव सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। विवाद राज्य बनाम केंद्र का हो गया है। पश्चिम बंगाल के 13 सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के नाम के लिए अंतिम सूची बनाने और उनकी नियुक्ति के लिए एक खोज समिति गठित करेगा। सुप्रीम कोर्ट स्थायी कुलपति की नियुक्ति के लिए एक सर्च कमेटी बनाएगा। राज्य सरकार, आचार्य और यूजीसी को 3 से 5 प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम भेजने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर तक नाम भेजने का आदेश दिया है।वहीं सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस से कुलपतियों की नियुक्ति में चल रही समस्या को सुलझाने में मदद करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और राज्यपाल दोनों को अपने मतभेदों को दूर रखकर शैक्षणिक संस्थानों के सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की पहल करने को कहा है।
सर्च कमेटी स्थायी कुलपति के नाम का देगी प्रस्ताव :
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों पक्षों राज्य, राज्यपाल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को सर्च कमेटी के सदस्यों को नामित करने के लिए तीन से पांच नाम देने का निर्देश दिया है। नाम मिलने के बाद उन्हें लेकर सर्च कमेटी का गठन किया जाएगा। यह समिति स्थायी कुलपति के नाम का प्रस्ताव देगी।
अस्थायी कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का किया था रुख : विश्वविद्यालयों में अस्थायी कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर आचार्य व राज्यपाल सीवी आनंद बोस के फैसले को चुनौती देते हुए राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। नबान्न का बयान था कि राज्यपाल ने जिस तरह से विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति की है, वह वैध नहीं है। आचार्य राज्य के उच्च शिक्षा विभाग या शिक्षा मंत्री से चर्चा किए बिना ही कुलपति की नियुक्ति पर निर्णय लेते रहे हैं। हाल ही में जादवपुर विश्वविद्यालय में छात्र की मौत के मद्देनजर राज्यपाल द्वारा संस्थान में अस्थायी कुलपति की नियुक्ति के साथ राज्य व राजभवन टकराव बढ़ गया है। हालांकि इससे पहले राज्य को इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट से भी झटका लगा था। तब नबान्न ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया।
शिक्षा विभाग ने कुलपतियों का रोक दिया है वेतन:
आचार्य ने उत्तर बंगाल, नेताजी सुभाष ओपन यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (मैकआउट), कलकत्ता, कल्याणी, बर्दवान, काजी नजरूल, डायमंड हार्बर महिला विश्वविद्यालय सहित राज्य के कई विश्वविद्यालयों के अंतरिम कुलपति नियुक्त किये है। शिक्षा विभाग ने उन कुलपतियों का वेतन रोक दिया है। राज्य का तर्क था कि आचार्य विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति पर एकतरफा निर्णय नहीं ले सकते है। पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय अधिनियम और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) नियमों के अनुसार नियुक्ति नहीं की गई थी। प्रोफेसर सनथकुमार घोष ने उन कुलपतियों की नियुक्ति रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक जनहित मामला दायर किया था। 28 जून को हाई कोर्ट ने केस खारिज कर दिया और आचार्य के फैसले पर मुहर लगा दी।
हाईकोर्ट का आदेश फिलहाल रहेगा लागू : जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्त की खंडपीठ ने 21 अगस्त को इस मामले की सुनवाई में निर्देश दिया था कि मामले में सभी पक्षों को नोटिस दिया जाए। मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी. उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस दौरान दोनों पक्ष स्थायी कुलपति की नियुक्ति पर चर्चा करेंगे और देखेंगे कि क्या कोई समाधान निकल सकता है। हालांकि कोर्ट अंशकालिक अस्थायी कुलपतियों की नियुक्ति पर आचार्य के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट का आदेश फिलहाल लागू रहेगा।
10 साल के शिक्षण अनुभव के बिना कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है: मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने आरोप लगाया था कि 10 साल के शिक्षण अनुभव के बिना कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है। ऐसे आरोपों के जवाब में राज्यपाल ने कहा कि अंतरिम कुलपति की नियुक्ति के लिए कोई विशिष्ट शिक्षण योग्यता नहीं है। किसी भी योग्य व्यक्ति को अंतरिम कुलपति नियुक्त किया जा सकता है। यही नियम है और उसका पालन किया जा रहा है, लेकिन बोस ने कहा कि वह इस राज्य में काम करके खुश हैं. हालांकि वह कई आईएएस और आईपीएस के पक्षपातपूर्ण व्यवहार की जानकारी देना नहीं भूले, हालांकि राज्यपाल ने यह भी टिप्पणी की कि सभी अधिकारी ऐसे नहीं है। वही पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु के द्वारा पांच कुलपतियों के केंद्रीय शिक्षा मंंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलने को गुलाम बताने की केंद्रीय मंत्री ने आलोचना की है। इस संबंध में एयरपोर्ट पर मीडिया से बात करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रधान ने कहा कि मुझे लगता है कि जो व्यक्ति पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री है, उसे एक शिक्षित व्यक्ति होना चाहिए और वह हैं। उन्होंने कहा कि एक शिक्षा मंत्री को ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। प्रधान ने कहा कि अगर कई कुलपति और प्रिंसिपल मुझसे मिलते हैं और मैं राज्य शिक्षा नीति और बंगाली शिक्षा नीति के बारे में विचार-विमर्श करता हूं तो कोई दोहरापन नहीं है। यहां कोई तानाशाही नहीं चल रही है। हर किसी आजादी है, इसमें आपत्ति कहां है? उन्होंने कहा कि लेकिन इस मामले में शिक्षा मंत्री ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर अपने राज्य का अपमान कर रहे हैं और बंगाली सभ्यता का अपमान कर रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि उन्हें ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। हर कोई स्वतंत्रता से सब कुछ कर सकता है। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ने पहले एक्स (जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर लिखा था कि श्री बॉन्ड द्वारा अधिकृत राज्य-सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों के 5 गुलाम वीसी ने आज एक केंद्रीय भाजपा मंत्री से मुलाकात की! उम्मीद है कि माननीय न्यायालय देख रहे होंगे! अत्याचार, बंगाल उच्च शिक्षा व्यवस्था नष्ट!। धर्मेंद्र प्रधान ने यह भी कहा कि राज्यपाल सीवी आनंद बोस के साथ चल रहे टकराव को लेकर बंगाल सरकार को अपनी गरिमा नहीं भूलनी चाहिए। इसी कड़ी में प्रधान ने कहा कि राज्यपाल की अपनी भूमिका और जिम्मेदारियां हैं। अगर वह किसी मामले पर अपनी राय व्यक्त करते हैं और उस राय का खंडन करने के लिए गलत माध्यम चुना जाता है तो यह सही नहीं है. गौरतलब है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर सरकार का राज्यपाल बोस के साथ टकराव चल रहा है. दोनों पक्षों की ओर से दावे-प्रतिदावे किए गए जिससे मामला और भी बिगड़ गया है।