अगर राज्यपाल नहीं लौटे तो मैं पूरी पूजा के दौरान धरना दूंगा: अभिषेक बनर्जी

कोलकाता:बंगाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के लागू होने में अनियमितताओं को लेकर तृणमूल कांग्रेस और केंद्र सरकार के बीच छिड़ा वाक्युद्ध अब सड़कों पर आ गया है। तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बंदोपाध्याय का राज भवन के सामने धरना लगातार जारी है। उन्होंने ऐलान किया कि मनरेगा में कईयों को बकाया के कारण नये कपड़े नहीं मिले, हम भी नये कपड़े नहीं पहनेंगे। केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए कोलकाता आये है। तो फिर कौन जीता? बांग्ला या जमींदार। संगी निरंजन आ रहे हैं, अगले दिन गिरिराज सिंह, अमित शाह, नरेंद्र मोदी भी आएंगे। कुछ ही दिनों में राजभवन में बंगाल की जनता का एक प्रतिनिधि होगा। राज्यपाल ने कल दोपहर दार्जिलिंग में समय दिया है। हम तीन लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाना। (लोकसभा सांसद कल्याण बनर्जी, महुआ मैत्रा और राज्य के पंचायत मंत्री प्रदीप मजूमदार) शाम 5 बजे हवाई मार्ग से दार्जिलिंग पहुंचेंगे। लेकिन जब तक राज्यपाल हमारे 30 लोगों के प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिलेंगे, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। अगर राज्यपाल को लगता है कि वह पूजा के बाद राजभवन लौटेंगे तो हम इंतजार करेंगे। जब तक आप आकर इन पत्रों को नहीं देखेंगे तब तक आंदोलन जारी रहेगा। आपको मुख्य प्रतिनिधिमंडल दल से अवश्य मिलना चाहिए। अगर आपको लगता है कि पूजा खत्म हो जाएगी तो तब तक इंतजार करें। पूजा से पहले हमारे पत्र का स्पष्टीकरण मिलेगा तभी हम आंदोलन वापस लेंगे। राज्य सरकार ने केंद्र पर हजारों करोड़ रुपए रोकने का आरोप लगाया तो केंद्र सरकार बंगाल में मनरेगा योजना में निर्देशों को ताक पर रखने की दलील दे रही है। इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच निचले पायदान पर बैठा व्यक्ति रोजगार की मुश्किल से जूझ रहा है। विपक्षी दल पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में लागू की गई इस योजना को केंद्र की मौजूदा राजग सरकार पर धीरे-धीरे खत्म करने का आरोप लगाते रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सबसे ज्यादा मुखर है और उसने कई मौकों पर इस मसले पर केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया है। पार्टी का कहना है कि केंद्र मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पंद्रह हजार करोड़ रुपए दबाए बैठा है। इससे राज्य की बड़ी गरीब आबादी प्रभावित हो रही है। हालांकि केंद्र इन आरोपों का खंडन करने के साथ ही राज्य सरकार पर मनरेगा जाब कार्ड में फर्जीवाड़ा किए जाने की बात कह रहा है। हकीकत यह है कि मांग-संचालित मजदूरी रोजगार कार्यक्रम के रूप में मनरेगा समूचे देश में अपने मूल स्वरूप में जारी है और केंद्र सरकार इस मद में राशि भी आबंटित करती रही है। पश्चिम बंगाल के संदर्भ में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा है कि मनरेगा के लिए धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन राज्य को धन इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि उसने केंद्रीय निर्देशों का अनुपालन नहीं किया। केंद्र सरकार राज्य में पच्चीस लाख जाब कार्ड में फर्जीवाड़ा किए जाने का भी आरोप लगा रही है। अगर ऐसा है तो इन आरोपों की पड़ताल होनी चाहिए। राज्य सरकार को स्वयं इस मामले की जांच कर केंद्र के समक्ष सही तस्वीर रखनी चाहिए। सवाल है कि पश्चिम बंगाल को केंद्र सरकार की चिंताओं का निवारण करने में कहां दिक्कत पेश आ रही है, जबकि केंद्र कह रहा है कि उसने चार अक्तूबर तक इस योजना के लिए निर्धारित साठ हजार करोड़ रुपए के बजट में से 56,105.69 करोड़ जारी कर दिए हैं। अगर इतना पैसा राज्यों को दे दिया गया है तो गड़बड़ी कोष में नहीं, कार्यान्वयन स्तर पर नजर आती है। एक उपयोगिता आधारित और गरीब तबकों के कल्याण कार्यक्रम के रूप में मनरेगा का महत्त्व किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इसमें धांधली, काम नहीं मिलने या भुगतान में देरी के आरोप अक्सर सामने आते रहे हैं। स्थानीय स्तर पर योजना की कार्यान्वयन एजंसी के प्रति सख्ती से इस समस्या का समाधान हो सकता है। अगर किसी राज्य के साथ भेदभाव हुआ है, तो इसके लिए सड़कों पर प्रदर्शन करने के बजाय उचित मंच पर तथ्यों और आंकड़ों के साथ अपनी बात रखी जा सकती है। मनरेगा को गांवों में रोजगार का सबसे ठोस जरिया माना जाता है। इसके तहत ग्रामीण परिवार को प्रतिवर्ष सौ दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है। इस महत्त्वाकांक्षी योजना की उपयोगिता पूरे देश में शुरू से निर्विवाद रही है। कोरोना काल में जब बड़ी संख्या में शहरों से गांवों की ओर पलायन हुआ तो रोजी-रोटी चलाने के लिए यही योजना सबसे बड़ा सहारा बनकर उभरी। उस समय सरकार को इसका बजट लगभग दोगुना तक बढ़ाना पड़ा था। दरअसल, कल्याणकारी योजनाएं सभी राज्यों के लिए होती हैं। इनके कार्यान्वयन में लापरवाही या भ्रष्टाचार से नुकसान समाज के सबसे निचले तबके को ही उठाना पड़ता है। इसे लेकर राजनीतिक लाभ का गणित बिठाने के बजाय इस पर ठोस और ईमानदार कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। @रिपोर्ट अशोक झा

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