सुभाष घीसिंग की पुण्यतिथि: घीसिंग अंतिम सांस तक जाति और माटी की लड़ाई करते रहे : सांसद राजू बिष्ट

सिलीगुड़ी:
गोरखालैंड आंदोलन के पुरोधा सुभाष घीसिंग कि 9वी पुण्यतिथि दार्जिलिंग हिल्स से लेकर समतल तक मनाया जा रहा है। गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट की ओर से जगह-जगह इस मौके पर लोगों की सेवा कर घीसिंग कोई याद किया गया। दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि घीसिंग अंतिम सांस तक जाति और माटी की लड़ाई करते रहे। बताया कि सुभाष घीसिंग का जन्म मंजू टी एस्टेट में 22 जून 1936 में हुआ था। 1954 में वे भारतीय सेना के गोरखा राइफल्स में शामिल हुए। 1960 में सेना की नौकरी छोड़ 1968 में नीलो झंडा नामक संगठन तैयार किया।
सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में 1980 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट का गठन हुआ। सुभाष घीसिंग ने ही गोरखालैंड शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया। 7 सितंबर 1981 को पुलिस ने दार्जिलिंग चौकबाजार में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं। इस दौर में प्रांत परिषद को बहुत ज़्यादा दमन का सामना करना पद रहा था। प्रांत परिषद द्वारा शुरू किए गए अलग राज्य की मांग और आंदोलन पर 1986 तक जीएनएलएफ ने क़ब्ज़ा जमा लिया था। 1986 से 1988 तक सीपीएम और जीएनएलएफ के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं। 27 महीनों तक चली हिंसा में 1800 से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे। 22 अगस्त 1988 को गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट , बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिकोणीय समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल का गठन किया गया। इस शर्त पर बनाया गया की पार्टी को अलग राज्य की मांग को छोड़ने के लिए तैयार होना पड़ेगा। दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को एक राज्य के बराबर अधिकार दिए गए। 30 जनवरी 2015 इलाज के दौरान दिल्ली गंगा राम अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके पुत्र मन घीसिंग पार्टी का कमान संभाले हुए हैं।
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरखालैंड की मांग सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है। इस मुद्दे पर बीते लगभग तीन दशकों से कई बार हिंसक आंदोलन हो चुके हैं। ताजा आंदोलन भी इसी की कड़ी है. दार्जिलिंग इलाका किसी दौर में राजशाही डिवीजन (अब बांग्लादेश) में शामिल था. उसके बाद वर्ष 1912 में यह भागलपुर का हिस्सा बना। देश की आजादी के बाद वर्ष 1947 में इसका पश्चिम बंगाल में विलय हो गया। अखिल भारतीय गोरखा लीग ने वर्ष 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को एक ज्ञापन सौंप कर बंगाल से अलग होने की मांग उठायी थी। उसके बाद वर्ष 1955 में जिला मजदूर संघ के अध्यक्ष दौलत दास बोखिम ने राज्य पुनर्गठन समिति को एक ज्ञापन सौंप कर दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कूचबिहार को मिला कर एक अलग राज्य के गठन की मांग उठायी। अस्सी के दशक के शुरूआती दौर में वह आंदोलन दम तोड़ गया. उसके बाद गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बैनर तले सुभाष घीसिंग ने पहाड़ियों में अलग राज्य की मांग में हिंसक आंदोलन शुरू किया. वर्ष 1985 से 1988 के दौरान यह पहाड़ियां लगातार हिंसा की चपेट में रहीं. इस दौरान हुई हिंसा में कम से कम 13 सौ लोग मारे गए थे। उसके बाद से अलग राज्य की चिंगारी अक्सर भड़कती रहती है।आखिर क्यों?: राज्य की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने सुभाष घीसिंग के साथ एक समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद का गठन किया था। घीसिंग वर्ष 2008 तक इसके अध्यक्ष रहे. लेकिन वर्ष 2007 से ही पहाड़ियों में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बैनर तले एक नई क्षेत्रीय ताकत का उदय होने लगा था. साल भर बाद विमल गुरुंग की अगुवाई में मोर्चा ने नए सिरे से अलग गोरखालैंड की मांग में आंदोलन शुरू कर दिया था। रिपोर्ट अशोक झा

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