गुप्त नवरात्रि का आज दूसरा दिन, मां तारा देवी को समर्पित
गुवाहाटी: गुप्त नवरात्रि का आज दूसरा दिन है जो मां तारा देवी को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन अघोरी विशेष रूप से महाविद्या तारा को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं।महर्षि वशिष्ठ ने सबसे पहले इनकी आराधना की थी। शत्रुओं का नाश करने वाली मां तारा सौंदर्य, रूप ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। साथ ही आर्थिक उन्नति, भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली भी हैं। तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे. इसलिए इस स्थान को नयनतारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम में स्थित है। एक अन्य कथा के अनुसार, माना जाता है कि तारा देवी राजा दक्ष की दूसरी पुत्री थीं, जिनका मंदिर शिमला से 13 किमी दूर शोघी में स्थित है। महाविद्या तारा देवी की पूजा का महत्व: शास्त्रों के अनुसार, लंकापति रावण ने भी मां तारा की उपासना की थी। साथ ही माता तारा देवी को लेकर यह भी मान्यता है कि जिनका उद्धार भगवान शिव भी नहीं कर पाते, उन भक्तों का उद्धार भी मां तारा देवी करती हैं। मां तारा की पूजा के कोई विशेष नियम नहीं होते है, लेकिन यह मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा से मां तारा देवी की पूजा करता है तो माता भक्तों की पुकार सुनकर उनका उद्धार अवश्य करती हैं। मां तारा की साधना करने से धन संबंधी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। और साथ ही दिव्य सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।तारा पीठ पं बंगाल में शक्तिपीठ है। यह झारखंड से सटा हुआ है। यह बंगाल की पहचान है। बंगाल मां का उपासक है। घर-घर शक्ति की पूजा की जाती है। 51 शक्तिपीठों में इसकी गणना होती हे। सिद्ध तांत्रिक वामाखेपा का जन्म यहीं हुआ था, वामाखेपा आटला गांव के रहने वाले थे, जो तारापीठ मंदिर से दो किमी की दूरी है। लोगो का मानना है कि है वामाखेपा को मां तारा के मंदिर के समीप महाश्मशान में तारा देवी के दर्शन हुए थे। यहीं पर वामाखेपा को सिद्धि प्राप्त हुई थी। मां तारा, काली माता का एक रूप है। मां काली ही माता तारा है। मां तारा देवी की पूजा विधि: मां तारा की पूजा हमेशा एकांत कक्ष में ही करें, जिस स्थान पर आप पूजा करें वहां आपके अलावा कोई भी अन्य व्यक्ति मौजूद न हो।मां तारा की पूजा करने से पहले स्नान करें. इसके पश्चात एक सफेद रंग की धोती धारण करें। मां तारा की पूजा हमेशा रात्रि के समय ही की जाती है। इसलिए मां तारा की पूजा हमेशा अर्धरात्रि में ही करें।मां तारा देवी की पूजा करते समय पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठें। पूजा करने वाली चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध कर लें।चौकी पर गुलाबी रंग का कपड़ा बिछाएं और गुलाब के फूल रखें और तारा यंत्र की स्थापना कर यंत्र के चारों ओर चावल की ढेरियां बनाएं। चावल की चारों ढेरियों पर एक- एक लौंग रखने के बाद तारा यंत्र के सामने घी का दीपक जलाएं और मंत्र जाप कर श्रद्धा पूर्वक मां तारा की कथा सुनें. कथा सुनने के बाद आरती करें। पूजन करने के बाद पूजा में इस्तेमाल की गई सभी सामग्री को किसी बहती नदी में प्रवाहित कर दें या पीपल के पेड़ के नीचे जमीन में गड्ढा खोदकर भी दबा सकते हैं।मां तारा मंत्र: माना जाता है कि नील कांच की माला से 12 माला का जाप करने से मां तारा देवी प्रसन्न होती है और लोगों की मनोकामना पूरी करती हैं। ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्। रिपोर्ट अशोक झा