घरेलू महिलाएं राष्ट्रवादियों की पाठशाला हैं

*राष्ट्रवाद की सबसे छोटी इकाई परिवार है*
*परिवार धर्म शिक्षा और संस्कार की पहली पाठशाला है*

• राष्ट्रमाता के रूप में घरेलू महिलाओं ने अनेक देशभक्तों एवं महापुरुषों को जन्म दिया
• घरेलू महिलाओं के काम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
• परिवार प्रशिक्षण केन्द्र का हुआ उद्घाटन
• पारिवारिक रिश्तों को बचाने की अनोखी पहल

वाराणसी, 8 मार्च। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महिला परिषद ने घरेलू महिलाओं का राष्ट्रवाद विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन लमही के सुभाष भवन में किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरएसएस प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष सिंह ने सुभाष मन्दिर में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यर्पण एवं दीपोज्वलन कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। बाल आजाद हिन्द बटालियन की सेनापति दक्षिता भारतवंशी के नेतृत्व में मुख्य अतिथि को सलामी दी गयी। टूटते और बिखरते परिवारों और रिश्तों को बचाने के लिये विशाल भारत संस्थान ने परिवार प्रशिक्षण केन्द्र की शुरुआत की। इस केन्द्र के जरिये पारिवारिक रिश्तों को बचाने और आपसी सम्बन्ध को विकसित करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस केन्द्र से घरेलू महिलाओं को जोड़ा जाएगा। रिश्तों के संघर्ष को खत्म करने के सूत्र विकसित किये जायेंगे। यह भारत का पहला केन्द्र होगा जहां पारिवारिक रिश्तों को मजबूत बनाने की अनोखी पहल की जा रही है। मुख्य अतिथि रामाशीष सिंह एवं विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने पोस्टर के जरिये परिवार प्रशिक्षण केन्द्र का शुभरम्भ किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि आरएसएस प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष सिंह ने कहा कि महिलाओं को समानता की आवश्यकता नहीं है, वो तो समानता से बहुत ऊपर हैं। सृष्टि के संचालन के लिये सभी एक दूसरे से बंधे हुए हैं। भारत में नारी का सम्मान है कि उसे साने की तरह सुरक्षित रखते हैं। नारी शक्ति का प्रतीक है। नारी श्रद्धा परयाय है। शक्ति के बिना तो शिव भी शव में बदल जाते हैं। सब कुछ धारण करने वाली ही धरती माँ हैं। भारतीय संस्कृति में 5 माताएं हैं– धरती माता, जन्म देने वाली माता, मातृभाषा, गऊ माता और प्रकृति माता। सिर्फ इस धरती पर ही नहीं बल्कि देवलोक भी महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है जहाँ सभी देवता भी अपनी शक्ति के साथ विराजते हैं। पाश्चात्य सभ्यता में स्त्री में आत्मा नहीं मानते, सिर्फ भोग्या मानते हैं। जबकि भारतीय संस्कृति में सात फेरों से भी सात जन्मों का रिश्ता बनता है।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर की निदेशक आभा भारतवंशी ने विषय स्थापना करते हुए कहा कि राष्ट्रवाद की सबसे छोटी इकाई परिवार है। परिवार धर्म, शिक्षा और संस्कार की पहली पाठशाला है। राष्ट्रमाता के रूप में घरेलू महिलाओं ने अनेक देशभक्तों और महापुरुषों को जन्म दिया है।

विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ० अर्चना भारतवंशी ने कहा कि परिवार को जोड़े रखने में महिलाओं की बड़ी भूमिका रहती है। पारिवारिक शांति से राष्ट्र के लिये कार्य करने का माहौल बनता है। देश के प्रति भक्ति और जान कुर्बान करने के लिये प्रेरणा तो माँ ही दे सकती है। घरेलू महिलाओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास की सहायक प्रोफेसर डॉ० मृदुला जायसवाल ने कहा कि घरेलू महिलाओं की निःस्वार्थ सेवा और त्याग ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण रखा है। हमारी सांस्कृतिक विरासत घरेलू महिलाओं की देन है।

हिन्दू मुस्लिम संवाद केन्द्र की चेयरमैन डॉ० नजमा परवीन ने कहा कि घर में रहने वाली महिला त्याग की प्रतिमूर्ति है। घर के बाहर कदम रखने वालों के लिये माँ ही सुरक्षा की गारंटी देती है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भारत सरकार के उर्दू काउंसिल की सदस्य नाज़नीन अंसारी ने कहा कि दुनियां रिश्तों के मामले में टूट चुकी है, लेकिन भारत के रिश्तों को महिलाओं ने संभाल रखा है क्योंकि यहां की संस्कृति महिलाओं को पूज्य मानती है।

संगोष्ठी का संचालन खुशी रमन भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद इली भारतवंशी ने दिया।

इस अवसर पर सरोज, गीता, माया, लालती, मीरा, किरन, चिंता, रीता, मुंता, लक्ष्मीना, दुलारी, कलावती, पुनम, सुनीता, अर्चना, रीता, मैना, नीलम, प्रभावती, सारिका, बेचना, चन्दा, ममता, मेहरूननिशा, जुलेखा बीबीए रौशनजहाँ, रूखसार, कुर्शीदा बानो, राजकुमारी, प्रीती, श्याम दुलारी आदि महिलाएं मौजूद रहीं।

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