जब प्रभु राम ने हनुमान जी को खुद से दूर कर दिया था

सिलीगुड़ी: विश्व हिंदू परिषद द्वारा सिलीगुडी के सोमेश्वर शिवालय मन्दिर रबरगाछ मोहरगाँव का वार्षिक उत्सव के अवसर राम कथा ज्ञानमहायज्ञ एवं विश्व शांति हेतु धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण भव्यता के साथ हो रहा है। कथा व्यास पर अनन्त शास्त्री द्वारा शांति शास्त्री की अगुवाई में श्रीराम कथा हो रहा है। 14 मार्च को इसका समापन होगा। व्यास पीठ से कहा गया की भगवान श्रीराम की कथा जिनके घर में होती है वहां से संकट दूर हो जाते हैं। बेटियां सौभाग्य से प्राप्त होती है और हर किसी को कन्यादान करने का भाग्य प्राप्त नहीं हो पाता है। राजा जनक बड़े ही सौभाग्यशाली थे जिसे मां सीता जैसी पुत्री प्राप्त हुई।


उन्होने प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राजा दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का अपमान करने के लिए महायज्ञ का आयोजन किए थे। महायज्ञ में उन्होने भगवान शिव को छोड़ समस्त देवताओं को आमंत्रण भेजा था। भगवान शंकर के मना करने के बाद भी सती अपने पिता के यहां जाने की इच्छा जताई तो भगवान शंकर ने बिना बुलाए जाने पर कष्ट का भागी बनने की बात कही। इसके बाद भी सती नहीं मानी और पिता के घर चली गईं। पिता के भगवान शंकर के अपमान पर सती ने हवन कुंड में कूदकर खुद को अग्नि को समर्पित कर दिया। इसके बाद भगवान शंकर के दूतों ने यज्ञ स्थल को तहस-नहस कर दिए। माता सती के अग्नि में प्रवाहित होने के बाद तीनों लोकों को भगवान शिव के कोप भाजन का शिकार होना पड़ा। कथा के दौरान कलाकारों ने मनमोहक झांकी प्रस्तुत की। झांकी देख लोग भाव विभोर हो गये। भगवान हनुमान अयोध्यापति दशरथ नंदन श्री राम के अनन्य भक्त हैं। त्रेतायुग में स्वयं नारायण ने पृथ्वीलोक पर रावण सहित अनेकों बलशाली राक्षसों के वध और मर्यादा की स्थापना के लिए राम के रूप में मानव अवतार लिया था। तब भगवान शिव के अंश ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था। परम भक्‍त हनुमान के प्रभु राम से मिलन की कथा तो अधिकांश लोग जानते हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आया था, जब प्रभु राम ने हनुमान जी को खुद से दूर कर दिया था और इस लीला के पीछे एक खास वजह थी। कालदेव नहीं आ सकते थे करीब : पौराणिक कथाओं के अनुसार अयोध्या में महाराजा दशरथ के बड़े पुत्र के रूप में अवतार लेने वाले श्री राम ने जब पृथ्वी लोक की लीला पूरी कर ली, तो मृत्यु के स्वामी कालदेव का समय आ गया। किंतु प्रभु जानते थे, कि जब तक हनुमान जी उनके पास में हैं कालदेव भी उनके पास नहीं आ सकते। इस पर प्रभु राम को हनुमान को अपने पास से दूर भेजने के लिए एक युति अपनानी पड़ी। हनुमान को भेजा अंगूठी लेने : प्रभु राम ने हनुमान जी को खुद से दूर करने की एक योजना बनाई और जानबूझकर अपनी अंगूठी सरयू नदी में गिरा दी और हनुमान जी से कहा कि वे सीता की आखिरी निशानी को ढूंढकर ले आएं। आदेश मिलते ही हनुमान जी सरयू में कूद गए और अंगूठी की खोज करते हुए नागलोक जा पहुंचे। वहां पर शिव जी के गले की शोभा बढ़ाने वाले नागराज वासुकि हनुमान जी को देख कर मुस्कुराए और नागलोक आने का कारण पूछा तो उन्होंने पूरी कहानी बता दी। इस पर उन्होंने एक तरफ इशारा करते हुए कहा कि उधर कई अंगूठी पड़ीं हैं, आप स्वयं ही ढूंढ लें। हनुमान जी ने पहली अंगूठी उठाई जिस पर श्री राम का नाम लिखा था। इसके बाद वह जो भी अंगूठी उठाते हर किसी पर श्री राम का नाम ही लिखा था। हर अंगूठी पर लिखा था ‘श्री राम’। हनुमान जी यह देख कर आश्चर्य में पड़ गए कि सभी अंगूठियों पर श्री राम लिखा है। तभी हंसते हुए वासुकि ने उनसे पूछा कि क्या बात है हनुमान, आपको अंगूठी मिल गयी। इस पर हनुमान जी ने अपनी दुविधा बताई कि हर अंगूठी में प्रभु का नाम लिखा है। इस पर नागराज ने समझाया कि अब तक श्री राम कई बार अवतार ले चुके हैं और यहां की सारी ही अंगुठियां उनकी हैं. बुद्धि दाता रुद्रावतार हनुमान जी को सारी बात समझने में देर न लगी कि यह सब श्री राम ने उन्हें अपने से दूर करने के लिए किया है।ताकि वह अपनी लीला पूर्ण कर बैकुंठ लोक में जा सके। इसके बाद हनुमान जी ने भी वापस अयोध्या पहुंचने का इरादा त्याग दिया।
बताते हैं कि प्रभु ने इस रूप में रहने का जो आदेश दे रखा है वह पूरे मनोयोग से करने का जतन रहता है। उनके आशीर्वाद से इतना मिलता है कि साधु भी भूखा नहीं रहता और वनों में रहने वाली वानरी सेना भी छककर जाती है।उछल कूद करती नजर आती है वानरी सेना। @रिपोर्ट अशोक झा

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