बंगाल में भाजपा का जातिगत चक्रव्यूह टीएमसी को तोड़ना हो रहा मुश्किल

कोलकाता : बंगाल का मतुआ, गोरखा, आदिवासी ,राजबंशी और हिंदीभाषी समुदाय पिछले कुछ दशकों में एक मुखर मतदाता जनसांख्यिकीय के रूप में तेजी से उभरा है। भाजपा के पक्ष में यह एक ऐसा चक्रव्यू है जिसको तोड़ने के लिए टीएमसी सभी प्रकार का प्रयास कर रही है। पश्चिम बंगाल में सत्ता चाहने वाले राजनीतिक दल दोनों समुदायों को अपने पक्ष में रखने की होड़ में हैं।प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने 2019 में संसद द्वारा मंजूरी दिए जाने के वर्षों बाद 11 मार्च को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किया। सीएए 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से आए हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों के लिए भारतीय नागरिकता का मार्ग प्रदान करने के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करता है। 35 सीटें जीतने का लक्ष्य :पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की संभावनाओं पर विश्वास जताते हुए, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि अगर भगवा पार्टी को ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी से एक भी अधिक सीट मिलती है तो टीएमसी सरकार 2026 तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगी। यह दावा करते हुए कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) बंगाल भाजपा के लिए केंद्रीय इकाई के लिए राम मंदिर मुद्दे के समान एक वैचारिक मुद्दा है, मजूमदार ने कहा कि यह अधिनियम पार्टी को राज्य में चुनाव जीतने में मदद करेगा। मजूमदार ने कहा कि राज्य के लोगों ने लोकसभा चुनाव में भ्रष्ट और अराजक टीएमसी को हराने का फैसला किया है। हमने बंगाल से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। हम इसे लेकर आश्वस्त हैं। अगर हमें टीएमसी की सीट से एक भी अधिक सीट मिलती है, जो हमें मिलेगी, तो ममता बनर्जी सरकार 2026 तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगी। उनकी सरकार गिर जाएगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल अप्रैल में राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था। मतुआ बहुल क्षेत्रों में सीएए दिलाएगा फायदा? : नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन से पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में समुदायों के बीच अलग-अलग प्रतिक्रियाएं शुरू हो गई हैं। जबकि उत्तर 24 परगना और नादिया में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी शरणार्थियों का गठन करने वाले मतुआ समुदाय राहत और उत्साह व्यक्त कर रहे हैं, उत्तरी बंगाल में, विशेष रूप से राजबंशी समुदाय के बीच, एक बिल्कुल अलग तस्वीर उभरती है। पश्चिम बंगाल में दूसरे सबसे बड़े अनुसूचित जाति समूह के रूप में कुल आबादी का 3.8% मतुआ ने बांग्लादेश से आए हिंदू बंगाली शरणार्थियों के उचित पुनर्वास की लगातार वकालत की है। 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नादिया और उत्तर 24 परगना में राणाघाट और बनगांव जैसी मटुआ-प्रभुत्व वाली सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कृष्णानगर में वह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से मामूली अंतर से हार गई। हालाँकि, हाल के पंचायत चुनाव में, टीएमसी ने इन क्षेत्रों की 53 में से 49 पंचायतें जीतकर अपनी खोई हुई जमीन वापस पा ली। बीजेपी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। भाजपा अपनी दो सीटों को बरकरार रखने के लिए मटुआ समर्थन को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही। नादिया और उत्तरी 24 परगना के मतुआ बहुल इलाकों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने सीएए की शुरुआत को राजनीतिक जीत के रूप में मनाने के लिए जश्न कार्यक्रम आयोजित किए। बंगाल के हिंदीभाषी की ताकत : बंगाल में हिंदी भाषी ना आर्थिक रूप से बंगाल के विकास में साधक बने है बल्कि इनकी हैसियत अब यह है कि पंचायत, विधानसभा, नगर निगम या फिर लोकसभा चुनाव का परिणाम हो कभी भी उलट फेर कर सकते है। यही कारण है कि बंगाली बनाम नॉन बंगाली का मुद्दा पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीट पर कोई असर डाल सकता है? कभी इस मुद्दे पर घिरी तृणमूल कांग्रेस खुद मान रही है कि पश्चिम बंगाल की कई सीटों पर नॉन बंगाली हिंदी भाषी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि ममता दीदी ने बंगाली-नॉन बंगाली का भेद मिटा दिया है। तृणमूल कांग्रेस ने इसके महत्व को समझते हुए उन पर फोकस किया है। वहीं, जानकार मानते हैं कि नॉन बंगाली हिंदी मतदाताओं का वोट अगर भाजपा की तरफ एकमुश्त गया और साथ में सीएए, राम मंदिर का मुद्दा, संदेशखाली, राज्य सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी या केंद्र के लिह मोदी जैसे प्रचार जमीन पर काम करते दिखे तो भाजपा राज्य की लोकसभा सीटों पर नंबर वन पार्टी भी बन सकती है। भाजपा नेता राज्य में नंबर वन बनने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा भाजपा की बड़ी ताकत है। वहीं कई मुद्दों पर घिरी तृणमूल कांग्रेस, भाजपा को ही सीधे मुकाबले में मान रही है। तृणमूल कांग्रेस के नेता विवेक गुप्ता का दावा है कि इस बार तृणमूल कांग्रेस सतर्क है उसने पिछले चुनावों की गलतियों को दुरुस्त किया है। पार्टी नेता का कहना है कि हम भाजपा के प्रचार से प्रभावित हुए बिना अपनी रणनीति और वोटर तक पहुंचने पर फोकस कर रहे हैं।
पिछले चुनाव में TMC को 22 सीटें
तृणमूल कांग्रेस को लग रहा है कि वह इस बार लोकसभा चुनाव में राज्य में 30 सीट तक जीत सकती है। पिछले चुनाव में उसे 22 और भाजपा को 18 सीट मिली थीं। कांग्रेस ने यहां दो सीट जीती थीं। जानकारों का कहना है कि कोलकाता के अलावा नॉर्थ 24 परगना, सिलीगुड़ी, आसनसोल, दुर्गापुर, पुरूलिया और खड़गपुर में हिंदी भाषियों की तादाद इतनी है कि वे चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बंगाल की आबादी करीब 11 करोड़ है और इसमें करीब दो करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी हैं। जिनमें से करीब 72 लाख वोटर हैं।
हिंदी भाषियों को खींचने की कोशिश में सभी दल बंगाल की चुनावी लड़ाई में हर पार्टी हिंदी भाषियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरकारी दफ्तर में अमूमन होने वाले भेदभाव को ख़त्म कर दिया। वहां एनबी का टैग नॉन बंगाली के लिए लगता था और उनके कामों में रोड़ा अटकता था, अब यह प्रथा खत्म हो चुकी है। ‘बंगाली गौरव’ की राजनीति करने वाली ममता का रुख 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ अलग था। इस चुनाव के दौरान उन्होंने बयान दिया था कि जो बंगाल में रहता है, उसे बंगाली सीखनी होगी। इसके बाद भाजपा ने आरोप लगाया था कि ममता बंगाली और नॉन बंगाली लोगों को आपस में भिड़ाना चाहती हैं। नॉन बंगालियों में सबसे हिंदी भाषी सबसे ज्यादा
बंगाल की सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं,‘2019 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश के हिंदी भाषी लोगों का ज्यादा वोट भाजपा की तरफ गया, लेकिन हिंदी भाषियों की अच्छी-खासी संख्या ममता समर्थक भी है।’ बंगाल की कुल आबादी में करीब 15% नॉन बंगाली हैं। नॉन बंगालियों में सबसे ज्यादा हिंदी भाषी ही हैं। हिंदी भाषियों का प्रभाव इसी से पता चलता है कि कोलकाता के ज्यादातर बड़े उद्योगपति नॉन बंगाली हैं। ये राजस्थान-बिहार जैसे राज्यों से यहां आकर बसे हैं। भाजपा ने शुरू की हिंदी भाषियों में पैठ बनानी: 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद पार्टी ने पश्चिम बंगाल के हिंदी भाषियों में पैठ बनानी शुरू की। 2019 में लोकसभा में भाजपा को मिली सफलता में हिंदी भाषी वोटों का अहम योगदान माना जाता है। जानकार मानते हैं कि 2024 की लड़ाई में तस्वीर दिलचस्प है। तृणमूल कांग्रेस खुद ऊहापोह में है। एक तरफ कांग्रेस से उसका गठबंधन नहीं हो पाया। वहीं तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को सलाह दी गई है कि अधीर को छोड़कर कांग्रेस के किसी बड़े नेता के खिलाफ टिप्पणी नहीं की जाये। माना जा रहा है कि अंदर ही अंदर कुछ सीटों पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में अंडरस्टैंडिंग भी देखने को मिल सकती है।
2021 का वादा 2024 में पूरा
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पक्ष में फैसला सुनाया। ऐसे में अब भाजपा सीएए के साथ हिंदू शरणार्थी वोटों को मजबूत करने का लक्ष्य रख रही है। 2021 में भाजपा पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्ष थी, हालांकि, भगवा पार्टी ने बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में खराब प्रदर्शन किया। इसे भाजपा द्वारा सीएए को अधिसूचित नहीं करने के खिलाफ मतुआ के गुस्से के प्रतिबिंब के रूप में देखा गया था। हालाँकि, राजबंशी बड़ी संख्या में भाजपा के साथ रहे, जैसा कि उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है। सीएए को क्रियान्वित करके, भाजपा ने आखिरकार मतुआ समुदाय से अपना वादा पूरा कर लिया है और वह अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराने और दो साल पहले टीएमसी द्वारा की गई बढ़त को खत्म करने की कोशिश करेगी। रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button