दिल्ली में बैर नहीं, बंगाल में खैर नहीं’ की नीति से ममता की राजनीति पर उठने लगे सवाल
अधीर रंजन चौधरी ने कहा ममता राजनीति में बने रहने के लिए दे रही इस तरह का बयान
कोलकाता: लोकसभा के चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, 40 सीटों वाले बिहार की ही तर्ज पर 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में भी इस बार लोकसभा चुनाव के सभी चरणों में मतदान होना है। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा है कि हम इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन करेंगे और दिल्ली में ऐसी सरकार बनाएंगे जिससे बंगाल के लोगों को कोई दिक्कत न हो। उन्होंने एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए ये भी कहा कि लेफ्ट-कांग्रेस पर विचार ना करें, बंगाल में ये हमारे साथ नहीं हैं। ये बीजेपी के साथ हैं। ममता बनर्जी के इस बयान के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं।सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ममता बनर्जी को चार चरण के बाद इंडिया ब्लॉक के समर्थन की बात क्यों कहनी पड़ी? चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल की राजनीति ने अलग ही मोड़ ले लिया है, यहां टीएमसी और कांग्रेस की बंगाल इकाई एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। अपने एक बयान में ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी गठजोड़ का हिस्सा है और आगे भी रहेगी।साथ ही यह भी कह दिया है कि गठबंधन की सरकार बनी तो उसे बाहर से समर्थन देंगे। सवाल है कि जब ममता की पार्टी टीएमसी प्रदेश में बड़ी जीत के दावे कर रही है तो उसने चुनावों से पहले अपनी ही गठबंधन सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कहना क्यों शुरू कर दिया है।चुनाव में बहुत ही सतर्कता से आगे बढ़ रही हैं ममता: एक तरफ वह यह भी कह रही हैं कि दिल्ली में ऐसी सरकार बनवाएंगी जिससे बंगाल के लोगों को किसी तरह की दिक्कत न हो। लेकिन, खुद से ही उस सरकार का हिस्सा नहीं बनने का भी पहले से ही ऐलान कर रही हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ममता इस चुनाव में बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। एंटी-बीजेपी वोट बंटने को लेकर सावधान हैं ममता: उन्होंने पहले राज्य में कांग्रेस और लेफ्ट को खुद से दूर किया, क्योंकि किसी भी सूरत में एंटी-बीजेपी वोट को अपने पीछे जुटाए रखना चाहती हैं। इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए वह मतदाताओं से साफ कह रही हैं कि सिर्फ बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस के चक्कर में न पड़ें। लेकिन, दिल्ली में वह इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व की बात भी कह रही हैं और उसे बाहर से समर्थन देने की बात भी कहती हैं।दरअसल, तृणमूल चीफ को मालूम है कि अगर बीजेपी-विरोधी वोट कांग्रेस और लेफ्ट के पक्ष में गए तो उनकी सियासी जमीन खिसक सकती है। क्योंकि, उन्हें पता है कि बंगाल में प्रो-मोदी वोट टस से मस होने वाला नहीं है। इसलिए, वह मोदी-विरोधी मतदाताओं को बार-बार आगाह करना चाहती हैं कि राज्य में भाजपा को रोकने का विकल्प सिर्फ टीएमसी ही हो सकती है।
कम मार्जिन वाली सीटें हैं चिंता की वजह: अभी जिन 18 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें लगभग आधे उत्तर बंगाल की हैं, जो भाजपा के गढ़ माने जाने लगे हैं। अब चुनाव कोलकाता और दक्षिण बंगाल की ओर शिफ्ट हो रहा है। बंगाल में 2019 में कुल 18 सीटों पर हार और जीत का अंतर मात्र 0.1% से लेकर 8.5% के बीच था। पिछली बार कांग्रेस जो दो सीटें जीती भी थी, वह यही कम मार्जिन वाली सीटें थीं। बाकी 16 में से 8-8 बीजेपी और टीएमसी को मिले थे। ममता को पूरा अंदाजा है कि भ्रष्टाचार, संदेशखाली और कानून-व्यवस्था के मसले पर बीजेपी बहुत ही ज्यादा आक्रामक है। ऐसे में अगर फ्लोटिंग वोटरों का कुछ फीसदी भी इधर से उधर हुआ तो बहुत ही आसानी से बाजी पलट सकती है।ममता इस रणनीति पर चुनाव के शुरुआत से काम कर रही हैं, जिसे अब और ज्यादा धारदार बनाने की कोशिश में हैं। इस वजह से उन्होंने राज्य में इंडिया ब्लॉक से अलग अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और लेफ्ट और कांग्रेस पर बीजेपी के लिए काम करने का आरोप लगाती रही हैं।’मुझे ममता पर भरोसा नहीं…’, I.N.D.I.A. को लेकर CM ममता बनर्जी के बयान पर बोले अधीर रंजन: कांग्रेस आलाकमान को ममता बनर्जी की इस रणनीति का पूरा अंदाजा है। लेकिन, वह किसी भी सूरत में उन्हें नाराज नहीं करना चाहती या यूं कहें कि उस स्थिति में है भी नहीं। इसलिए, चार चरण के चुनाव बीत गए, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने वहां चुनावी रैली के लिए फटकने तक की कोशिश नहीं की। पार्टी ने सिर्फ एक तरह से ‘नूरा कुश्ती’ के लिए अधीर रंजन चौधरी को छोड़ रखा है, जिन्हें शायद ही ममता कभी गंभीरता से लेती हैं।
सात में से चार चरण का मतदान हो चुका है। पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं, 24 सीटों के लिए वोटिंग होनी है और सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मतदान के चार पड़ाव पार होने के बाद चुनाव बाद की रणनीति को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का रुख स्पष्ट कर दिया है।
बीजेपी की रणनीति सूबे में पीएम मोदी की लोकप्रियता कैश कराने के साथ ही भ्रष्टाचार और संदेशखाली जैसे मुद्दे पर आक्रामक प्रचार के जरिए मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है तो वहीं टीएमसी की कोशिश अपने वोटर्स को इंटैक्ट रखते हुए इसे और बढ़ाने की है। बीजेपी का स्ट्रॉन्ग होल्ड माने जाने वाले उत्तर बंगाल में मतदान हो चुका है जहां पार्टी को आठ में से सात सीटों पर जीत मिली थी। अब साउथ बंगाल यानि कोलकाता और आसपास की सीटों पर वोटिंग की बारी है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मजबूती से उभरने तक सूबे की सियासत में टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे. दोनों ही दलों का वोट शेयर और सीटों का ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता चला गया. ममता बनर्जी ने पहले कांग्रेस नेतृत्व की ओर से मान-मनौव्वल के बावजूद पश्चिम बंगाल में टीएमसी के अकेले लड़ने का ऐलान किया तो उसके पीछे भी अस्तित्व तलाश रहे इन दो दलों को फिर से खड़े होने के लिए अपनी जमीन नहीं देने की रणनीति, 2014 का प्रदर्शन दोहराने की कवायद से जोड़कर देखा गया। अब अगर ममता बनर्जी यह कह रही हैं कि हम दिल्ली में समर्थन करेंगे तो इसके पीछे दिल्ली के लिए एक सॉफ्ट सिग्नल है. ममता और उनकी पार्टी के नेता शुरू से ही सूबे में कांग्रेस के साथ चुनाव नहीं लड़ पाने के लिए अधीर रंजन चौधरी पर हमलावर रहे हैं लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लेकर आक्रामक बयानबाजियों से परहेज भी किया। कांग्रेस नेतृत्व भी पश्चिम बंगाल में चुनाव को पार्टी के नजरिए से कितनी गंभीरता से ले रहा है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि चार चरण में सूबे की 18 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की एक भी चुनावी रैली नहीं हुई। कांग्रेस नेतृत्व भी भविष्य में टीएमसी से गठबंधन की संभावनाएं खुले रखना चाहता है। शायद यही वजह है कि पार्टी बंगाल की लड़ाई अधीर बनाम ममता ही रहने देने की रणनीति पर चल रही है।
2019 और 2014 में कैसे रहे थे चुनाव नतीजे: पिछले चुनाव में टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां, सभी अलग-अलग चुनाव मैदान में थे. टीएमसी और बीजेपी ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे तो वहीं कांग्रेस ने 40 और सीपीएम ने 31 सीटों पर. टीएमसी 43.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 22 सीटें जीतने में सफल रही थी और 19 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। बीजेपी को 40.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 18 सीटों पर जीत मिली थी और 22 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. वोटों के लिहाज से देखें तो टीएमसी को कुल मिलाकर 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 वोट मिले थे और बीजेपी को 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343. दोनों दलों के बीच वोटों के लिहाज से 17 लाख वोट का अंतर था और कांग्रेस-सीपीएम को ही मिला लें तो दोनों को 68 लाख वोट मिले थे।साल 2014 के चुनाव की बात करें तो टीएमसी को तब 39.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 34 सीटों पर जीत मिली थी। 9.7 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस को चार, सीपीएम को 23 फीसदी वोट शेयर के साथ दो और बीजेपी को 17 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें मिली थीं। 2019 में टीएमसी को 2014 के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। रिपोर्ट अशोक झा