सड़क चौड़ीकरण के नाम पर खानापूर्ति क्यों? लोगों में वन विभाग के प्रति बढ़ता आक्रोश


-जब पेड़ हटाकर सड़क नहीं होगा चौड़ा तो इसका फायदा ही क्या?
सिलीगुड़ी: अलग राज्य गोरखालैंड आंदोलन के दौरान मेथीबारी सुकना हिंसक आंदोलन का गवाह था। यहां आंदोलन के दौरान आक्रोशित समर्थकों ने थाना को आग के हवाले कर दिया था। सब इंस्पेक्टर संजय घोष खुखरी बार से मौत के मुंह में जाते जाते बचे थे। आज एक बार फिर यह क्षेत्र और यहां के लोग आक्रोशित है। यह आक्रोश हिंसात्मक नहीं बल्कि गणतांत्रिक है। इस क्षेत्र से दार्जिलिंग सिक्किम जाने वाली पर्यटको के वाहन, आर्मी मुख्यालय सुकना से लगातार गुजरती गाडियां, वन विभाग की वाहन के साथकई स्कूलों की चलने वाली बस छोटी सड़क के कारण आए दिन मुश्किलों का सामना करती आ रही थी। राष्ट्रीय राजमार्ग सामरिक दुष्टिकोण को ध्यान में रख इस मार्ग का चौड़ीकरण करवा रहा है। इस निर्माण को लेकर स्थानीय लोगों में व्यापक खुशी देखी जा रही थी। अचानक देखा जा रहा है की सड़क के दोनों किनारे लगे पेड़ों को हटाए बिना इस कार्य को पूरा किया जा रहा है। गोरखा पूर्व सैनिक अर्धसैनिक संगठन, सिलीगुड़ी डिवीजन की ओर से सुरेन प्रधान ने इस गंभीर समस्या को लेकर मीडिया के साथ एनएच के मुख्य कार्यकारी अभियंता देवब्रत ठाकुर, दार्जिलिंग डीएफओ वाइल्ड लाइफ को दार्जिलिंग जिलाधिकारी से भी बात की और समस्या का समाधान करने का आग्रह किया। सड़क को चौड़ा करने का काम काफी हो चुका है, लेकिन आज तक किसी भी एजेंसी ने पेड़ को हटाने की पहल नहीं की। इसको लेकर एक बार फिर गोरखा पूर्व सैनिक अर्धसैनिक संगठन सिलीगुड़ी डिवीजन की ओर से अंतिम बार आग्रह किया गया है। इस कार्य का वीडीओ बनाकर सांसद राजू बिस्ट और माननीय मंत्री नितिन गडकरी को भी भेजा है। सवाल उठता है कि अगर यह संपति निजी होती तो विभाग पुलिस के साथ कब का खाली करवाकर इसे हटा चुका होता। यहां तक राष्ट्रीय वन क्षेत्र गोरुमारा में आलीशान होटल निर्माण के लिए सैकड़ों पेड़ काट दिए गए। भोलेर आलो के लिए पर्यावरण नियमों के साथ समझौता किया गया। फिर आज इस गोरखा बाहुल्य क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण के नामपर खानापुरी क्यों? क्या गोरखा और गोरखा से जुड़े संगठनों की आवाज बिना आंदोलन के कभी नहीं सुना जायेगा। क्या वोट के लिए ही राज सरकार इस क्षेत्र को अपना एक आंख बताने की बात करती है या फिर पहाड़ की बहु लाकर भी पहाड़ के क्षेत्र में रहने वालों के साथ पूर्व की भांति मनमानी होती रहेगी। देखना है की इस मामले का हल निकलता है या फिर इसको लेकर कोई बड़ा आंदोलन होगा।रिपोर्ट अशोक झा

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