बंगाल में आठ सीटों पर हार जीत का पैमाना तय करते है आदिवासी वोटर
भाजपा की सभी सीटों पर जीत की उम्मीद, 2019 में जीती थी 5 सीट
कोलकाता: बंगाल के आठ सीटों पर आदिवासी मतदाता किसी पार्टी की हार-जीत में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इन आठ सीटों का कुछ हिस्सा झारखंड तो कुछ ओडिशा से लगता है।ये आठ सीटें संथाल, मुंडा ओरांव या कुरुख आदिवासी जनजातियों के बीच बंटी हुई हैं। इनके बीच में भाजपा तो आरएसएस के वनवासी कल्याण आश्रमों के जरिए लंबे समय से पैठ कर चुकी है लेकिन टीएमसी ने भी पैठ बनाने के लिए मेहनत की है। हाल ही में टीएमसी ने कई संथाल और मुंडा जनजाति की लोकल लीडरशिप को आगे बढ़ाया है। संथाल जनजाति के लोग मुख्य रूप से बांकुरा, पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर जिलों में निवास रहते हैं। संथालों की आबादी सबसे ज्यादा है। इसी तरह मुंडा जनजाति पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। ओरांव या कुरुख जनजाति पुरुलिया जिले के मैदानी इलाकों में रहती है। छठे चरण में जिन 8 सीटों पर 25 मई को मतदान होना है, उनमें तमलुक, मेदिनीपुर, पुरुलिया, बांकुरा, विष्णुपुर (आरक्षित), झाड़ग्राम (आरक्षित), घाटल और कांथी हैं। जानते हैं कि इन 8 सीटों पर कहां क्या स्थिति है।
तमलुक की स्थिति: 2019 में समीकरणों के चलते यह सीट टीएमसी के पास थी। उस समय तक शुवेंदु अधिकारी और दिब्येंदु अधिकारी भाजपा की वाशिंग मशीन में नहीं धुले थे। ईस्ट मेदिनीपुर जिले की इस सीट पर तब टीएमसी के दिब्येंदु अधिकारी ने भाजपा के सिद्धार्थ नस्कर को 1.9 लाख वोटों से हराया था। इससे पहले दिब्येंदु ने 2016 के उपचुनाव में सीपीएम की मंदिरा पांडा को करीब पांच लाख वोटों से हराया था। शुवेंदु अधिकारी अब भाजपा के साथ हैं, राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष हैं। शुवेंदु अधिकारी ने ही नंदीग्राम में किसानों की जमीन का मामला उठाकर सीपीएम के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था। लेकिन उनका नाम शारदा चिटफंड घोटाले में आया। इसके बाद राजनीतिक समीकरण बदल गए। शुवेंदु अधिकारी भाजपा में चले गए। अब भाजपा शारदा चिटफंड घोटाले की चर्चा ही नहीं करती है। भाजपा प्रत्याशी और पूर्व जज अभिजीत गंगोपाध्याय
इतना दबदबा होने के बावजूद भाजपा ने यहां से अधिकारी परिवार के किसी भी शख्स को टिकट नहीं दिया। यहां से भाजपा ने कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज अभिजीत गंगोपाध्याय को उतारा है। अभिजीत ने सेवाकाल के दौरान ही इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था। पूर्व जज अपने विवादास्पद फैसलों के लिए जाने जाते हैं। उनके फैसले टीएमसी की आलोचना के रूप में भी जाने जाते हैं। ममता बनर्जी ने कई बार उन्हें भाजपा का एजेंट कहा था। ममता बनर्जी ने पार्टी की युवा शाखा के “खेला होबे” गाने से मशहूर हुए देबांग्शु भट्टाचार्य को उतारा है। देबांग्शु पिछले विधानसभा चुनाव से ही मशहूर हो चुके हैं। हाल ही में भाजपा प्रत्याशी अभिजीत गंगोपाध्याय ने ममता बनर्जी पर विवादित महिला विरोधी टिप्पणी की। चुनाव आय़ोग ने 24 घंटे के लिए उनके प्रचार पर रोक लगा दी है। टीएमसी अपने प्रभाव और कार्यकर्ताओं के दम पर ही तमलुक से चुनाव जीतती रही है। हालांकि श्रेय अधिकारी परिवार लेता रहा है। लेकिन इस चुनाव में फैसला हो जाएगा कि तमलुक में अधिकारी परिवार लोकप्रिय है या फिर ममता बनर्जी के नाम पर वोट मिलेगा। 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने यहां चार सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा सिर्फ 3 विधानसभा सीटें जीत पाई थी।
कांथी लोकसभा की स्थिति: अगर किसी को भाजपा को देखना है तो बंगाल आइए। ऊपर तमलुक लोकसभा क्षेत्र की चर्चा में शुवेंदु अधिकारी के भाई दिब्येंदु अधिकारी का जिक्र आया था। वो 2019 में टीएमसी से लड़े और जीते थे। उस समय सारा अधिकारी परिवार टीएमसी में था। आज वही अधिकारी परिवार भाजपा में है और इस परिवार के हर सक्रिय सदस्य के पास भाजपा में कोई न कोई पद है। अब कांथी लोकसभा सीट को ही लीजिए। भाजपा ने इस सीट से शुवेंदु के सबसे छोटे भाई सौमेंदु अधिकारी को टिकट दिया है। सौमेंदु को टीएमसी के उत्तम बारिक चुनौती दे रहे हैं। 2019 में इसी सीट से टीएमसी के शिसिर अधिकारी ने भाजपा के देबाशीष सामंत एक लाश से ज्यादा सीटों से हराया था। लेकिन जरा ठहरिए, ये शिसिर राय कौन हैं। शिसिर राय दरअसल शुवेंदु अधिकारी के पिता है। शिसिर अधिकारी ने 2014 में टीएमसी टिकट पर सीपीएम के तापस सिन्हा को दो लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। शिसिर राय ने 2009 का चुनाव भी जीता था। कुल मिलाकर अधिकारी परिवार ने किसी समय टीएमसी पर कब्जा कर रखा था और ममता के करीबी लोगों में थे। अब इसी परिवार ने भाजपा पर कब्जा कर रखा है।2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने यहां तीन विधानसभा और भाजपा ने चार विधानसभा सीटें जीती थीं। इस तरह बहुत स्पष्ट है कि इस लोकसभा सीट पर भाजपा बेहतर स्थिति में है। लेकिन इस सीट पर इस बार तय हो जाएगा कि मतदाता अधिकारी परिवार के साथ हैं या फिर ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ हैं।घाटल की स्थिति:घाटल सीट टीएमसी के पास है। 2019 में बंगाली एक्टर दीपक अधिकारी (देव) ने भाजपा की भारती घोष को एक लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। दीपक अधिकारी 2024 का चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन ममता बनर्जी ने उनसे चुनाव लड़ने का जब अनुरोध किया तो वो तैयार हो गए। दीपक अधिकारी ने 2014 के चुनाव में सीपीआई के संतोष राणा को ढाई लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। भाजपा ने 2024 में उनके मुकाबले हिरण्मय चट्टोपाध्याय को उतारा है। कुल मिलाकर टीएमसी का पलड़ा यहां भारी है। इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट सीपीआई को मिली है, जिसने तपन गांगुली को उतारा है। लेकिन मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच है। 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी यहां की 6 विधानसभा सीटों पर जीती थी। भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली थी। झाड़ग्राम की स्थिति झाड़ग्राम लोकसभा क्षेत्र पूरी तरह से आदिवासी सीट है। यह वैसे भी अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए ही आरक्षित है। लेकिन यह सीट भाजपा के लिए कई तरह की मुसीबत पैदा कर रही है। 2019 में भाजपा के कुंअर हेम्ब्रम यहां से जीते थे। लेकिन मार्च 2024 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और कहा कि वो भाजपा से चुनाव नहीं लड़ेंगे। भाजपा उनके फैसले पर हैरान रह गई क्योंकि भाजपा के पास पहले से इस सीट पर प्रत्याशी बदलने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं था। भाजपा उनकी जगह बिल्कुल नए प्रणत टुडू को मैदान में उतारना पड़ा। उनके सामने टीएमसी के कालीपद सोरेन और सीपीएम के सोनामणि मुर्मू (टुडू) हैं। टीएमसी ने 2014 में यह सीट सीपीएम से छीनी थी लेकिन बाद में हार गई। 2021 के विधानसभा चुनाव में सभी सातों विधानसभा सीटें टीएमसी जीती थी। इस तरह टीएमसी यहां अभी भी बहुत मजबूत स्थिति में है।मेदिनीपुर की स्थिति:मेदिनीपुर में स्थिति बदली हुई है। वजह यह है कि यहां के सासंद दिलीप घोष को इस बार बर्धमान-दुर्गापुर से भाजपा टिकट मिला है और यहां से अग्निमित्रा पॉल को भाजपा ने उतारा है। अग्निमित्रा पहले फैशन डिजाइनर थीं लेकिन अब भाजपा की मुखर नेता बन चुकी हैं। 2019 में दिलीप घोष ने टीएमसी के मानस भुईया को करीब 89000 वोटों से हराया था। 2014 में यहां से टीएमसी की संध्या रॉय ने सीपीआई से यह सीट छीनी थी। टीएमसी ने 2024 में एक्टर जून मालिया को उतारा है, जबकि सीपीआई ने बिप्लव भट्टाचार्य को टिकट दिया है। कभी यह सीट सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता से जुड़ी रही है जो एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की कैबिनेट में देश के गृहमंत्री रहे थे। इसके छह विधानसभा क्षेत्र पश्चिम मेदिनीपुर में और एक पूर्व मेदिनीपुर जिले आते हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में एक पर भाजपा और 6 पर टीएमसी का कब्जा रहा था। इस तरह इस सीट पर टीएमसी का पलड़ा भारी कहा जा सकता है। पुरुलिया की स्थिति:पुरुलिया लोकसभा क्षेत्र भाजपा के प्रभाव वाली सीट है। 2019 में भाजपा के ज्योतिर्मय सिंह महतो को टिकट दिया था, जिन्होंने टीएमसी की मृगांका महतो को दो लाख से अधिक वोटों से हराया। भाजपा ने ज्योतिर्मय सिंह महतो को फिर से टिकट दिया है। टीएमसी ने शांतिराम महतो पर भरोसा जताया है। शांतिराम महतो ममता बनर्जी कैबिनेट में मंत्री हैं। इंडिया गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आई है। कांग्रेस ने नेपालदेव महतो को खड़ा किया है। 2021 के विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और दो सीटों पर टीएमसी जीती थी।
बांकुरा की स्थिति: बांकुरा भी भाजपा के प्रभाव वाली सीट है। 2019 में भाजपा के सुभाष सरकार ने टीएमसी के सुब्रत मुखर्जी को करीब पौने दो लाख वोटों से हरा दिया था। पेशे से डॉक्टर सुभाष सरकार केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। भाजपा ने उन्हें फिर से टिकट दिया है। टीएमसी की ओर से अरूप चक्रवर्ती खड़े हैं। इंडिया गठबंधन से सीपीएम) के नीलांजन दासगुप्ता खड़े हैं। इस लोकसभा सीट में सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से 2021 विधानसभा चुनाव में चार भाजपा और तीन टीएमसी ने जीती थीं।बिष्णुपुर की स्थिति:यह लोकसभा सीट अनुसूचित जाति उम्मीदवारों के लिए रिजर्व है। 2019 में भाजपा के सौमित्र खान ने टीएमसी के श्यामल संतरा को हराया था। 2014 में यही सौमित्र खान टीएमसी उम्मीदवार थे। तब खान ने सीपीएम सांसद सुस्मिता बाउरी को हराया था। 2024 में, भाजपा ने सौमित्र खान पर ही अपना भरोसा जताया है, जिनका मुकाबला टीएमसी की सुजाता मंडल और सीपीआई (एम) की शीतल कोइबोर्तो से होगा। लेफ्ट उम्मीदवार को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है. इसके विधानसभा क्षेत्रों में से एक पूर्व बर्धमान में है, और अन्य छह बांकुरा जिले में हैं। इनमें से 2021 के विधानसभा चुनाव में चार टीएमसी और तीन बीजेपी के पास चली गईं। यहां किसी एक पार्टी की स्थिति को मजबूत नहीं कहा जा सकता। देखना यह होगा कि भाजपा यहां अपने पांच सीटों के अलावा अन्य सीटों को जीत पाती है या अपने गढ़ को बचाने में विफल रहती है। रिपोर्ट अशोक झा