धूमधाम से मनाया जा रहा है बाबा लोकनाथ का तिरोधाम दिवस


सिलीगुड़ी: आज बाबा लोकनाथ का 134 वां तिरोधान दिवस है। हर साल यह दिन बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। कहते है की दुध और बतासा से बाबा भक्तों की झोली भर देते है। सिलीगुड़ी दार्जिलिंग मोड स्थित डागापूर पूर्वोत्तर के सबसे बड़े लोकनाथ मंदिर में देश विदेश से आए लाखों श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं। उसमे सबसे ज्यादा श्रद्धालु बांग्लादेश और कोलकोता से आते है। मंदिर के आयोजक और इससे जुड़े श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा लोकनाथ के भक्त शहर के हॉकर्स कॉर्नर स्थित मंदिर, सिलीगुड़ी के आश्रमपाड़ा, गोसाईपुर, रविंद्र नगर समेत विभिन्न स्थानों पर पूजा की जा रही है। कई श्रद्धालु उन्हें अपने घर में ही पूजा कर उन्हें याद कर रहे हैं। मंदिरों में पूजा के बाद सेल्फी लेने की होड़ लगी है। भक्तों का कहना है कि बाबा सिर्फ जल और बताशा से प्रसन्न होकर भक्तों की झोली भर देते है। बंगाल में बाबा की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का पता लगाना हो तो दुकानों के नाम देखिए, गाडिय़ों के पीछे लिखे नारे देखिए। अमूमन 20 में से एक दुकान का नाम बाबा लोकनाथ स्टोर होगा। हर पांचवी या छठीं गाड़ी में जय बाबा लोकनाथ लिखा होगा। उनकी समाधि की तस्वीर होगी। आखिर बाबा लोकनाथ इतने लोकप्रिय क्यों हैं। वे कौन से कारण हैं जो लंबे वामपंथी आंदोलन व शासनकाल के दौर में बाबा लोकनाथ जैसे हठयोगी के विचार और भक्तों की संख्या बढ़ाते रहे। इसका पता लगाने के लिए जब खोज शुरू हुई तो सामने आई ऐसी बातें जो उनके भक्तों को उनपर अटूट श्रद्धा के लिए प्रेरित करती हैं। बाबा लोकनाथ से जुड़े संस्मरण जो उन्हें ऊंचा योगी बताते हैं।136 साल की उम्र में वे ढाका पहुंचे जहां धनाड्य परिवार ने उनका आश्रम तैयार किया। वहां वे भगवा कपड़े और जनेउ धारण कर आसन की मुद्रा में बैठते थे। अगले 24 साल उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा की। तरह तरह के चमत्कारों से उनकी समस्याएं दूरी की। उनके भक्तों के मुताबिक बाबा को किसी ने कभी पलक झपकते नहीं देखा था। 160 साल की उम्र में भी समाधि लेते समय गोमुख आसन पर बैठे बाबा की पलकें खुली हुई थीं। उन्होंने शरीर छोड़ दिया था।
बाबा का जन्म व परिवार: लोकनाथ ब्रह्मचारी का जन्म सन 1730 में जन्माष्टमी के दिन कोलकाता शहर के उत्तर में कुछ मील की दूरी पर, बारासात के चाकला नामक गांव में हुआ था। उनके पिता रामनारायण घोषाल ने उन्हें संत बनाने के लिए 11 वर्ष की उम्र में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान, भगवान गांगुली को सौंप दिया जो पड़ोस के कचुआ नामक गांव में रहते थे। भगवान गांगुली उन्हें लेकर कोलकाता के कालीघाट ले आए और उन्हें वहां के मंदिरों के आसपास जंगलों में रहने वाले तपस्वियों के बीच अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया। लोकनाथ ने जंगलों और मैदानों में रहते हुए ब्रह्मचर्य और व्रत का पालन किया। अष्टांग योग से लेकर हठ योग के अविश्वसनीय कारनामे किए। शरीर के परमाणुओं और मन की प्रवृत्तियों को शुद्ध करने के संपूर्ण योगाभ्यास में 30 साल से अधिक समय लगा। लोकनाथ गहरी समाधि में परमात्मा में गहनतम अणु तक पहुंच सकते थे। ऐसा माना जाता है कि ‘लोकनाथ बाबा’ भगवान शिव के भक्त थे। ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म 1730 में हुआ था और उन्होंने 2 जून 1890 को अपना भौतिक शरीर त्याग दिया था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने 160 वर्ष की आयु में नश्वर संसार को छोड़कर अपने स्वर्गीय निवास के लिए प्रस्थान किया।अंत में वे हिमालय के लिए रवाना हुए और वहां बाबा ने आध्यात्मिक रोशनी की सबसे ऊंची चोटियों को छुआ और निर्विकल्प समाधि की स्थिति को प्राप्त किया, जो पूरे ब्रह्मांड या परमात्मा के साथ पूर्णता है। ज्ञानोदय के समय वे 90 वर्ष के थे। रिपोर्ट अशोक झा

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