बंगाल में कायम है दीदी का जादू, मोदी का मैजिक व अमित शाह की रणनीति हुई फेल
ममता के उत्तराधिकारी के रूप में अभिषेक ने स्थापित की अपनी मजबूती
अशोक झा, कोलकोता: 13 सालों के बाद भी अभी भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का ‘मां, माटी, मानुष’ का जलवा बरकरार है। साल 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कड़ी चुनौती के बावजूद ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में वापसी की थी और अब फिर जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी 400 पार और बंगाल में 35 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रही है। तृणमूल कांग्रेस ने बंपर जीत हासिल की थी। बीजेपी साल 2019 के आंकड़े को भी नहीं छू पाई और उसकी सीटों की संख्या में भारी कमी आई है। वहीं, लेफ्ट बंगाल में फिर से अपना खाता नहीं खोल पाया है और कांग्रेस भी हाशिये पर पहुंच गई है।लोकसभा चुनाव से पहले संदेशखाली चुनाव में मुद्दा बना था। संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था, लेकिन इस चुनाव में संदेशखाली के मुद्दे का कोई असर नहीं हुआ। बशीरहाट लोकसभा सीट जिसके अधीन संदेशखाली है, इस सीट से बीजेपी की उम्मीदवार और संदेशखाली आंदोलन की चेहरा रेखा पात्रा अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई और न ही बशीरहाट के अतिरिक्त राज्य के किसी अन्य लोकसभा क्षेत्र पर संदेशखाली का कोई प्रभाव पड़ा है। सभी 42 सीटों पर ममता ने खड़े किए उम्मीदवार: लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ इंडिया गठबंधन के गठन में अहम भूमिका निभाने के बावजूद सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस की कांग्रेस के साथ तकरार हो गयी थी। ममता बनर्जी ने कांग्रेस की मांग के अनुरूप सीट देने से इनकार कर दिया था और सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया था। इस तरह से राज्य में तृणमूल कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दल कांग्रेस और लेफ्ट अलग-अलग चुनाव लड़े। कांग्रेस और लेफ्ट का लगभग दर्जन भर सीटों पर समझौता भी हुआ था
मुस्लिम वोट ममता के साथ, नहीं हुआ विभाजन
लेफ्ट और कांग्रेस के एक साथ लड़ने और टीएमसी से मुकाबला को लेकर ऐसी धारणा बनी थी कि राज्य में मुस्लिम वोट विभाजित होंगे और इसका लाभ किसी न किसी रूप से बीजेपी मिलेगा, लेकिन चुनाव परिणाम इशारा कर रहा है कि लेफ्ट, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के अलग-अलग लड़ने के बावजूद मुस्लिम वोट विभाजित नहीं हुआ है। राज्य में मुस्लिमों की आबादी करीब 27 से 30 फीसदी है और कई लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों का वोट जीत के लिए काफी अहम माना जाता है. लेकिन चुनाव परिणाम से साफ है कि मुस्लिम वोट पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में पड़े हैं। मुस्लिमों ने खुल कर तृणमूल कांग्रेस का समर्थन दिया है। टीएमसी के खिलाफ नहीं चला भ्रष्टाचार का मुद्दा: चुनाव के दौरान बीजेपी ने राज्य में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. शिक्षक भर्ती घोटाले से लेकर राशन घोटाले को लेकर बीजेपी से लेकर माकपा और कांग्रेस नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस पर हमला बोला था। फिलहाल टीएमसी के कई आला नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं।पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में जेल में हैं, तो पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक राशन घाटाले के मामले में जेल में हैं। वीरभूम में टीएमसी के जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल गौ तस्करी के मामले में जेल में हैं। खुद अभिषेक बनर्जी और उनके पत्नी पर घोटाले में शामिल नेताओं के साथ मिलीभगत का आरोप लगा था। ईडी ने उनसे और उनक पत्नी रूजिरा बनर्जी से पूछताछ की थी। बीजेपी नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था, लेकिन इस चुनाव से साफ है कि उस हमले और भ्रष्टाचार का मुद्दे पर कोई प्रभाव परिणाम पर नहीं पड़ा है।
सीएए लागू करना भी नहीं हुआ कामयाब: चुनाव से पहले केंद्र सरकार की ओर से सीएए को लेकर अधिसूचना जारी की गई थी. इसका उद्देश्य बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को लुभाने की कोशिश की थी. इसमें बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया गया है, लेकिन चुनाव परिणाम से साफ है कि शरणार्थियों को नागरिकता, मतुआ को नागरिकता और घुसपैठ का मुद्दा भी ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाया है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर बंगाल में अपनी पकड़ साबित की थी, लेकिन इस चुनाव में उत्तर बंगाल में भी बीजेपी को धक्का लगा है. राजवंशी समुदाय के नेता अनंत महाराज को बीजेपी ने राज्यसभा में सांसद बनाया, लेकिन कूचबिहार लोकसभा चुनाव में इसका प्रभाव नहीं दिख रहा है। ममता-अभिषेक की जोड़ी ने फिर किया कमाल: राज्य में ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी की जोड़ी ने विधानसभा चुनाव के बाद जीत का सिलसिला बरकरार रखा है. इसके पहले नगरपालिका और पंचायत चुनाव में टीएमसी को बड़ी बढ़त मिली थी. ममता-अभिषेक ने जीत का सिलसिला बरकरार रखा है. चुनाव परिणाम से साफ है कि आधी आबादी (महिलाओं ) और युवाओं ने भी टीएमसी को खुला समर्थन दिया है. ममता सरकार द्वारा महिलाओं द्वारा लक्ष्मी भंडार योजना के तहत प्रति माह 1000 रुपए का भुगतान, छात्राओं को कन्याश्री के तहत स्कॉरशिप, वृद्धा पेंशन से लेकर विधवा पेंशन की राशि बढ़ाने जैसी योजनाएं ममता के पक्ष में रहीं और चुनाव परिणाम में इसका स्पष्ट प्रभाव दिखा है। रिपोर्ट अशोक झा