बांग्लादेश में हिंदुओं के स्थिति पर एकजुट हो सभी समाज के लोग
सभी दलों को एकजुट होकर करनी होगी चिंता, हिंदू और हिंदू मंदिरों की हो सुरक्षा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस वहां की अंतरिम सरकार के प्रमुख बन गए हैं। बीते कुछ दिनों में बांग्लादेश में जिस तरह से राजनीतिक संकट सामने आई है तब से वहां हिंसा बढ़ने को लेकर दुनिया भर के देशों ने चिंता व्यक्त की। इस दौरान वहां हिंदुओं पर हमले होने की कई खबरें भी सामने आई है। इस बीच आज सिलीगुड़ी महकमा के विभिन्न क्षेत्रों में इस घटना की निंदा करते हुए हिंदू सुरक्षा मंच के प्रशांत सरकार ने बंगाल के सभी वर्गों के लोगों को एकजुट होने का आह्वान किया। हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर चिंता जाहिर की कहा, “बीत कुछ दिनों में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के आंदोलन के दौरान हिंदू, बौद्ध और वहां के अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के साथ हो रही हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करता है। बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की लक्षित हत्या, लूटपाट, उनके घरों में आगजनी, महिलाओं के साथ जघन्य अपराध और मंदिरों जैसे श्रद्धास्थानों पर हमले जैसी क्रूरता असहनीय है। हिंदू जागरण मंच का आह्वान एकजुट रहें भारत के राजनीतिक दल: बांग्लादेश की कार्यकारी सरकार से मांग की है कि वह हिंदुओं पर हो रहे अत्याचर पर तुरंत सख्ती से रोक लगाएं और पीड़ितों के जान, माल और मान के सुरक्षा की व्यवस्था करें. उन्होंने कहा, “इस गंभीर समय में विश्व समुदाय और भारत के सभी राजनीतिक दलों से भी अनुरोध है कि बांग्लादेश में हिंसा के शिकार बने हिंदू, बौद्ध और अन्य समुदायों के साथ एकजुट होकर खड़े हों। भारत सरकार से आग्रह किया गया है कि बांग्लादेश में हिंदू बौद्ध आदि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने सुनिश्चित करने को लेकर हरसंभव प्रयास करें। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मोहम्मद यूनुस के अलावा सरकार में शामिल होने वाले 16 सदस्यों में से 13 को भी शपथ दिलाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोहम्मद यूनुस को शुभकामनाएं दीं और बांग्लादेश में जल्द ही स्थिति सामान्य होने, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित होने की उम्मीद जताई है। एक कमेटी भी बनी हुई है। हिंदुओं के घर जलाए जा रहे हैं, हिंदू महिलाओं को उनके घर से उठा लिया जा रहा है, हिंदुओं के व्यापारिक प्रतिष्ठानों में लूट हो रही है, मंदिरों को जलाया जा रहा है। जाहिर है कि भारत इन सब घटनाओं को लेकर चिंतित है. भारत सरकार लगातार बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ संपर्क में है। पर जब वहां कोई कानून व्यवस्था ही नहीं है तो अधिकारी क्या सच्चाई बताएंगे। इस तरह के अधिकारियों से संपर्क मात्र से हिंदुओं के जान-माल की रक्षा नहीं की जा सकती है। क्या अब समय नहीं आ गया है कि भारत वैसी ही हिम्मत और तत्परता दिखाए जैसा 1971 में देश ने दिखाया था? भारत हिंदुओं की रक्षा के लिए क्या कर सकता है?बांग्लादेश की सेना हो या खालिदा जिया, सबको है भारत की जरूरत: इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शेख हसीना भारत के प्रति पूर्ण समर्पित थीं। चीन और अमेरिका के दबाव में भी उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया जो भारत के हितों के विपरीत जाता। पूर्वोत्तर के आतंकवाद को पस्त करने में भी शेख हसीना ने मोदी सरकार की बहुत मदद की। पूर्वोत्तर के तमाम आतंकी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप, जो बांग्लादेश में चल रहे थे, उन्हें खत्म करने में उन्होंने मदद की। कई कुख्यात आतंकियों को भारत को बांग्लादेश ने सौंप कर आतंकवाद पर लगाम लगाने का काम किया। जाहिर है कि अभी कुछ साल अवामी लीग फिर से सत्ता में आने से रही।बीएनपी की खालिदा जिया शुरू से ही पाकिस्तान और अमेरिका समर्थक रही हैं। उनकी पूरी राजनीति भारत विरोध पर टिकी रही है। इसलिए ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए की वो भारत विरोधी रणनीति पर ही काम करेंगी। पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ऐसा महसूस किया जा रहा था कि भारत के लिए परेशानी और बढ़ेगी. पर आज भारत अपने पड़ोसियों में सबसे ज्यादा निश्चिंत शायद अफगानिस्तान से ही। इसी तरह से अगर भविष्य में खालिदा जिया अगर सत्ता में आती हैं तो उनकी भी मजबूरी होगी भारत से रिश्ते सुधारना। अगर सैन्य शासन कंटीन्यू होता है तो उसे भी भारतीय समर्थन की जरूरत होगी। इसलिए हिंदुओं को बचाने के लिए सबसे पहला प्रयास तो वर्तमान में बंग्लादेश में जो भी सत्ता में आए उससे बात करने की होनी चाहिए। अगर फिर भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा नहीं रुकती है तो दूसरे कदमों पर विचार करना चाहिए।भारत की बिजली और अन्य मदद पर निर्भर है बांग्लादेश भारत का बांग्लादेश में अरबों का निवेश है।दक्षिण एशिया में बांग्लादेश हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2022-23 के बीच दोनों देशों के बीच का कुल व्यापार 15.93 बिलियन अमेरिकी डालर रहा है। ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देश कई प्रोजेक्ट्स पर संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं. बांग्लादेश वर्तमान में 1160 मेगावाट बिजली भारत से आयात कर रहा है।दोनों देशों के बीच भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन बेहद अहम है। भारत ने पिछले एक दशक में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाहों के निर्माण के लिए हजारों करोड़ रुपये दिए हैं।बांग्लादेश भारत पर बिजली के लिए निर्भर है. भारत के हाथ खींचने से बांग्लादेश के कई प्रोजेक्ट्स रुक सकते हैं। बांग्लादेश पहले से ही चीन का कर्जदार है .चीन का कर्जा इतना बढ़ चुका है कि चीन अब बिना कुछ लिए मदद नहीं करने वाला है। खालिदा जिया हों या सेना कोई भी नहीं चाहेगा कि कर्ज के लिए चीन की ऐसी शर्तों को मानें जो देश के स्वाभिमान के खिलाफ हैं। अलगाववादी आंदोलनों को दे सकते हैं हवा: दक्षिण एशिया की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि किस तरह बांग्लादेश, म्यांमार और भारत के पूर्वी ईसाई बहुल हिस्सों को मिलाकर एक ईसाई देश बनाने की तैयारी चल रही है। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने भी एक बार कहा था कि पश्चिमी देशों की योजना है कि ईस्ट तिमोर जैसा एक ईसाई देश बनाया जा सके, जो सीधे उनकी उंगली पर नाच सके। हसीना ने यह भी कहा था कि एक ह्वाइट मेन बांग्लादेश के एक द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति मांग रहा था। समझा जाता है कि उनका इशारा अमेरिका की ओर था. बांग्लादेश में तख्तापलट से भी समझा जा रहा है कि अमेरिकी एजेंसियों का हाथ है। भारत को खुलकर इस अलगाववादी आंदोलन को हवा देनी चाहिए। रही बात भारत के हिस्से की तो भारत आर्थिक और सामरिक दोनों तरीकों से इतना ताकतवर हो चुका है कोई भी यहां का स्टेट या समुदाय फटेहाल लोगों के साथ नहीं जाना चाहेगा। भारत को बांग्लादेश में काफी समय से चल रहे बंगभूमि आंदोलन को हवा देना होगा। इस अलगाववादी आंदोलन की कल्पना बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए बांग्लादेश में एक अलग बंगाली हिंदू देश बनाने की है। वंगा ऑर्मी एक अलगाववादी हिंदू संगठन है।1971 में भारतीय सेना ने मुक्तिवाहिनी को ट्रेनिंग दी, जो बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करने में काम आया। जिस तरह हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं उसकी भयावहता को देखते हुए भारत को हिंदू अल्पसंख्यकों की दूरगामी सुरक्षा सुनिश्चित करने की रणनीति पर काम करना होगा। भारत के निकट बांग्लादेश में हिंदुओं की घनी आबादी वाले क्षेत्र स्थापित किए जाएं। अगर हम यह नहीं कर सके तो बांग्लादेश में घटती हिंदुओं की संख्या को विलुप्त होते देखेंगे. यही नहीं संभवतः उनकी सुरक्षा में हमारे समूचे पूर्वोत्तर के भविष्य की सुरक्षा भी हो सकेगी। बीएनपी और जमात इस फिराक में हैं कि अवामी लीग का कोई नामोनिशान बांग्लादेश में न बचे.शायद यही कारण है कि वहां योजनाबद्ध तरीके से हिंसा का दौरा लंबा खिंच रहा है। फिलहाल भारत के लिए कोई मुश्किल नहीं है. क्योंकि भारतीय सेना बांग्लादेश से बहुत ताकतवर है। भारत अब परमाणु संपन्न देश भी है। भारत चाहे तो दबाव बनाकार बांग्लादेश के हिंसाग्रस्त इलाकों में फंसे हिंदुओं और अवामी लीग समर्थकों को वहां से निकाल कर भारतीय सीमा के निकट बांग्लादेशी भूमि पर ही राहत शिविरों में लाए।