बंगाल में क्यों उठ रहीं राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग?

क्या इससे ही होगा इसका समाधान? या कुछ और सोच रहा केंद्र सरकार

अशोक झा, कोलकाता: महिला डॉक्टर के साथ हुए इस दुष्कर्म और हत्या की घटना के बाद से पूरे पश्चिम बंगाल में उथल-पुथल मच गई है। आम नागरिक, डॉक्टर और छात्र सभी इस घटना के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। उनके द्वारा किए गए प्रदर्शन और विरोध प्रदर्शन ने सरकार को घेर लिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जो लोग तिरंगा लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वे भाजपा समर्थक हैं और उनके विरोध को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया। हालात हैं इतने गंभीर कि राष्ट्रपति तक को ऐसी प्रतिक्रिया देनी पड़ी रही है। सुप्रीम कोर्ट भी पश्चिम बंगाल सरकार को कड़ी फटकार लगा चुका है। इस सारे घटनाक्रम पर राजनैतिक प्रेक्षकों ने संभावना जताई है। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगने की पूरी संभावना जताई है।शायद राज्यपाल की रिपोर्ट पहले से ही गृह मंत्रालय में मौजूद है।अब केवल केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मुहर लगना बाकी है। अनुच्छेद 356 के तहत प.बंगाल में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव पर मुहर लगना बाकी है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस बयान के बावजूद, लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। उन्होंने जब सड़कों पर उतरकर प्रदर्शनकारियों से बात की, तो लोगों ने उनसे सवाल किया कि वह किसके खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं। इस घटना को लेकर ममता बनर्जी की आलोचना बढ़ती जा रही है और अब लोग बंगाल सरकार के खिलाफ भी आवाज उठाने लगे हैं। क्यों उठ रहीं पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग? क्या यही है इसका स्थाई समाधान या केंद्र सरकार कुछ और सोच रही है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस मामले पर पहली बार सार्वजनिक रूप से बयान दिया है। उन्होंने घटना पर गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की है। राष्ट्रपति ने कहा कि इस प्रकार के अपराधों को किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है क्योंकि अपराधी खुले में घूम रहे हैं और पीड़िता के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोग न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राष्ट्रपति के बयान के बाद पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है और लोग इस बात की मांग कर रहे हैं कि कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। धरना-प्रदर्शन होता है। इस्तीफा मांगा जाता है। लेकिन वो चुल्लूभर पानी कहीं नहीं दिखता जिसमें डूब कर महापाप करने वाले खुद डूब मरें। कोलकाता की डॉक्टर बेटी को इंसाफ दिलाने की लड़ाई दावानल का रूप ले लेगी। ये शायद नेताओं ने तो नहीं ही सोचा होगा. कोलकाता की डॉक्टर बेटी से हुई हैवानियत के बाद पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है।सियासत का पानी हजारों डिग्री सेल्सियल की उबाल मार रहा है। लगातार हो रहे धरना-प्रदर्शनों के बीच ममता बनर्जी की कुर्सी छिनने की अटकलें तेज हो गई हैं। बंगाल में राष्ट्रपति शासन की सुगबुगाहट:पश्चिम बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं। कभी महिला को सरे आम सड़क पर पीटा जाता हैं तो कहीं पंचायत में कुछ नेता ‘कंगारू कचहरी’ लगातर इंसाफ करते है। ऐसे में कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर का रेप और हत्या के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन की अटकलें लग रही हैं। बीजेपी लगातार बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है। राज्यपाल सीवी आनंद बोस दिल्ली आकर रिपोर्ट दे चुके हैं। बोस ने महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अलावा देश के गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की है इसके बाद चर्चा तेज हो गई कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
‘बलात्कार सियासी मुद्दा नहीं समाज के मुंह पर तमाचा है’
कांग्रेस, टीएमसी या अन्य किसी विपक्षी दल शासित राज्य में बलात्कार की वारदात हो तो बीजेपी के नेता सुबह शाम उस प्रदेश को मुख्यमंत्री को कोसते हुए इस्तीफा मांगने लगते हैं। ठीक उसी तरह जब बीजेपी शासित राज्य में बलात्कार की कोई घटना होती हो तो पूरा विपक्ष इसे इश्यू बनाकर इस्तीफा मांगने लगता है। ये दुर्भाग्य है कि सभी दलों के नेता अपने अपने राज्यों की हैवानियत पर चुप्पी साध लेते हैं। भाजपा ने बुधवार को कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की टिप्पणी इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाती है और अब समय आ गया है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ऐसे मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जाए। बीजेपी की ये प्रतिक्रिया राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा लिखे गए एक विशेष हस्ताक्षरित लेख के बाद आई है, जिसमें उन्होंने पहली बार कोलकाता में एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या पर बात की और महिलाओं के खिलाफ जारी अपराधों पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है। ‘दीदी’ को खटका लगा तो डे डाली धमकी?: बीजेपी नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी इस मुद्दे को लेकर भयभीत दिख रही हैं। इसलिए लगातार बीजेपी शासित राज्यों के खिलाफ ‘आग’ उगलते हुए बहुत कुछ जल जाने की धमकी दे रही है। वहीं राष्ट्रपति की राय पब्लिक डोमेन में आने के बाद अटकले लग रही है कि क्या ममता दीदी की कुर्सी छीन ली जाएगी और उनकी सत्ता जाने वाली है? यह सबसे बड़ा सवाल दिल्ली से लेकर बंगाल तक हर किसी के दिमाग में तेजी से घूम रहा है। क्या बीजेपी बंगाल में लगाने वाली है राष्ट्रपति शासन?: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए कहा कि ”बस! बहुत हो चुका। अब वो समय आ गया है कि भारत ऐसी ‘विकृतियों’ के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘कम शक्तिशाली’, ‘कम सक्षम’ और ‘कम बुद्धिमान’ के रूप में देखती है। राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं. भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं। वो एक महिला हैं। देश की हर बेटी उनमें अपनी मां की छवि देखती है। ऐसे में कोलकाता कांड पर राष्ट्रपति के बयान से मामले की गंभीरता और गहराई को समझा जा सकता है।।एक दशक से अधिक समय से विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेता बीते 10 सालों से ये कहते नहीं थक रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ भी नया नहीं किया। देश में जो कुछ हुआ कांग्रेस पार्टी ने किया. नेहरू-गांधी परिवार ने किया। उनकी नीतियों ने किया. मोदी जो कर रहे हैं वो कांग्रेस का विजन था। उसका सपना कांग्रेस नेताओं ने देखा था। इसके बाद बीजेपी नेता अपनी सरकार के कामकाज गिनाते हुए कांग्रेस के आरोपों का काउंटर करते हैं। अब समझने की बात ये है कि कांग्रेस ने भारत में अपने लंबे शासन काल में कई राज्य सरकारों को राष्ट्रपति शासन लगाकर बर्खास्त किया था। अब कांग्रेस नेताओं की उस बात पर गौर करें जिसमें वो कहते हैं कि बीजेपी और मोदी, कांग्रेस के कामों को कॉपी-पेस्ट कर रहे हैं। तो क्या बीजेपी, अब बंगाल का किला ढहाने के लिए उसी अस्त्र का इस्तेमाल तो नहीं करने जा रही, जिससे कांग्रेस पार्टी की पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों ने कई राज्यों में विपक्ष की सरकारों को वहां की कानून व्यवस्था संभालने के नाम पर गिरा दिया था।।शायद यही डर ‘दीदी’ यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लगने लगा होगा कि जिस तरह बीजेपी नेता, टीएमसी की सरकार को गिराने की बात कर रहे हैं उनका इस्तीफा मांग रहे हैं, ऐसे में महिला राष्ट्रपति की राय को आधार बनाकर कहीं केंद्र की सरकार आर्टिकल 356 का इस्तेमाल करके उनकी सरकार तो नहीं गिरा देगी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की ताकत देता है। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को ये शक्ति प्राप्त है कि वो राज्य में संवैधानिक तंत्र के असफल या कमजोर पड़ जाने पर राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन ले सकता है।राष्ट्रपति शासन लग जाता है तो ममता बनर्जी के पास क्या विकल्प होगा?: संविधान एक्सपर्ट्स का कहना है कि जिस भी सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है उसके पास कोर्ट जाने का विकल्प हमेशा मौजूद है। पहले भी कोर्ट में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसलों को कोर्ट पलट चुका है। आखिरी बार 2017 में उत्तराखंड में भी ऐसा हो चुका है। तब कोर्ट ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पलटकर हरीश रावत सरकार को बहाल कर दिया था। ममता की बंगाल में जिस तरह की छवि है उससे वो कोर्ट के साथ जमीन पर भी लड़ाई शुरू कर सकती हैं। राज्य में पद यात्रा या धरने और रैलियां करके ये संदेश जनता तक पहुंचाने की कोशिश कर सकती हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ। बंगाल में कब-कब राष्ट्रपति शासन लगा?: बंगाल में आखिरी बार 29 जून 1971 को राष्ट्रपति शासन लगा था। नई विधानसभा के गठन के बाद 20 मार्च 1972 को राष्ट्रपति शासन हटा था। कुल मिलाकर बंगाल में अब तक चार बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। पहली बार 1 जुलाई 1962 को नौ दिन के लिए, दूसरी बार 20 फरवरी 1968 में करीब एक साल के लिए और तीसरी बार 19 मार्च 1970 में करीब एक साल के लिए राष्ट्रपति शासन लगा था। सत्ता, सेवा का साधन है या कुछ और? इस सवाल पर नेताओं की अपनी अलग-अलग राय और दृष्टि हो सकती है। राहुल गांधी ने एक सियासी किस्सा सुनाते हुए कभी कहा था – ‘सत्ता जहर होती है.’ ऐसे में जब बंगाल का मामला तूल पकड़ रहा है, तो एक बार फिर सत्ता को गिराने वाली ताकत की चर्चा तेजी हो गई है।

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