आज से कलश स्थापना के साथ नवरात्र महोत्सव शुरू
अशोक झा, सिलीगुड़ी: नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घट स्थापना कर दुर्गा मां का आवाहन किया जाता है और फिर भक्ति-भाव से पूरे 9 दिनों तक उनके 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस साल की शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ आज 3 अक्टूबर गुरुवार को दो शुभ संयोग में हुआ है। नवरात्रि के पहले दिन इंद्र योग और हस्त नक्षत्र है। कैलाश से मां दुर्गा का आगमन डोली में हुआ है।शारदीय नवरात्रि 11 अक्टूबर को समाप्त होंगी। कुछ पंचांग में नवमी और दशहरा तिथि 12 अक्टूबर को बताई गई है। लिहाजा उसके अनुसार नवरात्रि 10 दिन की होंगी. अधिकांश पंचांग में अष्टमी और नवमी तिथि 11 अक्टूबर को है. इसके अनुसार 11 अक्टूबर को हवन और कन्या पूजन होगा।
शारदीय नवरात्रि स्थापना 2024: पंडित अभय झा के अनुसार इस साल शारदीय नवरात्रि पर घट स्थापना के वैसे तो कई शुभ मुहूर्त दिए गए हैं. लेकिन इनमें 2 मुहूर्त सबसे शुभ हैं।घट स्थापना का सबसे पहला शुभ मुहूर्त – 3 अक्टूबर, गुरुवार को सुबह 06:14 से 07:23 मिनट तक है।घट स्थापना के लिए दूसका शुभ अभिजीत मुहूर्त – 3 अक्टूबर की सुबह 11:47 से दोपहर 12:34 मिनट तक है।कलश स्थापना मंत्र : कलश स्थापना करते समय इस मंत्र का जाप करें – ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।
कलश स्थापना सामग्री : जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र जिसका मुंह बड़ा हो, साफ मिट्टी, मिटटी का एक छोटा घड़ा, कलश को ढंकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन, गंगा जल, सुपारी, 1 या 2 रुपए का सिक्का, आम की पत्तियां, अक्षत / कच्चे चावल (चावल टूटे हुए ना हों), कलावा, जौ (जवारे), इत्र, फूल और माला, नारियल, लाल कपडा या लाल चुन्नी, दूर्वा घास, पान.।
कलश स्थापना विधि : नवरात्रि में कलश स्थापना करके देवी का आह्ववान किया जाता है. इसके लिए पहले घर की अच्छी तरह साफ-सफाई कर लें. फिर नवरात्रि के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. लाल, हरे, पीले, गुलाबी जैसे रंग के साफ कपड़े पहनें. फिर पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें. फिर मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमे जवारे के बीज डाल दें. अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें और फिर बीज डालें. उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डालें. बीजों को खड़ी अवस्था में लगाएं ताकि उगने पर बौला ऊपर की ओर आएं. फिर अब कलश और मिट्टी के पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें। साथ ही तिलक भी करें।इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें. कलश के जल में इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें. फिर कलश के किनारों पर अशोक के 5 पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें. अब एक नारियल को लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेटें, पोटली में कुछ पैसे भी रखें। इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें।इसके बाद जमीन में कुछ चावल या गेहूं रखे, उसके ऊपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें. उसके ऊपर मिट्टी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें. इस दौरान कलश स्थापना मंत्र िर सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत तरीके से नवरात्रि पूजन करें. इस कलश को 9 दिनों तक मंदिर में ऐसे ही रखा रहने दें। सुबह-शाम थोड़ा-थोड़ा पानी डालें। साथ ही पूजा-आरती करें, दीपक लगाएं। यह उत्सव बड़े व्यापक रुप से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जगह-जगह भव्य पांडालों एवं झांकियों के साथ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है।इन स्थलों की सजावट तो देखते ही बनती है। इन दिनों सारा वातावरण मां दुर्गा की भक्ति से सराबोर रहता है, सारा देश भक्तिमय रहता है। नवरात्रि पर्व को मनाने के पीछे पौराणिक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है। एक समय की बात हैं ब्रम्हा आदि देवताओं ने पुष्प आदि विविध प्रकार से मां दुर्गा की पूजा की। फलस्वरुप दुर्गा जी प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब दुर्गा की ममतामयी वाणी सुनकर देवतागण बोले – हे देवी हमारे शत्रु महिषासुर को, जो संपूर्ण जगत के लिये त्रासद का कारण था जिसे अपने हाथों से आपने संहार किया था. तब से समस्त विश्व निरापद होकर चैन की सांस ले पा रहें हैं। आपने पृथ्ची के समस्त दृष्टों अत्याचारियों का वध करके सब देवताओं को भयमुक्त कर दिया है। अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की अभिलाषा नहीं है। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि आपकी आज्ञा है, इसलिये हम जगत की रक्षा के लिये आपसे कुछ पूछना चाहते हैं- महेश्वरी ! कौन सा ऐसा उपाय है कि जिससे आप शीघ्र प्रसन्न होकर संकट में पड़े जीव की रक्षा करती हैं। देवश्वरी यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बताइये! देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयालू मां ने कहा देवगण यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ है। मेरे बत्तीस नामों की माला सब प्रकार के दुःखों और विपत्तियों का नाश करने वाली है। तीनों लोकों में इसके समान दूसरी कोई स्तुति नहीं हैं।यह स्तुति रहस्य रूप है। इमे बताती हूं। सुनो ये बत्तीस नाम हैं (1) दुर्गा (2) दुर्गर्तिशमनी (3) दुर्गा पाद्धि निवारिणी (5) दुर्ग नाशिनी(6) दुर्गा साधिनी (7)) दुर्ग तौधरनी (8) दुर्ग मच्छेदनी(9) दुर्गमापडा (10) दुर्गमज्ञानदा(11) दुर्गा दैत्यलोक दानवला(12) दुर्गमा(13) दुर्गमालोका(14) दुर्गामात्म स्वरूपिणी(15) दुर्गमार्गप्रभा(16) दुर्गम विद्या(17) दुर्गा मांश्रिता(18) दुर्गम ज्ञानस्थाना(19) दुर्ग मोहा(20) दुर्ग मध्यानभाषिनी (21) दुर्गमना(22) दुर्गमार्थ स्वरुपिणी (23) दुर्गमासूर सहंस्त्री(24) दुर्गमां युद्धधारिणी(25) दुर्गभीमा (26) दुर्गामता (27)दुर्गम्या(28) दुर्गमेश्वरी(29) दुर्गमांगी (30)दुर्गभामा (31) दुर्गभाऔर (32) दुर्गमांगी
“नामावलिमियां यस्तु दुर्गाया मम मानव:। पढेत् सर्वभवान्मुक्तों भविष्यति न संशयः ।। कहा जाता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन दुर्गाजी के इन नामों का एक सौ आठ बार पाठ करता है उसके लिये तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं रहता है। वह निःसंदेह सब प्रकार के भय के मुक्त हो जाता है। कोई शत्रुओं से पीड़ित हो दुर्भेट्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के उच्चारण मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। विपत्ति के समय इसके समान अवनाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण! इस नाम माला का पाठ करने वाले मनुष्यों की कभी कोई हानि नहीं होती। हमारे देश में दुर्गाजी की प्रतिमा जो मूर्तिकारों द्वारा बनाई जाती है अक्सर आप सभी ने देखा होगा वे सभी शेर पर सवार एवं अष्टभुजी, हर हाथों में ‘ढाल, तलवार, आदि हथियार रहते हैं, तो इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। जब देवताओं ने मां दुर्गा जी से उनकी प्रसन्नता का रहस्य पूछा था तो देवी ने उनके समक्ष उपरोक्त बत्तीस नामों के पाठ का उल्लेख तो किया ही, साथ ही यह भी कहा था कि उनकी सुंदर मिट्टट्टी की क्रमशः गदा, खड़ग, त्रिशूल बाण, धनुष, वाली बाल, मुग्दर और कमल धारण करावें एवं अष्टभुजा मूर्ति बनायें! मूर्ति के मस्तक में चंद्रमा का चिन्ह हो उसके तीन नेत्र हो, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंह पर सवार हो औरमहिषासुर का वध कर रही हो। मां का 16 श्रृंगार होना चाहिए। सोलह श्रृंगारों में यथा (1) शौच (2) उबटन (3) स्नान (4) केश बंधन) (5) अंगराज (6) अंजन (7) महावर (8) दंतरंजन (9) तांबूल (10) वसन (11) भूषण (12) सुगंध (13) महावर (14) कुंमकुम (15) भाल तिलक एवं (16) चिबुक बिंदु । को शामिल किया गया है। इस प्रकार मां की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मूर्ति का पूजन करने से भक्तों की सब मनोकामना पूर्ण होती है।दुर्गापूजा भारत के अलावा कई देशों में भी की जाती है। दुर्गापूजा की परंपरा सिंधु कालीन सभ्यता के समय से इतिहास वेत्ताओं ने माना है। खुदाई से प्राप्त मूर्तियों, सिक्को में अंकित लिंग, वोनी, नंदीपद, स्त्री की सिंह सवार मूर्ति आदि से उक्त मान्यता को बल मिलता है कि प्राचीन समय से ही शक्ति पूजा कीपरंपरा थी। वर्तमान में दुर्गा पूजा कोजापान में चनेष्टि यूनान में दीमेतारे तिब्बत में लामो मिश्र में आईसिस हैथर के नाम से पूजित किया जाता है। महाभारत के युद्ध के समय भी दुर्गा पूजा का एक विशेष उल्लेख आता है। जब कुरुक्षेत्र में युद्ध शुरू होने के पूर्व श्री कृष्ण ने अर्जुन की विजय श्री के लिए माँ दुर्गा की पूजा एवं उपासना की थी। श्री दुर्गा सप्तशती में दुर्गा देवी के जन्म की और उनके द्वारा अनेक राक्षसों का वध कर देवताओं को सुरक्षा प्रदान करने का विस्तार से वर्णन है। इसी परम धार्मिक ग्रंथ में देवी के नौ रूपों का भी उल्लेख है, जिसमें प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी तृतीय चंद्रघंटा चतुर्थ कूष्मांडा पंचम स्कंध माता षष्टम कात्यायनी सप्तम कालरात्रि अष्टम महागौरी एवं नवम व अंतिम दुर्गा सिद्धिदात्री का पूर्ण वर्णन किया गया है।