भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं ? : अश्विनी उपाध्याय
दुर्भाग्य से ‘भारतीय नागरिक संहिता’ को हमेशा तुष्टीकरण के चश्मे से देखा जाता रहा है।
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आज सिलीगुड़ी अग्रसेन भवन में एक देश एक कानून को लेकर एक सेमिनार आयोजित की गई। इसे सर्व हिंदी विकास मंच एवं भारत विकास परिषद, सिलीगुड़ी ने आयोजित किया था। मंच पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ प्रचारक सह शिक्षाविद लक्ष्मी नारायण भाला उर्फ लख्खी दा, सर्व हिंदी विकास मंच के अध्यक्ष कैलाश कंदोई, विशेष अतिथि सुशील ब्लेरिया , कार्यक्रम संयोजक सीताराम डालमिया, गंगाधर नकीपुरिया मौजूद थे। सेमिनार में देश के जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि बोलवरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि, हमारा भारत देश बाइबिल या कुरान से नहीं बल्कि संविधान से चलता है। संविधान (सम+विधान) का अर्थ है- ऐसा विधान जो सब पर समान रूप से लागू हो, बेटा हो या बेटी, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई. मां के पेट में बच्चा नौ महीने ही रहता है और प्रसव पीड़ा भी बेटा-बेटी के लिए एक समान होती है। इससे स्पष्ट है कि महिला-पुरुष में भेदभाव भगवान, खुदा या जीसस ने नहीं बल्कि इंसान ने किया है।उपाध्याय बताते हैं कि, अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1961 में बनाया गया पुलिस एक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानून बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू हैं. पुर्तगालियों द्वारा 1867 में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड भी गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है. लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद बनाया गया आर्टिकल 44 अर्थात समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कभी भी गंभीर प्रयास नहीं किया गया और एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया।जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और लिंग आधारित अलग-अलग कानून 1947 के विभाजन की बुझ चुकी आग में सुलगते हुए धुएं की तरह हैं जो विस्फोटक होकर देश की एकता को कभी भी खण्डित कर सकते हैं इसलिए इन्हें समाप्त कर एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू करना न केवल धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए बल्कि देश की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी अति आवश्यक है। दुर्भाग्य से ‘भारतीय नागरिक संहिता’ को हमेशा तुष्टीकरण के चश्मे से देखा जाता रहा है। जब तक भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट प्रकाशित नहीं होगा तब तक केवल हवा में ही चर्चा होगी और समान नागरिक संहिता के बारे में सब लोग अपने-अपने तरीके से व्याख्या करेंगे और भ्रम फैलाएंगे इसलिए विकसित देशों में लागू “समान नागरिक संहिता” और गोवा में लागू “गोवा नागरिक संहिता” का अध्ययन करने और “भारतीय नागरिक संहिता” का ड्राफ्ट बनाने के लिए तत्काल एक ज्यूडिशियल कमीशन या एक्सपर्ट कमेटी बनाना नितांत आवश्यक है। हालांकि कुछ राज्यों ने ऐसा किया भी है लेकिन इसे पूरे देश में एक स्वर देने की जरूरत है।यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम है. दूसरे शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. जैसे अपनी अलग-अलग धर्मों के नियम लोग मानते हैं, लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद सभी धर्मों, जाति के लोगों के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी नियम सामान होंगे। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात है। अनुच्छेद 44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।उन्होंने ने आगे कहा कि जहां-जहां हिंदू खत्म हो चुके हैं वहां सेक्युलिरिज्म काम नहीं करता है। कश्मीर, लद्दाख और लक्ष्यद्वीप में सेक्युलिरिज्म काम नहीं करता है। जिन नौ राज्यों हिंदू खत्म हो गए, वहां सेक्युलिरिज्म काम नहीं करता है। इस देश में जो भाई चारा बना हुआ है वह हिंदुओं की वजह से है। अश्विनी उपाध्याय ने कहा, पीएफआई पर बैन का समर्थन करते है। उन्होंने कहा कि पीएफआई आतंक फैलाता है, लव जिहाद करवाता है, धर्मांतरण करवाता है। विदेशी फंडिंग लेता है। मदरसे चला रहा है। ऐसी-ऐसी किताबें चला रहा है। जिसमें कहा जा रहा है जो इस्लाम को नहीं मानता वह काफिर हैं। काफिरों को खत्म करो, उसको कन्वर्ट कराओ। यही कारण है कि देश में एक समान कानून चाहिए। मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह करने की छूट है, लेकिन अन्य धर्मों में ‘एक पति-एक पत्नी’ का नियम बहुत कड़ाई से लागू है. बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू, ईसाई, पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और IPC की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है. इसलिए कई लोग दूसरा विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं. भारत जैसे सेक्युलर देश में चार निकाह जायज हैं, जबकि इस्लामिक देश पाकिस्तान में पहली बीवी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता है. ‘एक पति-एक पत्नी’ किसी भी प्रकार से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है, बल्कि “सिविल राइट, ह्यूमन राइट और राइट टू डिग्निटी” का मामला है. इसलिए यह जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए.विवाह की न्यूनतम उम्र भी सबके लिए समान नहीं है. मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है. इसलिए 9 वर्ष की उम्र में भी लड़कियों का निकाह किया जाता है. जबकि अन्य धर्मों में लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका कि 20 वर्ष से पहले लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होती है और 20 वर्ष से पहले गर्भधारण करना जच्चा-बच्चा दोनों के लिए अत्यधिक हानिकारक है. लड़का हो या लड़की, 20 वर्ष से पहले दोनों ही मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते हैं. 20 वर्ष से पहले तो बच्चे ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाते हैं और 20 वर्ष से पहले बच्चे आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर नहीं होते हैं. इसलिए विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान 21 वर्ष करना आवश्यक है. ‘विवाह की न्यूनतम उम्र’ किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है, बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है। इसलिए यह भी जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए।
समान नागरिक संहिता : भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. इनमें बहुत ज्यादा अंतर है.
किस राज्य में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड: समान नागरिक संहिता सिर्फ गोवा में है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. वहीं गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. इतना ही नहीं रजिस्ट्रेशन कराए बिना वहां शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी. संपत्ति पर पति-पत्नी का समान अधिकार है। इन देशों में लागू है यूसीसी: दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है।दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है।