सबसे कठिन और चार दिनों का हरिवासर व्रत आज से प्रारंभ
26 साल बाद आया है यह शुभ दिन, मिथिला ओर मिथिलांचल के लोगों का यह व्रत
अशोक झा, सिलीगुड़ी:
बिहार के मिथिलांचल में तो प्रायः हर व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं। यहां से जुड़े लोग बंगाल में बड़ी संख्या में है। करीब 26 साल बाद 11 नवंबर यानि आज से होने वाले चार दिवसीय के हरिवासर व्रत को मिथिलांचल में सबसे कठिन और दुर्लभ व्रत माना जाता है। इसमें मुख्यतः दो दिन और दो रात अर्थात 48 घंटे का निर्जला व्रत होता है. साथ ही व्रत के एक दिन पहले और एक दिन बाद भी एक बार ही भोजन (एक भूक्त) किया जाता है। ये व्रत कुल 4 दिन या कहें तो करीब 96 घंटे का होता है। यह अत्यधिक कठिन व्रत होता है। यह हर वर्ष नहीं किया जाता है, उसका जब योग लगता है तब ही किया जाता है, लेकिन इस व्रत का योग भी दुर्लभ ही होता है। सामान्यतया एक व्यक्ति के जीवन भर में अपवाद को छोड़ दें तो अमूमन दो से तीन बार ही इस हरिवासर व्रत का योग पड़ता है।11 नवंबर 2024, सोमवार : एकभूक्त
12 नवंबर 2024, मंगलवार : देवोत्थान एकादशी एवं निर्जला व्रत
13 नवंबर 2024, बुधवार : हरिवासर निर्जला व्रत
14 नवंबर 2024, बृहस्पतिवार : सूर्योदय के उपरांत प्रातः 6:40 से 7:50 बजे तक (पारण) कब होगा एकादशी और हरिवासर व्रत: पंडित अभय झा के मुताबिक इस व्रत का प्रचलन मुख्य रूप से मिथिला में है. अन्य क्षेत्र को छोड़ मिथिला के लोगों में किया जाने वाला यह हरिवासर व्रत का मुख्य कारण इस व्रत का अत्यधिक कठिन होना है। अन्य क्षेत्र के लोग साधारणतया ऐसा साहस नहीं जुटा पाते हैं। लेकिन भारतवर्ष की भूमि तप की भूमि है तो ऐसा संभव है कि अन्य क्षेत्र के लोग भी ये व्रत करते हों, लेकिन मिथिलावासियों में यह व्रत काफी प्रचलित है। पंडित झा के मुताबिक कार्त्तिक मास के देवोत्थान एकादशी का व्रत इस बार 12 नवम्बर 2024 ईस्वी मंगलवार को है, और इसी व्रत के साथ ही अगले दिन अर्थात द्वादशी को हरिवासर योग लगा है। अर्थात एकादशी-द्वादशी लगातार दो दिन दो रात निर्जला व्रत रहेगा और 14 नवंबर बृहस्पतिवार को सूर्योदय के उपरांत पारण होगा। इससे पहले यह व्रत 22 सितंबर 1999 भाद्र शुक्ल द्वादशी, बुधवार को बना था. उसके बाद इस वर्ष निम्न इस प्रकार व्रत होगा।कैसे किया किया जाएगा ये व्रत: वहीं पंडित झा ने बताया कि इस वर्ष देवोत्थान एकादशी (12 नवंबर, मंगलवार) के दिन लगभग 26 वर्ष के उपरांत योग अनुसार हरिवासल लग रहा है. दुर्लभ योग और अनुकूल मौसम के कारण इस वर्ष काफी अधिक संख्या में मैथिल लोगों के जरिए यह हरिवासल व्रत करने की संभावना है. इस बार ये व्रत 11 नवंबर से शुरू होकर 14 नवंबर तक किया जाएगा। 11 नवंबर को पहले व्रती दिन और रात मिलकर मात्र एक बार अन्न ग्रहण करेंगे। उसके अगले दो दिन 12 और 13 नवंबर को 48 घंटे का उनका निर्जला व्रत होगा। पुनः 14 नवंबर को व्रती प्रातः काल 6 बजकर 40 मिनट से लेकर 7 बजकर 50 मिनट के बीच तुलसी का पत्ता और जल ग्रहण करके व्रत का पारण करेंगे. साथ ही उस दिन भी व्रती दिन और रात मिलकर मात्र एक बार ही अन्न ग्रहण करेंगे। इस प्रकार कुल 4 दिन या कहें तो करीब 96 घंटे का ये व्रत होता है, जिसमें दो दिन और दो रात व्रती जल भी ग्रहण नहीं करेंगे और व्रत के एक दिन पहले और एक दिन बाद मात्र एक वक्त ही भोजन करेंगे। हर पाप-ताप, संकट से मुक्त होते हैं व्रती: बहुत साल बाद इस हरिवासर व्रत का योग आया है। हालांकि यह व्रत बहुत कठिन होता है, लेकिन वैसे ही ये व्रत अक्षय पुण्य देना वाला होता है. मिथिला में कहा जाता है कि हर व्यक्ति को जीवन में 3 बार हरिवासर व्रत करना चाहिए, जिससे हर पाप-ताप, संकट से मुक्त होकर परमानंद और मोक्षक की प्राप्ति होती है।