कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभूतपूर्व आयोजन: महामंडलेश्वर जयकिशन गिरि जी महाराज
असुरों से अमृत कलश को बचाने के लिए हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक-त्र्यंबकेश्वर, और उज्जैन में छुपाया गया था
– इन स्थानों पर अमृत की बूँदें गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए और इन्हीं जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है
अशोक झा, सिलीगुड़ी: दुनिया का सबसे बड़ा मेला यानि महाकुंभ 2025 अध्यात्म संस्कृति और परंपरा का विराट मेला है। इस बार महाकुंभ का आयोजन 10 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में किया जाएगा। इस आयोजन में लाखों श्रद्धालु और साधु-संत जुटेंगे जो इस आध्यात्मिक माहौल को और भी अधिक खास बनाएंगे। क्यों खास है सनातनियों के लिए महाकुंभ ? इसकी विस्तृत जानकारी
महामंडलेश्वर जयकिशन गिरि जी महाराज ,( श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ) ने वरिष्ठ पत्रकार अशोक झा से बातचीत में दी। उन्होंने कहा कि कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभूतपूर्व आयोजन है, जिसकी जड़ें समुद्र मंथन की प्राचीन कथा में हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया ताकि अमृत यानी अमरता प्रदान करने वाला अमृत प्राप्त किया जा सके। मंथन में मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण कर पर्वत को स्थिर रखा ताकि वह समुद्र में डूब न जाए। यह कथा केवल एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की गहराई में छिपी शक्तियों को खोजने और मुक्ति प्राप्त करने का प्रतीक भी है। जयंत ने अमृत कलश को चार स्थानों पर छिपाया था: समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया। इस विष को पीने के बाद उनका गला नीला हो गया, और वे नीलकंठ कहलाए। इसके बाद मंथन से कई अद्भुत चीजें निकलीं, जिनमें से अमृत सबसे मूल्यवान था। जब भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए, तो देवताओं और असुरों के बीच इस अमृत को पाने के लिए संघर्ष शुरू हो गया। जयंत ने अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए बारह दिनों तक चार स्थानों पर छिपाया: हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक-त्र्यंबकेश्वर, और उज्जैन। इन स्थानों पर अमृत की बूँदें गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए और इन्हीं जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
सामान्य कुंभ तीन साल, अर्धकुंभ छह साल और पूर्ण कुंभ बारह साल में लगता है: कुंभ मेले का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि इसका ज्योतिषीय आधार भी है। जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति एक विशेष ज्योतिषीय स्थिति में होते हैं, तब इन स्थानों पर मेले का आयोजन होता है। सामान्य कुंभ मेला हर तीन साल में होता है, अर्धकुंभ छह साल में, और पूर्ण कुंभ बारह साल में आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है।।महाकुंभ मेला धार्मिकता, आस्था, और संस्कृति का एक अनूठा संगम है। यह आयोजन न केवल भारत के विभिन्न कोनों से लाखों लोगों को जोड़ता है, बल्कि विश्वभर के पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। यह मेला आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं, जिससे उनके पापों का नाश और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इतिहास में भी कुंभ मेले की महत्ता को कई बार रेखांकित किया गया है। सन् 1942 में प्रयागराज कुंभ के दौरान, पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय लिनलिथगो को बताया था कि इतने बड़े आयोजन के लिए केवल दो पैसे के पंचांग की आवश्यकता होती है। यह श्रद्धा और आस्था की वह ताकत है, जो किसी प्रचार या निमंत्रण के बिना लाखों लोगों को इस आयोजन में खींच लाती है। कुंभ मेले के आयोजन के लिए महीनों पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। स्नान घाट, तंबू, चिकित्सा सेवाएं, शौचालय, और सुरक्षा प्रबंध बड़े पैमाने पर किए जाते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टि से भी एक अद्भुत आयोजन है।कुंभ मेला भारतीय सनातन धर्म की महानता और परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व हमें हमारी संस्कृति और धर्म की जड़ों से जोड़ता है और यह संदेश देता है कि श्रद्धा और विश्वास के माध्यम से हर चुनौती को पार किया जा सकता है। कुंभ मेला युगों-युगों तक भारतीय संस्कृति और धर्म की धरोहर को जीवित रखेगा। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि भारतीय समाज की एकता, विविधता, और धैर्य का प्रतीक भी है।