बिहार में हिंदुत्व के त्रिमूर्ति का आगमन, बंगाल से बिहार में राजनीतिक हलचल तेज
कहा, यह संयोग नहीं बल्कि सोचा समझा प्रयोग, हिंदुत्व के प्रतीक धार्मिक गुरुओं के बिहार दौरे को लेकर सियासत गर्म

अशोक झा, सिलीगुड़ी: ,कहते हैं राजनीति में संयोग कुछ भी नहीं होता, बल्कि प्रयोग होता है और लक्ष्य सत्ता में आना या फिर बने रहना होता है। बिहार की राजनीति तो इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। यहां समय-समय पर नये राजनीतिक समीकरण बनने बिगड़ने के अनेकों उदाहरण हैं। वर्तमान में अब जब बिहार विधानसभा चुनाव के करीब 6 महीने शेष रह गए हैं तो अभी से राजनीतिक सरगर्मी के साथ बिहार में अनेक तरह की गहमा ग़हमी दिखने लगी है। एक ओर विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, तो इसी बीच बिहार में हिंदू धर्मगुरुओं के एक के बाद एक दौरों ने सियासी पारा को गर्म कर दिया है। हिंदुत्व के प्रतीक धार्मिक गुरुओं के बिहार दौरे को लेकर सियासत भी गर्म है। दरअसल, बिहार में चुनावी साल में हिंदुत्व के तीन बड़े चेहरे, बागेश्वर बाबा आचार्य धीरेंद्र शास्त्री, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और श्री श्री पंडित रविशंकर एक साथ बिहार में हैं। जाहिर तौर पर विपक्षी महागठबंधन के नेताओं ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया है, जबकि बीजेपी इसमें राजनीति नहीं देख रही है. वहीं, जेडीयू के रुख में भी बदलाव दिख रहा है. इस पूरे घटनाक्रम को राजनीति के जानकार भी अपनी दृष्टि से देख रहे हैं। मगर आइये जानते हैं कि पहले हो क्या रहा है। यह गौर करने वाली बात है कि बाबा बागेश्वर गोपालगंज के दौरे पर हैं जो परंपरागत रूप से लालू प्रसाद यादव का गढ़ कहा जाता रहा है। हालांकि, बीते चुनावों में इन क्षेत्रों में बीजेपी और जदयू का दबदबा रहा है, लेकिन अभी भी गढ़ इसको राजद का ही कहा जाता है. वह वहां हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. हनुमंत कथा और दिव्य दरबार का आयोजन कर रहे हैं. उनको सुनने के लिए लाखों की संख्या में भीड़ जुट रही है और वह ‘बिहार में बहार’ आने तक की बात भी अपनी सभा में कह रहे हैं. निश्चित तौर पर ‘बिहार में बहार’ आने की उनकी बात कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस नारे से जोड़कर देखा जा रहा है जब 2015 में बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है… से एक बार फिर जुड़ता है।
बिहार क्यों बना बाबा का पड़ाव?: गोपालगंज में हिंदू राष्ट्र की हुंकार भरते हुए बाबा बागेश्वर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री के कुछ बयानों पर गौर करें तो आप पाएंगे कि उनका क्या ध्येय है और उनकी बातों के क्या अर्थ हैं। उन्होंने कहा- देश रघुवर का है बाबर का नहीं… भारत को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे… हिंदुओं को एक करेंगे… हिंदुओं को घटने नहीं देंगे.. संकट पर हिंदू कहां जाएंगे… हिंदू राष्ट्र की आवाज बिहार से। बाबा बागेश्वर के बयानों को राजनीति के जानकार अपने नजरिये से पढ़ते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार कहते हैं कि महाकुंभ आयोजन में सनातन एकता की बात को खूब उद्धृत किया गया। इसी को आगे बढ़ाते हुए आचार्य धीरेद्र शास्त्री का पड़ाव बहार बना है। जाहिर तौर पर जातियों में बुरी तरह विभक्त बिहार के समाज को एकजुट करने में अगर थोड़ी भी सफलता बाबा बागेश्वर को मिलेगी तो यह बीजेपी की राजनीति को ही फायदा पहुंचाएगी।गजनवी का नाम और पॉलिटिकल पॉलराइजेशन: वहीं, श्री श्री रविशंकर भी बिहार के दौरे पर हैं और वह सत्संग और अध्यात्म की अलख जगा रहे हैं. पटना के गांधी मैदान में शुक्रवार (7 मार्च) से आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का भव्य सत्संग शुरू हुआ है। इस दो दिवसीय सत्संग में ध्यान, योग और जीवन जीने की कला पर विशेष प्रवचन मुख्य आयोजन है. इसके साथ ही गुरु रविशंकर 1000 साल पुराने पवित्र शिवलिंग के साथ बिहार पहुंचे हैं। जिसे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए स्थापित किया जा रहा है। खास बत यह है कि यह शिवलिंग वही है जिसे महमूद गजनवी ने 1026 ईस्वी में खंडित किया था। इसके आगे बड़ी बात यह कि पटना पहुंचने के बाद गुरुवार देर शाम श्री श्री रविशंकर ने बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से मुलाकात की। जाहिर है इसे सियासत से भी जोड़ा जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक झा कहते हैं कि महमूद गजनवी का नाम आगे आना प्रदेश की राजनीति के ध्रुवीकरण की कवायद हो सकती है और इसका फायदा भी भाजपा और एनडीए की राजनीति को ही होगा।बीजेपी की सियासी जमीन मजबूत कर रहे आरएसएस चीफ? वहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत मुजफ्फरपुर को बेस बनाकर पांच दिनों के बिहार दौरे पर हैं और विभिन्न जिलों में संघ के कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. सरसंघ चालक मोहन भागवत मुजफ्फरपुर प्रवास के दौरान 7 मार्च की सुबह-सुबह आरडीएस (RDS) कॉलेज मैदान में शाखा लगाया।शाखा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में व्यायाम और प्रैक्टिस लोग कर रहे हैं. वह आरएसएस कार्यालय में तमाम आरएसएस के सदस्यों के साथ बैठक करेंगे। फिर 8 मार्च को भी मोहन भागवत शाखा में शामिल होने के बाद बैठक करेंगे और फिर 9 मार्च को नागपुर के लिए रवाना हो जाएंगे। राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि सर संघ चालक मोहन भागवत बीजेपी के वोट बेस को मजबूत बनाने की कवयद में लगे हुए हैं. इससे पहले हिंदुत्व की हुंकार बीजेपी और के लिए सियासी जमीन सांगठनिक दृष्टि से मजबूत की जा रही है।सनातन की त्रिमूर्ति से बिहार की सियासत को नई दिशा! दरअसल, सियासत में टाइमिंग का बड़ा महत्व होता है और इस बार भी टाइमिंग को लेकर ही जो सवाल उठाए जा रहे हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण है कि बिहार में इसी साल विधानसभा का चुनाव होना है और इसको लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ी हुई है. इसी बीच सनातन धर्म के प्रतीक कहे जाने वाले त्रिमूर्ति (बाबा बगेश्वर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री, श्री श्री पंडित रविशंकर और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ) का आगमन बिहार में हुआ है। इसके बाद से सनातन की चर्चा पूरे राज्य में जोरों पर होने लगी है. इन त्रिमूर्ति की जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं इससे विपक्ष तो परेशान दिखेगा ही.खास बात हिंदुओं को एकजुट करने की बातें करते हैं और यही त्रिमूर्ति हर जगह यही संदेश भी दे रहे हैं. बिहार में जाति की राजनीति होती रही है है ऐसे में विपक्ष को लगता है कि हिंदुओं के नाम पर अगर जातियां एकजुट हो जाती हैं तो फिर विपक्ष को नुकसान होगा और एनडीए को उसका फायदा पहुंचेगा। भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार चुनाव की सियासी तपिश के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कर्नाटक के बेंगलुरु में बड़ी बैठक होली के बाद होने जा रही है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख की बैठक तीन दिनों तक चलेगी, जिसमें आरएसएस के 100 साल के कार्य विस्तार की समीक्षा के साथ-साथ आगामी 100 सालों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों, आयोजन और अभियानों की रूपरेखा तैयार की जाएगी। यही नहीं संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आगामी राज्यों के चुनाव का फुलप्रूफ प्लान तैयार किया जा सकता है।आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक बेंगलुरु में 21, 22 और 23 मार्च को होगी. संघ की कार्य पद्धति में यह निर्णय करने वाली सर्वोच्च इकाई है और साल में एक बार इसकी बैठक होती है. इस बार बैठक बैंगलुरु के चन्नेनहल्ली में स्थित जनसेवा विद्या केंद्र परिसर में होगी. संघ के सौ साल 2025 में पूरे हो रहे हैं. ऐसे में आरएसएस की बेंगलुरु में होने वाली प्रतिनिधि सभा की बैठक काफी अहम मानी जा रही है।संघ की बैठक में कौन-कौन होगा शामिल: सुनील आंबेकर के मुताबिक, बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित सभी सह सरकार्यवाह और अन्य पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित रहेंगे. संघ के 45 प्रांत के साथ-साथ सभी क्षेत्र के क्षेत्र प्रमुख, प्रांत प्रमुख मौजूद रहते हैं। इसके अतिरिक्त संघ के सभी 32 सहयोगी संगठनों के पदाधिकारी भी मौजूद रहेंगे, जिसमें बीजेपी से लेकर विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्र सेविका समिति जैसे सभी संगठन के पदाधिकारी शिरकत करेंगे. मुख्य रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि, प्रांत व क्षेत्र स्तर के 1480 कार्यकर्ता अपेक्षित हैं. बैठक में संघ प्रेरित विविध संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, महामंत्री एवं संगठन मंत्री भी शामिल होंगे।बीजेपी की बंजर जमीन पर खिलेगा कमल: आरएसएस की प्रतिनिधि सभा की बैठक में देश के ज्वलंत मुद्दों के साथ बिहार, पश्चिम बंगाल , तमिलनाडू और केरल जैसे राज्य के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के जीत की रणनीति बनाई जाएगी. पश्चिम बंगाल और केरल की सियासी जमीन बीजेपी के लिए अभी भी पथरीली बनी हुई है तो बिहार में जेडीयू के सहारे की सत्ता का स्वाद चखती रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी जहां पर कभी भी सत्ता में नहीं आ सकी है, उन राज्यों में बीजेपी के जीत की इबारत कर्नाटक की बेंगलुरु में लिखी जाएगी।साल 2025 के आखिर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2026 में पश्चिम बंगाल असम, केरल, तमिलनाडू और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी असम छोड़कर किसी भी राज्य में अभी तक अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकी है. बंगाल, केरल और तमिलनाडु की सियासी जमीन बीजेपी के लिए बंजर ही रही है, लेकिन संघ उसे उपजाऊ बनाने के लिए लगातार मेहनत कर रहा है. RSS की प्रतिनिधि सभा की बैठक से पहले मोहन भागवत बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल का दौरा कर सियासी नब्ज की थाह ले चुके हैं।मोहन भागवत ने 10 दिनों तक पश्चिम बंगाल में रहकर सियासी जायजा लिया था. इस दौरान उन्होंने पश्चिम मेदिनीपुर, हावड़ा, कोलकाता और उत्तर-दक्षिण 24 परगना जिले के आरएसएस कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी। फरवरी में ही मोहन भागवत ने केरल का चार दिवसीय दौरा किया था। भागवत अब पांच दिन के बिहार दौरे पर हैं. इस तरह समझा जा सकता है कि संघ के लिए बंगाल असम, केरल, तमिलनाडू और पुडुचेरी कितना अहम है. संघ ने जिस तरह लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी के लिए सियासी बूस्टर का काम किया है, उसके चलते माना जा रहा है कि संघ आगामी राज्यों के लिए जीत का मंत्र तैयार करेगा।बीजेपी के नए अध्यक्ष का चुनाव: हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में जीत के बाद बीजेपी में इन दिनों अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की खोजबीन में है. कई नाम दक्षिण से भी चर्चा में हैं. माना जा रहा है कि 20 मार्च तक नए अध्यक्ष का ऐलान हो जाएगा. बीजेपी के नए अध्यक्ष के नाम पर मुहर लग जाती है तो संघ के प्रतिनिधि सभा की बैठक में वो शामिल हो सकते हैं. जेपी नड्डा के अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब उनकी जगह नए चेहरे की तलाश है. बीजेपी के अध्यक्ष के नाम को फाइनल करने में संघ का अहम रोल होता है. संघ की पसंद का ख्याल भी रखा जाता है।संघ बनाएगा अगले 100 साल का प्लान: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि आगामी विजयादशमी (दशहरा) 2025 को संघ के सौ साल पूरे हो रहे हैं. इस निमित्त विजयादशमी (दशहरा) 2025 से 2026, यह संघ शताब्दी वर्ष माना जाएगा. बैठक में शताब्दी वर्ष के कार्य विस्तार की समीक्षा के साथ-साथ आगामी शताब्दी वर्ष के विभिन्न कार्यक्रमों एवं आयोजन तथा अभियानों की रूपरेखा तैयार की जाएगी. इस तरह संघ अगले 100 साल का प्लान तैयार करेगा कि वो किस दिशा में आगे बढ़ेगा और किन एजेंडों पर काम करेगा।संघ की इस बैठक में राष्ट्रीय विषयों पर दो प्रस्तावों पर विचार होगा. साथ ही संघ शाखाओं द्वारा अपेक्षित सामाजिक परिवर्तन के कार्यों सहित विशेष रूप से पंच परिवर्तन के प्रयासों की चर्चा अपेक्षित है. हिंदुत्व जागरण सहित देश के वर्तमान परिदृश्य के विश्लेषण और करणीय कार्यों की चर्चा भी बैठक की विषय सूची में शामिल है। संघ की इस बैठक में भारत में एनआरसी के कार्यान्वयन के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है. संघ इस पर विचार-विमर्श कर सकता है कि इसे कुछ राज्यों में कैसे किया जाना चाहिए। देश में अवैध घुसपैठ का मुद्दा है, जिसे संघ से लेकर बीजेपी तक उठाती रही है. किसी मुद्दे पर प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए या नहीं, यह बैठक के दौरान तय किया जाता है. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वरिष्ठ नेता इस मुद्दे को आगे कैसे उठाते हैं, वे इस पर क्या निर्णय लेते हैं।आरएसएस के प्रतिनिधि मंडल की बैठक में मुद्दों पर चर्चा किए जाने के बाद निर्णय न केवल संघ को अगले वर्ष के लिए दिशा देते हैं, बल्कि सरकार को यह संकेत भी देते हैं कि वह नीतिगत स्तर पर क्या लागू करना चाहती है। ,झारखंड विधानसभा चुनाव के बीच केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि सरकार राज्य में एनआरसी लागू करना सुनिश्चित करेगी. इसके अलावा यूसीसी को लागू करने की दिशा में भी संघ अहम फैसला ले सकता है. संघ हमेशा देश में एनआरसी लागू होने और एक देश एक कानून की बात करता रहा है।धर्मगुरुओं का हुआ जुटान तो विपक्ष क्यों हुआ परेशान? हिंदुत्व के प्रतीक दिग्गज धर्मगुरुओं के एक साथ बिहार में जुटान से विपक्ष परेशान हैं। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बड़ी होशियारी से खुद इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाहते हैं और बड़े ही फूंक-फंककर कदम उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह देश बाबा साहब के अंबेडकर के संविधान से चल रहा है और यहां किसी को भी कहीं आने-जाने की आजादी है। इससे हमें कोई मतलब नहीं.लेकिन, दूसरी ओर राजद के विधायक मुकेश रौशन ने बाबा बागेश्वर की गिरफ्तारी की मांग कर दी। वहीं भाई वीरेंद्र ने भी इसे भाजपा की साजिश बताया। जबकि राजद के कई अन्य विधायक और नेता हिंदुत्व के इन प्रतीकों के दौरों को टारगेट पर ले रहे हैं। जबकि, दूसरी ओर बिहार में हिंदुत्व के प्रतीकों के जुटान से बीजेपी और एनडीए खेमा गदगद है।बीजेपी जैसा ही हो रहा जेडीयू का रुख!
बीजेपी के नेता और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तारकेश्वर प्रसाद ने कहा, भारतीय जनता पार्टी और एनडीए की ताकत के बारे में उन्हें (विपक्ष) गलतफहमी है. भाजपा आज आम लोगों के कारण बिहार ही नहीं पूरे देश में अपनी राजनीतिक ताकत रखती है. बाबा बागेश्वर जिन मूल्यों को रखकर समाज में आ रहे हैं, सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं और जिस प्रकार की चीजों को आम लोगों तक पहुंचा रहे हैं वह देश हित और समाज हित में है. वहीं, बीजेप के विधायक हरिभूषण सिंह ठाकुर बचौल ने तो खुलकर बाबा बागेश्वर समेत धर्मगुरुओं के बिहार दौरे का समर्थन किया है. जाहिर है बिहार की राजनीति में हिंदुत्व का मुद्दा गरमा गया है और जेडीयू के रुख में भी बदलाव दिख रहा है. दरअसल, नीतीश कुमार पर 2023 में हिंदू त्योहारों की छुट्टियां कम करने का आरोप लगा था, लेकिन अब जेडीयू नेता ने कहा है कि हिंदू एकजुट हैं।