
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी जिलों के स्थानीय प्रशासन के अनुसार, मंगलवार सुबह तक पश्चिम बंगाल के उत्तरी बंगाल क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश ने तबाही मचा दी है, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने 36 लोगों की जान ले ली है। आपदा प्रबंधन कर्मियों ने मंगलवार को भी बचाव अभियान जारी रखा क्योंकि कई लोग अब भी लापता हैं और सैंकड़ों पर्यटक पहाड़ी इलाकों में फंसे हुए हैं। मरने वालों में पांच नेपाली भी है। वीं बाढ़ के कारण कई पुल टूट गए हैं। इस भीषण बारिश और भूस्खलन के कारण बड़ी संख्या में पर्यटक बंगाल के विभिन्न इलाकों में फंसे हुए हैं। जो पर्यटक किसी तरह से लौटकर कोलकाता पहुंचे हैं, उन्होंने भयावह अनुभव साझा किए हैं। आज उत्तर बंगाल के नागराकाटा में बाढ़ की स्थिति का जायजा लेने गए भाजपा सांसद खगेन मुर्मू और विधायक शंकर घोष पर जानलेवा हमला किया गया। उनके सुरक्षा गार्ड भी गंभीर रूप से घायल हो गए। सांसद खगेन मुर्मू की हालत फिलहाल गंभीर बनी हुई है। देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस दुखद घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष श्री शमिक भट्टाचार्य से फ़ोन पर बात की और घटना की जानकारी ली।रक्षा मंत्री ने कहा – “राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। पश्चिम बंगाल की जनता इस अन्याय और उत्पीड़न को कभी स्वीकार नहीं करेगी। हम सभी को मिलकर हिंसा की इस राजनीति से लड़ना होगा। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी- राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने इस घटना को बहुत दुखद बताया है, साथ ही कहा है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने जोर दिया कि मैं सुनिश्चित करूंगा कि 24 घंटे के भीतर अपराधी पकड़े जाएं. अन्यथा कड़ी कार्रवाई की जाएगी। बीजेपी MP और MLA पर हमला: सोमवार को BJP सांसद खगेन मुर्मू और MLA शंकर घोष बाढ़ प्रभावित लोगों से मिलने पहुंचे थे, जहां पर स्थानीय लोगों ने उनपर हमला कर दिया था. हमले में बुरी तरह जख्मी BJP नेताओं को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है. BJP नेताओं ने इस हमले को सत्तारूढ़ TMC की साजिश और आदिवासियों का अपमान बताया है, इसी को लेकर बीजेपी विरोध प्रदर्शन कर रही है। हमले को लेकर बीजेपी का बड़ा दावा: बीजेपी ने बताया कि बीजेपी विधायक डॉ. शंकर घोष राहत कामों का निरीक्षण कर रहे थे, तब उनके काफिले पर लोगों ने पत्थर फेंके. घोष के बाएं चेहरे की हड्डी (मैक्सिला) टूटने की वजह से उनकी बाईं आंख के नीचे का हिस्सा गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है. हमले के बाद आई वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बीजेपी नेता खून से लथपथ हैं और पार्टी कार्यकर्ता उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं।अलीपुरद्वार के जलदापारा नेशनल पार्क, दार्जिलिंग और मिरिक जैसे लोकप्रिय स्थानों से लौटने वाले कई पर्यटकों ने बताया कि कैसे पानी और टूटे रास्तों के बीच उन्हें अपनी जान बचाने की जद्दोजहद करनी पड़ी। खासतौर पर मिरिक क्षेत्र को इस बार की बारिश ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि उत्तर बंगाल में लगभग 1,200 होमस्टे हैं, जो पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं। वहां तक पहुंचने या संपर्क करने में बड़ी मुश्किलें आ रही हैं, क्योंकि संचार व्यवस्था ठप है और कई सड़कों का संपर्क टूट चुका है। इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स (IATO) की पश्चिम बंगाल इकाई के चेयरमैन देबजीत दत्ता ने कहा कि इन होमस्टे में ठहरे सैलानियों की जानकारी मिलना मुश्किल हो गया है। हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि पर्यटकों को सुरक्षित निकाला जा सके। 250 लोगों के लिए सिलीगुड़ी में ठहरने की व्यवस्था: वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अब तक कई पर्यटकों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। डायमंड हार्बर के एक व्यक्ति के लापता होने की सूचना है। 500 पर्यटकों को आज 45 वोल्वो और नॉर्थ बंगाल स्टेट ट्रांसपोर्ट बसों के जरिए निकाला जा रहा है। 250 लोगों के लिए सिलीगुड़ी में ठहरने की व्यवस्था की गई है। ममता ने यह भी निर्देश दिए हैं कि जब तक फंसे हुए सैलानी सुरक्षित नहीं पहुंच जाते, तब तक होटल उनसे कोई शुल्क न लें। राज्य सरकार उनके रहने और खाने का खर्च उठाएगी। मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि सभी पर्यटक सुरक्षित हैं और सरकार हरसंभव मदद कर रही है।बंगाल बाढ़ पर ममता बनर्जी का केंद्र पर हमला: बंगाल में आई भयानक बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी शासित केंद्र ने अब तक राज्य सरकार से संपर्क नहीं किया है, न ही किसी प्रकार की आर्थिक सहायता भेजी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र की उदासीनता और नदियों की सफाई न करने की लापरवाही के कारण ही उत्तर बंगाल में इस बार की बाढ़ इतनी विकराल रूप ले पाई है। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि यदि केंद्र ने नदियों की गाद साफ करने (ड्रेजिंग) का काम समय पर किया होता और दामोदर वैली कॉर्पोरेशन (DVC) ने अपनी जिम्मेदारी निभाई होती, तो स्थिति इतनी भयावह नहीं होती।भूस्खलन से दार्जिलिंग के पास जलपाईगुड़ी जिला भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ। बालासोन नदी पर बना दूधिया पुल भी टूट गया जिससे सिलीगुड़ी और मिरिक का सम्पर्क भी टूट गया। पश्चिम बंगाल सरकार ने तुरंत राहत और बचाव कार्य शुरू किए। इसी बीच भूटान ने वांगचू नदी में जलस्तर की वृद्धि के कारण उत्तरी बंगाल में बाढ़ की चेतावनी दे दी है। उत्तराखंड और हिमाचल की प्राकृतिक आपदाओं के बाद हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में भूस्खलन यद्यपि एक सामान्य प्राकृतिक घटना है लेकिन यह आपदा हमें सतर्क कर रही है कि लोकप्रिय हिल स्टेशन में सब कुछ ठीक नहीं है। वैसे तो अपनी खूबसूरती और स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के लिए मशहूर दार्जिलिंग अतीत में कई प्राकृतिक आपदाओं का शिकार रहा है। उपलब्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि 1899, 1934, 1950, 1968, 1975, 1980, 1991 और हाल ही में 2011 और 2015 में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुए थे। 1968 में अक्तूबर में ही विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिसमें एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे।
गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा प्रकाशित पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट, 1991 में कहा गया है कि 1902-1978 के दौरान तीस्ता घाटी में बादल फटने की नौ घटनाएं हुईं। देशभर में आपदा की व्यापकता ने पर्यावरणविदों और शोधकर्ताओं को चिन्ता में डाल दिया है। पहाड़ों का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालय अभी भी बढ़ रहा है और अपनी प्रकृति में युवा है। यदि इसकी उचित देखभाल नहीं की गई तो दार्जिलिंग में उत्तराखंड और हिमाचल जैसी प्रलय आ सकती है। जनसंख्या में लगातार बढ़ौतरी, पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या, दार्जिलिंग और आसपास के क्षेत्रों यहां तक कि सिक्किम की नाजुक परिस्थितिकी तंत्र पर दबाव डाल रही है। पूर्वी हिमालय के समग्र पर्यावरणीय क्षरण से पहाड़ नंगे और बदसूरत हो चुके हैं। लगातार वनों की कटाई से मिट्टी के कटाव की समस्या बढ़ गई है। झरनों के सूखने और पानी के स्तर में बदलाव से भी समस्या बढ़ गई है। जिस तरह से इमारतों का प्रसार हुआ है और पहाड़ी क्षेत्रों में बहुमंजिला इमारतें बनती जा रही हैं जिनमें उचित जल निकासी की व्यवस्था भी नहीं है। पहाड़ क्षेत्र भी भीड़भाड़ वाले होते जा रहे हैं। पुराना आकर्षण खत्म हो गया है। पर्यटकों को ले जाने वाले वाहनों की संख्या बढ़ने से प्रदूषण बढ़ चुका है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रकाशित भारत के भूस्खलन एटलस 2023 में, दार्जिलिंग को 147 जिलों में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र के रूप में 35वें स्थान पर रखा गया था। कलिम्पोंग के कर्नल प्रफुल राव के नेतृत्व वाले सेव द हिल्स सहित कई स्थानीय गैर सरकारी संगठन सोशल मीडिया पर तथा ठोस बहसों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से इन खतरों को उजागर कर रहे हैं। सिक्किम में अक्तूबर 2023 में ल्होनक झील के टूटने से उत्पन्न होने वाली ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) के बारे में सिक्किम मानव विकास रिपोर्ट 2001 में बहुत जोरदार चेतावनी दी गई थी। इस जीएलओएफ ने न केवल कई लोगों की जान ले ली, बल्कि 1200 मेगावाट की चुंगथांग जल विद्युत परियोजना को बहा ले गया, कई सार्वजनिक और सैन्य प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया और अनुमानित 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की क्षति हुई जो 2022-23 के सिक्किम के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 60 प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों के निचले तटवर्ती क्षेत्रों तथा बंगलादेश में इसके कारण हुई भारी तबाही का अभी तक कोई हिसाब नहीं है। भारी वर्षा के साथ लम्बी अवधि के दौरान जल भराव बढ़ जाता है जिससे संवेदनशील ढलानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ता है। ग्रामीण और ऊंची पहाडि़यों में लोग ईंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए पेड़ों की अवैध कटाई लगातार जारी है। ब्रिटिश काल में भवन निर्माण मानदंडों और दिशा-निर्देश पूरी तरह से त्याग दिए गए। पहाड़ों को बचाने के लिए कोई कारगर योजना लागू ही नहीं की गई। तत्कालिक आर्थिक लाभ और तीव्र विकास ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है। प्राकृति मनुष्य के हाथों वर्षों से चली रही खामोश बदनामी और निरंतर अनादर का बदला लेने के लिए पलटवार करती दिखाई दे रही है। जितना मानव ने प्रकृति को नुक्सान पहुंचाया है उतना किसी ने नहीं पहुंचाया है। सरकारों को चाहिए कि कारणों की पहचान कर उनके निवारण के निष्कर्षों से पता चलता है कि न तो भूस्खलन को रोकना संभव है न ही इसके नुक्सान को पूरी तरह से समाप्त करना लेकिन कुछ बुनियादी उपायों और सार्वजनिक जागरूकता के साथ काम किया जाए तो नुक्सान की संभावना को सीमित किया जा सकता है।






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