अशोक झा/ कोलकाता: बंगाल में चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा आगामी 15 अक्टूबर के बाद विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) शुरू किए जाने के संकेतों के बीच आयोग ने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय को जिलों में स्तरवार सख्त निगरानी और पर्यवेक्षण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
कोलकाता स्थित मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय में हुई एक समीक्षा बैठक में वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त ज्ञानेश भारती ने जिलाधिकारियों, निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) और सहायक ईआरओ को स्पष्ट निर्देश जारी किए, जिनमें उत्तर बंगाल के आपदा प्रभावित जिलों के अधिकारी शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि एसआईआर केवल बंगाल में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में किया जा रहा है।अन्य राज्यों ने यह कार्य पूरा कर लिया है या पूरा होने के करीब हैं. अगर पश्चिम बंगाल पिछड़ता है, तो इससे राष्ट्रीय स्तर पर समस्याएं पैदा होंगी। इसलिए, हम सात दिनों से ज़्यादा का समय नहीं दे सकते। बंगाल में पिछले 22 वर्षों के दौरान मतदाताओं की संख्या में हुई असामान्य बढ़ोतरी ने चुनाव आयोग की चिंता बढ़ा दी है। वर्ष 2002 से 2024 के बीच राज्य में मतदाता जनसंख्या में लगभग 66 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो देश के सभी बड़े राज्यों में सबसे अधिक है।
आयोग के प्रतिनिधियों ने बुधवार को दक्षिण बंगाल के जिलाधिकारियों के साथ एक बैठक की, जिसमें इस बात का संकेत दिया गया। चुनाव आयोग की एक विशेष टीम, जिसका नेतृत्व उप चुनाव आयुक्त ज्ञानेश भारती कर रहे हैं, बंगाल में SIR की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए मौजूद है। सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव 2026 से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के दौरान इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देगा। अधिकारियों का मानना है कि इस प्रक्रिया में मृतक या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जाने की संभावना काफी अधिक है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस अवधि में मतदाताओं की तर्कसंगत वृद्धि लगभग 48 से 50 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए थी, लेकिन बंगाल में यह 65.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह वृद्धि राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है और आयोग के लिए चिंता का विषय है। आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2002 में बंगाल में कुल मतदाता संख्या 4.58 करोड़ थी जो अब 2024 में बढ़कर 7.60 करोड़ हो गई है। अधिकारियों के अनुसार, इतनी तेज़ वृद्धि केवल जनसंख्या वृद्धि से नहीं समझाई जा सकती।
एक अधिकारी ने कहा, “मुख्य कारण यह है कि बूथ लेवल अधिकारियों ने मृतक और अन्य राज्यों या देशों में चले गए मतदाताओं के नाम समय पर नहीं हटाए। 2002 में हुए पिछले गहन पुनरीक्षण में करीब 28 लाख नाम हटाए गए थे। अब भी वैसा ही अभियान जरूरी है।” यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब बिहार में चल रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इस प्रक्रिया में लगभग तीन करोड़ वंचित वर्ग के मतदाता अपने अधिकारों से वंचित हो सकते हैं। बंगाल में भी यह मुद्दा राजनीतिक रंग लेने लगा है। भाजपा ने मतदाता सूची में इस असामान्य वृद्धि को “बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों” की प्रविष्टियों का परिणाम बताया है। पार्टी का कहना है कि आयोग को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि राजारहाट-गोपालपुर, बनगांव, बारासात और नदिया के कई इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में 16 से 18 प्रतिशत तक मतदाता बढ़े हैं। अगर सही तरीके से पुनरीक्षण हुआ, तो करीब एक करोड़ घुसपैठिए चिन्हित हो सकते हैं।
वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। ममता ने हाल ही में कहा था कि “बिहार का पुनरीक्षण एनआरसी अपडेट से भी बदतर है” और चेतावनी दी थी कि “अब असली निशाना बंगाल हो सकता है।” चुनाव आयोग ने प्रशासन को निर्देश दिया है कि बूथ लेवल अधिकारियों की नियुक्ति ग्रुप-सी या उससे ऊपर के सरकारी कर्मचारियों से की जाए ताकि जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। नदिया जिले के कालीगंज विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में हुए विशेष पुनरीक्षण में बिना किसी विवाद के आठ हजार नाम हटाए गए। अधिकारियों का कहना है कि यह इस बात का सबूत है कि असली मतदाता प्रभावित नहीं होंगे। मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि आयोग मतदाता सूची की सफाई में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगा। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी वास्तविक मतदाता सूची से न हटे। बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच मतदाताओं की संख्या में हुई 66 प्रतिशत की यह “असामान्य वृद्धि” आने वाले महीनों में राज्य की राजनीति का सबसे विवादित मुद्दा बन सकती है।
सीईओ ने दक्षिण बंगाल के सभी जिलाधिकारियों, अतिरिक्त जिलाधिकारियों और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के साथ एक वर्चुअल बैठक आयोजित की। सूत्रों के अनुसार, बैठक में चर्चा हुई कि प्रत्येक जिला SIR के लिए कितनी तैयार है। क्या अधिसूचना जारी होने के तीन-चार दिनों के भीतर कम से कम 20 प्रतिशत गणना फॉर्म प्रिंट करना संभव है? इस पर भी विचार किया गया। बैठक में बिहार SIR पर चर्चा: बैठक के दौरान आयोग के अधिकारियों ने बिहार के मुद्दे को उठाया। उन्हें याद दिलाया गया कि बिहार में जहां भी चूक हुई, वहां विभिन्न अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई थी।बिहार में जब SIR की घोषणा हुई, तो गणना प्रपत्रों की छपाई में चुनाव अधिकारियों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। बंगाल के संदर्भ में, बैठक में पूछा गया कि क्या इस काम का कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सा 2-3 दिनों के भीतर पूरा करना संभव है।
आयोग चाहता है कि अधिसूचना जारी होने से पहले गणना प्रपत्रों की छपाई हो जाए। उत्तर बंगाल के अलीपुरद्वार ने इसमें भाग लिया। सभी कार्य 11-15 अक्टूबर तक पूरा करने का आदेश दिया गया है। चुनाव आयोग ने 7 दिनों की डेडलाइन निर्धारित की: बैठक में अधिकारियों ने बार-बार 11-15 अक्टूबर की समय सीमा का उल्लेख किया। इसलिए, यह माना जा रहा है कि बंगाल में SIR 15 अक्टूबर के बाद ही शुरू होगा।
बुधवार को टीम के सदस्यों ने सीईओ के साथ मिलकर दक्षिण बंगाल के सभी जिलाधिकारियों, अतिरिक्त जिलाधिकारियों और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के साथ एक वर्चुअल बैठक की। बैठक के बाद, टीम के सदस्य राजारहाट-गोपालपुर गए, जहां उन्होंने बूथ स्तर पर सभी से, मुख्य रूप से बीएलओ से मुलाकात की।विपक्ष ने राजारहाट-गोपालपुर-न्यूटाउन क्षेत्र को लेकर कई शिकायतें की हैं। आयोग पहले ही राजारहाट-गोपालपुर के ईआरओ के बारे में शिकायत कर चुका है। यह टीम उस मामले की भी जांच करेगी। फिर वहां से बारासत होगी।





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