– आज नहाए खाए के साथ शुरू होगा छठ महापर्व का शुभारंभ
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: छठ महापर्व 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। यह पर्व दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है। इस दौरान छठी मैया और सूर्यदेव की आराधना की जाती है। आइए जानते हैं कौन हैं छठी मैया और क्यों छठ पर होती है सूर्यदेव की आराधना। छठ पूजा हमारे जीवन का वो पावन पर्व है जो लोक आस्था, श्रद्धा और सच्ची भक्ति का प्रतीक है. इस दिन छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की उपासना की जाती है।ऐसे में घाटों पर गूंजते गीत, दीयों की रोशनी और गंगा की लहरों पर झिलमिलाती आरती का दृश्य मन को शांति देता है। रामायण से लेकर आधुनिक युग तक छठ पर्व की यात्रा; जानिए कैसे शुरू हुई सूर्य उपासना की यह दिव्य परंपरा सूर्यदेव की पूजा का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व; सूर्य उपासना की इस पवित्र विधि में छिपा है स्वास्थ्य और संस्कार का संदेश देता है। छठ पूजा भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र सूर्य उपासना परंपराओं में से एक है। यह केवल एक व्रत या त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति, श्रद्धा और विज्ञान का अद्भुत संगम माना जाता है। छठ महापर्व की शुरुआत कब हुई और इसे सबसे पहले किसने किया, इसको लेकर कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं आज भी लोकमानस में जीवित हैं। आइए जानते हैं छठ पूजा की उत्पत्ति और उससे जुड़ी अनमोल आस्थाओं की कहानियां।भगवान राम और माता सीता ने किया था सूर्य व्रतपौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्रीराम और माता सीता ने छठ व्रत का पालन किया था। रावण पर विजय प्राप्त करने और 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटने के बाद, उन्होंने सूर्यदेव का आभार प्रकट करने के लिए यह व्रत किया। तभी से छठ पूजा सूर्य आराधना का प्रमुख पर्व बन गई, जो आज भी हर घर में उतनी ही श्रद्धा से मनाई जाती है जितनी तब।कर्ण ने किया था पहली बार सूर्य की उपासना: महाभारत काल की कथा के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। वह प्रतिदिन गंगा तट पर खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते थे। सूर्य की कृपा से ही वे असाधारण पराक्रमी बने और उनके कवच-कुंडल में दिव्य तेज का वास रहा। यही वजह है कि छठ पर्व को सूर्य की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम माध्यम माना जाता है।द्रौपदी ने रखा था परिवार की समृद्धि के लिए व्रत: महाभारत की एक अन्य कथा में उल्लेख मिलता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने अपने परिवार के कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए छठ व्रत किया था। उनकी साधना से पांडवों के जीवन में फिर से सौभाग्य लौटा। तभी से महिलाएं अपने परिवार की उन्नति और खुशहाली के लिए यह व्रत रखती हैं, जिसमें अडिग आस्था और त्याग का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।छठ पूजा का वैज्ञानिक पक्ष: छठ पर्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। इस दौरान सूर्य की किरणों के सीधे संपर्क में आने से शरीर में विटामिन डी का निर्माण होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। पराबैंगनी किरणों का प्रभाव भी संतुलित होता है, जिससे शरीर और मन दोनों को शक्ति मिलती है। यह पर्व इंसान और प्रकृति के बीच सामंजस्य का प्रतीक है।
आज छठ पूजा बंगाल ,बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल की सीमाओं से आगे निकलकर पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुकी है। यह पर्व बताता है कि जब आस्था सच्ची हो, तो प्रकृति स्वयं मनुष्य के कल्याण में जुट जाती है। छठ महापर्व का आरंभ 25 अक्टूबर से होने जा रहा है। दिवाली के 6 दिन बाद छठ महापर्व मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पर्व के नाम से जाना जाता है। छठ पूजा में छठी मैया के साथ साथ सूर्यदेव की आराधना की जाती है। छठ के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही जीवन में खुशहाली और दीर्घायु प्राप्त होती है। आइए जानते हैं कौन है छठी मैय्या और क्यों सूर्यदेव को दिया जाता है अर्घ्य।छठी मैया कौन है?: मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने अपने आप को छठ भागों में बांटा था। प्रकृति देवी का जो छठा भाग था वह सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मां के छठे स्वरूप को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जानते हैं। जोकि ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि इनके छठे अंश को छठी मैय्या के नाम से जाना गया है।छठ पर क्यों होती है छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा: ऐसी मान्यता है कि छठी मैय्या को सूर्यदेव की बहन माना जाता है। इस वजह से छठ के इस पर्व पर छठी मैया और सूर्यदेव दोनों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब किसी नवजात बच्चे का जन्म होता है तो उसके बाद 6 महीने तक छठी मैय्या उनके पास रहती हैं और बच्चों की रक्षा करती हैं। छठ पर्व से जुड़ी कथाएं: छठ पर्व की जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद थे जिनके कोई संतान नहीं थी। इसके बाद महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इस यज्ञ का प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई लेकिन, वह मरी हुई थी। राजा प्रियंवद बच्चे के वियोग में प्राण त्यागने लगे। उस वक्त ही वहां देवसेना प्रकट हुई और कहा कि हे राजन आप मेरी पूजा करें और बाकी लोगों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करें। संतान की इच्छा रखकर राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। जब से संतान की कामना के लिए भी छठ पूजा की जाने लगी। छठ पर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है। जब पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने को कहा था। द्रौपदी ने छठ का व्रत किया और उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया।






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