अशोक झा/ सिलीगुड़ी: आज 30 अक्टूबर गुरुवार को गोपाष्टमी है. गोपाष्टमी के दिन रवि योग बना है। आज गोपाष्टमी पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और शूल योग का संयोग है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गो माता की एक साथ पूजा की जाती है। बंगाल में आज गौ सेवा की अनोखी परंपरा देखी जा सकती है। गौशाला में भक्त खुलकर सालभर गाय की सेवा का व्रत लेते है। अक्षय नवमी के साथ गोपाष्टमी का पावन पर्व भी आज ही के दिन मनाया जा रहा है, जो गौ-सेवा के महत्व को रेखांकित करता है। इन दोनों पर्वों का एक साथ होना इस दिन के महत्व को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे यह दिन अक्षय “रत्नगर्भकुष्मांडादि दानम् । धात्रीमूले ब्राह्मण भोजनम्।।”
आंवला वृक्ष की पूजा: अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवला (धात्री) के वृक्ष के नीचे भोजन करना और पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
धार्मिक परिक्रमा: आज नवमी तिथि को अयोध्या और मथुरा जैसे पवित्र तीर्थों की परिक्रमा करना भी मोक्षदायक बताया गया है।विष्णु पूजा: आज सौवर्णमयीं श्रीविष्णुमूर्ति और तुलसी की पूजा करने का विधान है, जिसके उपरांत द्वादशी को दान किया जाता है।
अन्य पर्व: बंगाल में आज जगद्धात्री पूजन और उड़ीसा में दुर्गा नवमी भी मनाई जाती है। आज गौरी व्रत तथा जैन धर्म का णमोकार 34 व्रत एवं 34 उपवास भी है।
आज रवि योग एवं यायीजययोग का शुभ संयोग भी बन रहा है, जो इस दिन की शुभता को और बढ़ाता है।गोपाष्टमी: गौ-चारण और गौसेवा का आरंभ कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने पहली बार गायों को चराना (गौ-चारण) शुरू किया था। भगवान श्री कृष्ण स्वयं गायों की सेवा करते थे और उन्होंने सभी को गौसेवा का महत्व भी बताया। गोपाष्टमी पर गौ-पूजन से श्री कृष्ण की कृपा के साथ-साथ घर में धन-समृद्धि और सुख-शांति भी प्राप्त होती है।कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को भगवान इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा यानी छोटी उंगली पर उठाया था। सात दिनों तक भगवान इंद्र के भयंकर वर्षा करने के बाद उन्होंने गोपाष्टमी के दिन अपनी हार स्वीकार की थी।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों की ओर से इंद्रदेव को दी जाने वाली वार्षिक भेंट को रोकने का सुझाव दिया था। इस बात से भगवान इंद्र गुस्सा हो गए थे और उन्होंने ब्रज को डुबाने का फैसला किया था, लेकिन इंद्रदेव अपने इस उद्देश्य में विफल रहे, क्योंकि पूरा ब्रज गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित हो गया था।
क्यों पड़ा भगवान श्रीकृष्ण का नाम गोविंद: भगवान श्रीकृष्ण का गोविंद नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने गोपालन, गोसंरक्षण-संवर्दन व गो सेवा के प्रति सभी लोगों को प्रेरित किया था। ऐसा भी माना जाता है कि गोपाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के समय से ही मनाई जाती है। इस दिन गाय, गोवत्स (बछड़ों) तथा गोपालों के पूजन का विधान है।
गोपाष्टमी उपाय- गोपाष्टमी के दिन गाय को हरा चारा या हरी मटर खिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से तरक्की मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। गोपाष्टमी के दिन गाय को गुड़ खिलाना अत्यंत लाभकारी माना गया है। कहते हैं कि ऐसा करने से सामाजिक मान-प्रतिष्ठा के साथ भाग्य का साथ मिलता है।
गोपाष्टमी की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण की आयु केवल छह वर्ष की हुई, तो उन्होंने माता यशोदा से जिद की कि वह भी गायों को चराने वन जाएंगे। माता यशोदा ने नंद बाबा को बताया, तो उन्होंने गौ-चारण के लिए ऋषि शांडिल्य से शुभ मुहूर्त निकलवाया। ऋषि शांडिल्य ने घोषणा की कि उस दिन (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) के अतिरिक्त कोई अन्य शुभ मुहूर्त नहीं है। उस दिन मैया यशोदा ने श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया और पूजा के बाद उन्हें गायों को चराने वन भेजा। यह भी कहा जाता है कि जब यशोदा माँ ने कृष्ण को चरण पादुका पहनाने को कहा, तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि गौमाता ने चरण पादुका नहीं पहन रखी, इसलिए वह भी नंगे पैर ही जाएंगे। इसी घटना के बाद भगवान श्री कृष्ण गोपाल के नाम से भी पुकारे जाने लगे। गोपाष्टमी की पूजा विधि और महत्व: गौ-पूजा: गोपाष्टमी के दिन गाय और उसके बछड़े को नहलाकर साफ-सुथरा किया जाता है, उन्हें आभूषण पहनाकर सजाया जाता है। रोली-चावल से तिलक किया जाता है और सींग पर चुनरी बांधी जाती है।
भोजन और आरती: गाय और बछड़े को हरा चारा, गुड़ व जलेबी आदि खिलाकर धूप-दीप से उनकी आरती उतारी जाती है। परिक्रमा और ग्वालों का सम्मान: गौमाता के चरण छूकर उनकी परिक्रमा की जाती है, और संध्या के समय उनके वापस आने पर दंडवत् प्रणाम किया जाता है। ग्वालों को तिलक करके दान-दक्षिणा दी जाती है। सेवा और दान: जिनके घरों में गाय न हो, उन्हें गौशाला जाकर गायों की सेवा-पूजा करनी चाहिए और दान-पुण्य करना चाहिए। मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन भी किया जाता है। गौसेवा का महत्व हिंदू धर्म में अतुलनीय है। यह माना जाता है कि गौमाता के अंदर सभी देवी-देवताओं का वास होता है। गौसेवा करने से जातक को महान पुण्य प्राप्त होता है, शरीर निरोगी रहता है, दुख-संतापों का नाश होता है और मृत्यु के पश्चात सद्गति प्राप्त होती है।।गुरुवार के दिन के लिए विशेष नियम आज गुरुवार का दिन होने के कारण कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है: वर्जित कार्य: गुरुवार के दिन तेल का मर्दन (मालिश) करने से धनहानि होती है। इस दिन धोबी को वस्त्र धुलने या प्रेस करने नहीं देने चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, गुरुवार को न तो सर धोना चाहिए, न शरीर में साबुन लगाकर नहाना चाहिए और न ही कपड़े धोने चाहिए, ऐसा करने से घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली जाती है।
शुभ कार्य: गुरुवार को पीतल के बर्तन में चने की दाल, हल्दी, और गुड़ डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाना चाहिए और धूप-दीपक जलाना चाहिए। इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं और दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है। इस पावन अवसर पर, सभी सनातनियों को आंवला नवमी अथवा अक्षय नवमी और गोपाष्टमी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
मङ्गल श्री विष्णु मंत्र: मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥






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