
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: भारत की बेटियों ने आईसीसी महिला क्रिकेट विश्वकप 2025 का खिताब अपने नाम कर ली है। जिससे ऋचा घोष का शहर सिलीगुड़ी में जश्न का माहौल है। सभी को ऋचा का सिलीगुड़ी आने का इंतजार है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार विश्व विजेता बनी है। यह जीत सिलीगुड़ी के लिए इसलिए खास है क्योंकि इस विजेता टीम की रीढ़ शहर की बेटी ऋचा है। ऋचा ने फाइनल मुकाबले में 24 गेंदों में 34 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेलकर भारत को मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया। फाइनल मुकाबले में टीम के हर खिलाड़ी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए देश को गौरवान्वित किया।ऋचा घोष शुरुआत में लड़कों के साथ क्रिकेट की ट्रेनिंग करती थीं। उनके आदर्श महेंद्र सिंह धोनी हैं। वह धोनी की तरह विकेटकीपर बनना चाहती थीं। ऋचा के पिता क्लब क्रिकेट खेलते थे। बेटी को क्रिकेटर बनाने के लिए रिचा के पिता मानवेंद्र घोष ने बिटिया को क्रिकेटर बनाने के लिए कुछ समय के लिए अपना बिजनेस छोड़ दिया था। ऋचा घोष को क्रिकेट विरासत में मिला है। सिलीगुड़ी की ऋचा घोष भारतीय महिला क्रिकेट टीम की अहम खिलाड़ी हैं। घोष विकेटकीपर के साथ साथ हार्ड हिटर बल्लेबाज भी हैं। जो अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से मैच का रुख बदलने का माद्दा रखती हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ महिला वनडे विश्व कप मुकाबले में ऋचा ने ताबड़तोड़ 94 रन की पारी खेलकर अपना नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा लिया है। ऋचा ने वर्ल्ड कप में आठवें नंबर पर उतरकर सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर बनाने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। सिलीगुड़ी में जन्मी ऋचा घोष को टीम इंडिया तक का सफर तय करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। 18 साल की उम्र में ही ऋचा को पहली बार वनडे विश्व कप टीम में जगह मिली थी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऋचा घोष लड़कों के साथ ट्रेनिंग करती थीं।
ऋचा घोष के पिता मानवेंद्र घोष एक क्लब क्रिकेटर और कोच थे। पिता ने ही ऋचा घोष को क्रिकेट से अवगत कराया।ऋचा घोष जहां रहती थीं वहां पर महिला क्रिकेट को लेकर ज्यादा क्रेज नहीं था। उनकी शुरुआती ट्रेनिंग लड़कों के साथ हुई है.लड़कों के साथ खेलकर ऋचा घोष ने गेंद की गति, उछाल और विषम परिस्थितियों में भी नहीं घबराने की कला सीखी.ऋचा घोष लड़कों की तरह ही बल्लेबाजी करती हैं. पिता ने ऋचा को उधार का बल्ला भी दिलाया जिससे उन्होंने क्रिकेट के गुर सीखे।क्लब स्तर पर क्रिकेट खेलते थे ऋचा घोष के पिता: ऋचा घोष के पिता ने दो साल पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि वह भी क्लब स्तर पर क्रिकेट खेलते थे। उन्होंने कहा था कि जब वो क्लब में प्रैक्टिस के लिए जाते थे, तब ऋचा भी उनके साथ जाती थीं. उस क्लब में लोग अपने बच्चों को क्रिकेट की ट्रेनिंग दिलाने के लिए आते थे. ऋचा भी धीरे धीरे उन बच्चों के साथ वहां खेलने लगीं. मानवेंद्र घोष का कहना था कि वह ऋचा को टेबल टेनिस खिलाड़ी बनाना चाहते थे। ऋचा जिस शहर मे रहती थीं वहां लड़कियों के लिए क्रिकेट की अकादमी नहीं थी। इसलिए उन्होंने बिटिया का एडमिशन टेबल टेनिस अकादमी में करवा दिया। जहां पर ऋचा का मन नहीं लगता था।
पिता ऋचा घोष को टेबल टेनिस प्लेयर बनाना चाहते थे:
ऋचा घोष ने कुछ दिन बाद अपने पिता से कहा कि वह क्रिकेट खेलना चाहती हैं.फिर पिता उन्हें कुछ दिन क्लब में लेकर गए. लेकिन जब ऋचा ने अपने पिता से कहा कि वह क्रिकेट में भी आगे बढ़ना चाहती हैं तो पिता ने उन्हें कोलकाता ले जाकर ट्रेनिंग दिलाने का फैसला लिया। मानवेंद्र ने कहा कि कोलकाता में लड़कों के साथ लड़कियां ट्रेनिंग करती थीं. बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के कैंप में ऋचा भी कैंप में रहने लगी। लेकिन उनकी सुरक्षा को लेकर मानवेंद्र चिंतित थे। इसलिए उन्होंने कुछ समय के लिए अपना बिजनेस छोड़ दिया था और बेटी के साथ ही कोलकाता में रहने लगे थे। ऋचा के पिता ने बाद में कोलकाता में ही पार्ट टाइम अंपायरिंग का काम भी शुरू कर दिया था। जब ऋचा का टीम इंडिया में सेलेक्शन हुआ, उसके बाद पिता फिर अपने पुराने कारोबार में लौट गए।
16 साल की उम्र में ऋचा घोष ने भारत के लिए डेब्यू किया। ऋचा घोष ने 16 साल की उम्र में भारतीय टी20 टीम में डेब्यू किया। उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ट्राई सीरीज में पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिला।उस समय वह 16 साल और 4 महीने की थीं। उसी वर्ष उन्होंने आईसीसी टी 20 विश्व कप 2020 में भी खेला, जिसमें भारत उपविजेता रहा। हालांकि उन्हें ज्यादा खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन बेंच पर उनके संयम ने टीम प्रबंधन को प्रभावित किया। ऋचा घोष अभी सिर्फ 22 साल की हैं।उनके लिए यह साल सर्वश्रेष्ठ वर्ष की तरह रहा है. क्योंकि ऋचा ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 94 रन बनाकर एकदिवसीय विश्व कप के इतिहास में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली नंबर आठ बल्लेबाज के रूप में एक नया रिकॉर्ड भी बना डाला। उन्होंने इस मैच में कई रिकॉर्ड अपने नाम किए।अर्जुन मांतु घोष ने कहा कि सिलीगुड़ी निवासी होने के नाते, मुझे ऋचा की सफलता पर गर्व है। अब तक तो सब यही कहते थे कि क्रिकेट लड़कों का खेल है। कल के इतिहास के बाद, अब कोई ऐसा नहीं कहेगा। अब मैं ऋचा को दिखा सकती हूँ और कह सकती हूँ, हाँ, हम लड़कियाँ भी कर सकती हैं। वह बचपन से ही क्रिकेट खेलती रही है। वह बाघा जतिन एथलेटिक्स क्लब की खिलाड़ी है।ऋचा को क्रिकेट सीखने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। उसके पिता ने ऋचा का बहुत साथ दिया। वह ऋचा के पहले कोच थे। यहीं मुझे ऋचा से समानता नज़र आती है। मैंने भी बहुत छोटी उम्र में टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया था। मेरे पिता भी इस मामले में मेरा बहुत साथ देते थे। वह मुझे रोज़ाना अभ्यास के लिए ले जाते थे। मेरे पिता मुझे कोलकाता के टूर्नामेंट में भी ले जाते थे। उसके बाद, मैं राष्ट्रीय चैंपियन बनी। ऋचा के पिता ने भी अपनी बेटी का दिल से साथ दिया। कल जब मैच चल रहा था, तभी ऋचा को खेलते देख मैं बहुत भावुक हो गई। पूरी दुनिया ऋचा को खेलते हुए देख रही थी। इतने सारे दर्शकों के सामने ऋचा खेल रही थी। चारों तरफ ऋचा के नाम की जयकारे गूंज रहे थे। जीत के बाद ऋचा का इंटरव्यू। वाह, समय बवंडर की तरह बीत रहा था। एक समय सिलीगुड़ी को टेबल टेनिस का शहर कहा जाता था। घर-घर से बच्चे टेबल टेनिस खेलने आते थे। रिद्धिमान साहा के आने के बाद, इसे क्रिकेट का शहर भी कहा जाने लगा। कई लड़के क्रिकेट खेलने के लिए कोचिंग कैंप में आने लगे। लेकिन यह भी सच है कि सिलीगुड़ी में क्रिकेट का बुनियादी ढांचा नहीं है। कोई अच्छा मैदान नहीं है। हालाँकि, मुझे लगता है कि ऋचा को देखकर सिलीगुड़ी की लड़कियों में क्रिकेट के प्रति उत्साह और भी फैल जाएगा। तब बुनियादी ढांचा निश्चित रूप से तैयार हो जाएगा। ऋचा अभी सिलीगुड़ी नहीं पहुंची है। जैसे ही ऋचा सिलीगुड़ी आएगी, मैं उससे मिलूंगी। मैं ऋचा को व्यक्तिगत रूप से बधाई देना चाहती हूं। रविवार को भारतीय महिला टीम ने जो हासिल किया, वह अविश्वसनीय है






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