
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर 2025, शनिवार के दिन मनाया जाएगा। परंपरा के अनुसार, यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सोना चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। त्योहारी मौसम की जोरदार माँग, रुपये की कमजोरी और मजबूत वैश्विक संकेतों के मिश्रण ने मंगलवार को भारतीय सर्राफा बाजार में एक नया इतिहास रच दिया। सोने की कीमत ने पहली बार ₹1.3 लाख प्रति 10 ग्राम के ऐतिहासिक स्तर को पार कर लिया, जबकि चाँदी भी ₹1.85 लाख प्रति किलोग्राम के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर जा पहुँची। उसके बाद भी खरीदारी कम नहीं है। धनतेरस न सिर्फ धन और समृद्धि से जुड़ा पर्व है, बल्कि इसका गहरा संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक घटना से भी है। श्रीविष्णु की सलाह पर शुरू हुआ समुद्र मंथन
देवताओं ने संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब श्रीविष्णु ने उन्हें अमृत प्राप्त करने के लिए क्षीर सागर (ब्रह्मांडीय समुद्र) का मंथन करने की सलाह दी। इस मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया।देवता दैत्य दोनों पक्षों ने मिलकर मंथन प्रारंभ किया।
हलाहल विष से बचाई शिव ने सृष्टि:
समुद्र मंथन से सबसे पहले घातक विष हलाहल निकला। इस विष की तीव्रता इतनी थी कि पूरी सृष्टि नष्ट हो सकती थी। तब भगवान शिव ने इस विष को ग्रहण कर लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया वे ‘नीलकंठ’ कहलाए।
मंथन के दौरान अनेक दिव्य रत्न धन-संपदाएं निकलीं। अंत में भगवान धनवंतरि समुद्र से प्रकट हुए, जिनके हाथों में अमृत का कलश आयुर्वेद का ग्रंथ था। वे स्वास्थ्य अमरत्व के देवता माने जाते हैं. इसी कारण इस दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी या धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस का वास्तविक अर्थ: धनतेरस का संबंध केवल सोना-चांदी या वस्तुओं की खरीदारी से नहीं है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि सच्चा धन स्वास्थ्य जीवन की शांति है। भगवान धनवंतरि की पूजा से रोगों से मुक्ति लंबी आयु की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन खरीदारी का भी विधान है। ऐसे में आइए जानते हैं कि धनतेरस पर धन्वंतरि देवता की पूजा क्यों की जाती है और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है। दुर्वासा ऋषि का श्राप: पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार दुर्वासा ऋषि ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप दिया था। इस श्राप के प्रभाव से सभी देवताओं की शक्ति और तेज क्षीण हो गया. परिणामस्वरूप, असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली और संपूर्ण ब्रह्मांड अंधकार से भर गया।
भगवान विष्णु की सलाह पर हुआ समुद्र मंथन: देवताओं ने जब यह स्थिति देखी, तो उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई. विष्णु भगवान ने उन्हें सलाह दी कि यदि वे अमरत्व प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें क्षीर सागर (ब्रह्मांडीय सागर) का मंथन करना होगा. इस कार्य के लिए देवताओं और दैत्यों ने एकजुट होकर समुद्र मंथन करने का निश्चय किया। मंदराचल पर्वत को मंथन की छड़ी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया. इस प्रकार देवता और दैत्य, दोनों ही मंथन में जुट गए। अमृत कलश लेकर प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि: विषपान के बाद समुद्र मंथन से अनेक दिव्य रत्न, देवी-देवता और निधियां प्रकट हुईं। आखिरकार, भगवान धनवंतरि सागर से प्रकट हुए. उनके हाथों में अमृत कलश और आयुर्वेद ग्रंथ था। वे स्वास्थ्य, दीर्घायु और अमरता के प्रतीक बने। यही कारण है कि इस दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी या धनतेरस कहा जाता है। भगवान धनवंतरि को चिकित्सा और स्वास्थ्य का देवता माना गया है। क्यों जलाया जाता है जम का दीपक: इन सबके साथ एक और विशेष पूजा का विधान है यमराज के नाम का दीपक जलाना. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस की शाम सूर्यास्त के बाद घर के बाहर यमदेव के नाम का दीपक जलाना अत्यंत शुभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमदेव प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि यम दिवाली के दिन यम देवता के लिए दीया किस दिशा में जलाना चाहिए और इससे जुड़ी अन्य मान्यताएं क्या-क्या हैं।
किस दिशा में जलाएं यम का दीपक?:
ज्योतिष और धर्मशास्त्रों के अनुसार, यमराज दक्षिण दिशा के स्वामी माने जाते हैं। इसलिए धनतेरस की रात घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाना शुभ माना गया है। यम देवता के निमित्ति इस दिशा में यम दीपक जलाने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है।
धनतेरस पर कैसा होना चाहिए यम दीपक?: धनतेरस के दिन यम दीपक को घर के मुख्य द्वार के दक्षिण भाग में बाहर की ओर मुख करके रखा जाता है। यह दीपक तिल या सरसों के तेल से जलाया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
धनतेरस पर यम दीपक क्यों जलाते हैं: ऐसा माना जाता है कि धनतेरस की रात यम दीपक जलाने से व्यक्ति के जीवन से मृत्यु का भय समाप्त होता है. यह दीपक दीर्घायु, सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. घर में शांति और सकारात्मकता का वातावरण बनता है।
दीपावली से पहले धनतेरस का सनातन संस्कृति में बड़ा महत्व
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