
– अमरता के वरदान का दिन है धनतेरस,शुद्धिकरण का दिन भी है दिवाली का पहला है दिन
– दीपावली- प्रकाश का पर्व. यह पर्व सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना को भी जगाने का पर्व
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत 18 अक्टूबर को धनतेरस के पर्व के साथ होने जा रही है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर होगा।
धनतेरस खरीदारी शुभ मुहूर्त: पहला मुहूर्त- सुबह 8 बजकर 50 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 33 मिनट तक रहेगा.
दूसरा मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
तीसरा मुहूर्त- शाम 7 बजकर 16 मिनट से रात 8 बडकर 20 मिनट तक रहेगा। धनतेरस का शुभ दिन आया, सबके लिए नई खुशियां लाया। लक्ष्मी-गणेश विराजे आपके घर में सदा रहे खुशियों की छाया।घरों में प्रीमियम डालमिया आटा मैदा और सूजी लेकर है आना। इसके बने व्यंजन धनकुबेर को है सभी को भोग लगाना।।
अमरता के वरदान का दिन है धनतेरस: सनातन परंपरा में सृष्टि के निर्माण के साथ ही मानव जीवन के लिए जरूरी उन्नत विचार स्थापित हैं समय-समय पर इन्हीं विचारों को याद दिलाने और समाज में इनकी स्थापना बनाए रखने के लिए त्योहारों-पर्वों की परंपरा विकसित की गई। इन परंपराओं का सबसे बड़ा केंद्र है, दीपावली- प्रकाश का पर्व. यह पर्व सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना को भी जगाने का पर्व है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से इसकी शुरुआत हो जाती है, जिसे कि धनत्रयोदशी और धनतेरस भी कहते हैं. आयुर्वेद में अमरता का वरदान देने वाले भगवान धन्वंतरि के नाम पर यह दिन धनतेरस कहलाया, लेकिन उनके नाम की शुरुआत में ‘धन’ शब्द होने से यह पर्व केवल धन को समर्पित रह गया है।
शुद्धिकरण का दिन भी है दिवाली का पहला दिन:
असल में धनतेरस, या धन त्रयोदशी सिर्फ धन के संग्रह का पर्व या उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन समृद्धि और भाग्य को बढ़ावा देने का एक उत्सव है, देवी लक्ष्मी को इसके प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है और कुबेर इसके प्रधान देवता हैं और धन्वंतरि जो कि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे वह भी इस तिथि के देवता हैं। धनतेरस शारीरिक, वैचारिक और मानसिक शुद्धिकरण का दिन है। इस दिन देवी लक्ष्मी के साथ धन्वंतरी की भी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, धन्वंतरी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे. उनके पास आयुर्वेद की पवित्र पुस्तक और अमृत से भरा कलश था, अमृत वह पेय है जो एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी मिश्रण है और अमरता प्रदान करता है. इस प्रकार धन्वंतरी को देवताओं का वैद्य माना जाता है.
दक्षिण भारत की स्वास्थ्य परंपरा: भारत के दक्षिण में, विशेष रूप से तमिलनाडु में, नरक चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर, या धन्वंतरी त्रयोदशी पर, ब्राह्मण महिलाएं “मरुंधु” बनाती हैं, जिसका अर्थ है दवा. नरक चतुर्दशी पर, प्रार्थना के दौरान मरुंधु अर्पित किया जाता है और सूर्योदय से पहले सुबह के समय खाया जाता है. मरुंधु की रेसिपी वास्तव में परिवारों से बेटियों और बहुओं को अक्सर सौंपी जाती हैं।मरुंधु को त्रिदोषों के कारण शरीर में असंतुलन को ठीक करने के लिए लिया जाता है. हालांकि धनतेरस की उत्पत्ति से जुड़ी ढेरों कथाएं मिलती हैं, जो लोक मान्यताओं पर हावी हैं. दक्षिण में यह मान्यता भी हावी है कि महादेव शिव ने धनतेरस के ही दिन वैद्यनाथ अवतार लिया था, इसलिए वैद्यों के लिए यह दिन बहुत खास है और शैव परंपरा इसे उत्साह के साथ मनाती है। धनतेरस 2025 के लिए शुभ संकेत : इस चंद्र गोचर के साथ धनतेरस पर विशेष योग बन रहे हैं। चंद्र और बृहस्पति की युति से धन और सौभाग्य का संयोग बनेगा। जिन जातकों की जन्मकुंडली में चंद्र बलवान है, उन्हें आर्थिक उन्नति और सम्मान दोनों प्राप्त होंगे।इस अवधि में की गई पूजा और दान से दीर्घकालिक लाभ मिलेगा।चंद्र गोचर 2025 उन लोगों के लिए सौगात लेकर आया है जो अपने कर्म में विश्वास रखते हैं। इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ भी भगवान गणेश और कुबेर जी की भी पूजा होती है। इस दिन सोना-चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। लोग बड़ी संख्या में धनतेरस पर बर्तन भी खरीदते हैं।







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