करीब एक माह पहले जेल में मां से मिलकर लौटे सूरज के मन में मां की यादें गहराई से बैठ गईं। वह बार-बार “मां-मां” पुकारता और धीरे-धीरे खाना-पीना छोड़ दिया। डॉक्टरों के अनुसार यह एनाक्लाटिक सिंड्रोम का मामला है जहां मां से बिछड़ने पर बच्चा हार्मोनल असंतुलन का शिकार हो जाता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आमिल हयात खान के मुताबिक, “ऐसे बच्चे भूख-प्यास छोड़ देते हैं, जिससे इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन होता है। समय रहते इलाज न मिले तो हृदयाघात तक हो सकता है।” सोमवार दोपहर सूरज की तबीयत बिगड़ी और डॉक्टरों ने जिला अस्पताल में मृत घोषित कर दिया। पोस्टमार्टम में बीमारी से मौत की पुष्टि हुई। परिजन शव लेकर जेल पहुंचे ताकि माता-पिता अंतिम दर्शन कर लें, लेकिन जेल प्रशासन ने नियमों का हवाला देकर अनुमति नहीं दी। इससे आक्रोशित ग्रामीणों ने डुमरी नंबर दो के पास सड़क जाम कर दिया। बाद में थाना प्रभारी विजय कुमार सिंह ने वीडियो कॉल के जरिए सूरज का चेहरा दिखाया। बेटे का चेहरा देखते ही राहुल और वंदना फफक पड़े। वंदना रोते हुए जेलर से बोलीं बेटा चला गया, अब बेटी शैलजा को तो मेरे पास रहने दो। देर शाम सूरज का चिलुआताल स्थित बांस स्थान पर अंतिम संस्कार कर दिया गया। घर में मातम पसरा है। नानी गिरधारी की आंखें नम हैं सूरज मां को ढूंढता रहा, मिला तो चला गया। शैलजा भाई के जाने के बाद सन्नाटे में खो गई है। यह हृदयविदारक घटना न सिर्फ जेल व्यवस्था और पारिवारिक न्याय पर प्रश्न उठाती है।








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