
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर ‘गुरु नानक जयंती’ मनाई जाती है। इस बार 5 नवंबर को गुरु नानक जयंती है। यह दिन सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिन को समर्पित है। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी और उनके विचार आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. वह सिख धर्म के संस्थापक और दस सिख गुरुओं में से प्रथम थे, जिन्होंने धर्म के सिद्धांतों की स्थापना की। उन्होंने ईश्वर की एकता का प्रचार किया, इस बात पर जोर दिया कि केवल एक दिव्य इकाई है, जो धार्मिक सीमाओं से परे है। इसलिए गुरु नानक जयंती सिख समुदाय का सबसे पवित्र पर्व है। इसे गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस खास अवसर पर सिलीगुड़ी समेत देशभर के गुरुद्वारों में पाठ, कीर्तन व लंगर का आयोजन किया जाता है। साथ ही गुरु नानक जी के उपदेशों को स्मरण करते हुए सेवा से जुड़े कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। ग्रंथों के मुताबिक, गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में अनेक यात्राएं की हैं। इनके जरिए उन्होंने लोगों को सत्य, करुणा व एकता का संदेश किया है। आज गुरु नानक देव जी की 556 वीं जयंती मनाई जा रही है, जो श्रद्धा व शांति का प्रतीक है।
गुरु नानक जयंती सिख धर्म का सबसे पवित्र पर्व है, जो पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने समानता, प्रेम, सत्य और सेवा का संदेश देकर सिख धर्म की नींव रखी। सिख धर्म में गुरु नानक जयंती का विशेष महत्व है। यह दिन पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। सिख धर्म की नींव रखने वाले गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है।
यह दिन गुरुद्वारों में विशेष दीवान, कीर्तन, लंगर और प्रभात फेरियां आयोजित की जाती हैं। बचपन से ही था आध्यात्म की ओर झुकाव। गुरु नानक देव जी का झुकाव बचपन से ही आध्यात्म और ईश्वर भक्ति की ओर था। वे सांसारिक चीजों में रुचि नहीं रखते थे, बल्कि हमेशा लोगों की मदद करने और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे। उन्होंने आगे चलकर सिख धर्म की नींव रखी और लोगों को ‘एक ओंकार सतनाम’ का संदेश दिया, जिसका अर्थ है- ईश्वर एक है और वह सत्य है। गुरु नानक देव जी कैसे बने सिखों के पहले गुरु: कहा जाता है कि गुरु नानक देव बचपन से ही शांत और चिंतनशील प्रवृत्ति के थे। जब उनके साथी खेलकूद में व्यस्त रहते, तब वे ध्यान और साधना में लीन रहते थे। उनकी इस धार्मिक प्रवृत्ति से उनके माता-पिता चिंतित रहते थे। बचपन में जब उन्हें पढ़ने के लिए गुरुकुल भेजा गया, तो उनके गहन प्रश्नों के आगे गुरु भी निरुत्तर हो गए। यहां तक कि जब उन्हें मौलवी कुतुबुद्दीन के पास शिक्षा के लिए भेजा गया, तब भी उनकी जिज्ञासा का उत्तर कोई नहीं दे सका। सभी ने माना कि उन्हें ईश्वर ने स्वयं ज्ञान देकर इस धरती पर भेजा है। बाद में गुरु नानक देव जी ने घर-बार त्यागकर भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब देशों की यात्राएं कीं। वे जहां भी गए, लोगों को प्रेम, समानता और ईश्वर के प्रति भक्ति का संदेश दिया। उन्होंने पंजाब में कबीर की निर्गुण उपासना का प्रचार किया और समाज में एकता का संदेश फैलाया। इसी कारण वे सिखों के पहले गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ।आज हम बात करेंगे सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी की जयंती के बारे में। गुरु नानक जयंती, जिसे प्रकाश पर्व या गुरु पर्व भी कहा जाता है, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह पर्व न केवल सिख समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे विश्व में मानवता, समानता और सेवा भावना का संदेश फैलाने वाला एक महान उत्सव है।
गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को पंजाब के तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू था, जो एक पटवारी थे, और माता का नाम तृप्ता देवी था। बचपन से ही गुरु नानक देव जी में आध्यात्मिक झुकाव था। वे स्कूल में पढ़ाई के दौरान भी ईश्वर के बारे में सोचते रहते थे और सामाजिक असमानताओं पर सवाल उठाते थे। एक बार जब उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए पैसे दिए, तो उन्होंने उन पैसों से भूखों को भोजन कराया और कहा कि यह सच्चा व्यापार है।
गुरु नानक देव जी की शादी 1487 में सुलखनी देवी से हुई और उनके दो पुत्र श्री चंद और लखमी दास हुए। लेकिन वे सांसारिक जीवन से ऊब चुके थे। 1499 में, जब वे 30 वर्ष के थे, वेई नदी में स्नान करते हुए उन्हें दिव्य अनुभव हुआ। वे तीन दिन तक गायब रहे और लौटकर बोले, “न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान।” यह उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था। इसके बाद उन्होंने सिख धर्म की नींव रखी। गुरु नानक देव जी ने चार प्रमुख उदासियां (यात्राएं) कीं, जिनमें उन्होंने भारत, मध्य एशिया, मध्य पूर्व और अन्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं में वे लोगों को एक ईश्वर की भक्ति, समानता और सेवा का संदेश देते रहे। उन्होंने मर्दाना नामक संगीतकार के साथ भजन गाए और विभिन्न धर्मों के लोगों से संवाद किया। उनकी शिक्षाएं जपजी साहिब, आसा दी वार जैसे रचनाओं में संग्रहित हैं, जो गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा हैं।1539 में करतारपुर (अब पाकिस्तान) में उनका निधन हुआ। मृत्यु से पहले उन्होंने गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया। गुरु नानक देव जी का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छू सकता है। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है, विशेषकर आधुनिक दुनिया में जहां असमानता और विभेद बढ़ रहे हैं।गुरु नानक जयंती का महत्व
गुरु नानक जयंती सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह गुरु नानक देव जी के जन्म को स्मरण करने का अवसर है, लेकिन इससे कहीं अधिक है। यह पर्व एकता, समानता, सेवा और सत्य की जीत का प्रतीक है। सिख धर्म में इसे प्रकाश पर्व कहा जाता है क्योंकि गुरु नानक देव जी ने अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का मार्ग दिखाया।
इस पर्व का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ता है, जो हिंदू कैलेंडर में भी महत्वपूर्ण है। लेकिन सिख परंपरा में यह गुरु नानक जी की शिक्षाओं को याद करने का दिन है। गुरु नानक जी ने जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव को नकारा और कहा कि सभी मनुष्य एक समान हैं। उनका संदेश “इक ओंकार” यानी एक ईश्वर है, जो सभी में व्याप्त है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में सेवा (सेवा), साझा (वंड छकना) और नाम जपना (नाम जपो) जैसे सिद्धांत अपनाने चाहिए।
आज की दुनिया में, जहां सामाजिक असमानताएं, पर्यावरणीय संकट और मानसिक तनाव बढ़ रहे हैं, गुरु नानक देव जी का महत्व और बढ़ जाता है। उनके विचार हमें सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति बाहरी रस्मों में नहीं, बल्कि हृदय की शुद्धता में है। इस पर्व पर लाखों लोग गुरुद्वारों में जाते हैं, कीर्तन सुनते हैं और लंगर में भाग लेते हैं, जो समानता का प्रतीक है। लंगर में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच सभी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह पर्व न केवल सिखों के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। लंगर सेवा इस पर्व का मुख्य आकर्षण है, जहां मुफ्त भोजन वितरित किया जाता है। कई जगहों पर आतिशबाजी और सजावट भी की जाती है। भारत में अमृतसर का स्वर्ण मंदिर इस पर्व पर विशेष रूप से सजाया जाता है। पाकिस्तान में ननकाना साहिब में भी बड़े आयोजन होते हैं। वैश्विक स्तर पर, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में सिख समुदाय इसे धूमधाम से मनाते है। 2025 में, डिजिटल युग होने के कारण, ऑनलाइन कीर्तन और वेबिनार भी लोकप्रिय होंगे। यह उत्सव हमें एकजुटता का पाठ पढ़ाता है। गुरु नानक देव जी के उपदेश :गुरु नानक देव जी के उपदेश सिख धर्म की आधारशिला हैं। उन्होंने तीन मुख्य सिद्धांत दिए: नाम जपो (ईश्वर का नाम जपो), किरत करो (ईमानदारी से कमाओ) और वंड छको (कमाई साझा करो)। ये उपदेश सरल लेकिन गहन हैं। नाम जपो का अर्थ है कि हमें निरंतर ईश्वर का स्मरण करना चाहिए, जो हमें अहंकार से मुक्त करता है। किरत करो हमें सिखाता है कि मेहनत से कमाई करो, चोरी या धोखे से नहीं। वंड छको का मतलब है कि अपनी कमाई का हिस्सा जरूरतमंदों से बांटो। उन्होंने महिलाओं के सम्मान पर जोर दिया और कहा कि महिलाओं का अनादर न करो, क्योंकि वे जीवन की सृष्टि करती हैं। जाति प्रथा को नकारते हुए उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य एक हैं। उनकी उदासियों में वे हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध आदि से मिले और संवाद किया, जो धार्मिक सद्भावना का उदाहरण है। गुरु नानक जी ने पर्यावरण संरक्षण पर भी बात की। वे कहते थे कि प्रकृति ईश्वर की रचना है, इसका सम्मान करो। आज के जलवायु परिवर्तन के दौर में यह उपदेश बहुत प्रासंगिक है। उन्होंने रस्म-रिवाजों को नकारा और सच्ची भक्ति पर जोर दिया। उनके उपदेश गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं, जो सिखों का पवित्र ग्रंथ है। इन उपदेशों को अपनाकर हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए, जपजी साहिब में वे कहते हैं कि सत्य, संतोष, दया, धैर्य और विश्वास जीवन के आधार हैं। उन्होंने अंधविश्वासों का विरोध किया, जैसे कि सती प्रथा या मूर्ति पूजा को अनावश्यक बताया। उनके उपदेश हमें सिखाते हैं कि ईश्वर सबमें है, इसलिए सभी से प्रेम करो। सेवा भावना को उन्होंने सर्वोपरि माना। लंगर प्रथा इसी का उदाहरण है।गुरु नानक देव जी के प्रेरणादायक विचार गुरु नानक देव जी के विचार जीवन बदलने वाले हैं। यहां कुछ प्रमुख विचार हिंदी में दिए जा रहे हैं:”जो बोलै तिस का कहै, जो करै तिस का होइ।” – इसका अर्थ है कि हम जो बोलते या करते हैं, उसका परिणाम हमें ही भोगना पड़ता है।”सबना जीआं का इक दाता, सो मै विसरि न जाई।” – सभी जीवों का एक ही दाता है, उसे कभी मत भूलो। यह एकता का संदेश देता है।”नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार।” – नाम जपना जहाज है, जो हमें पार लगाता है।”धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए, दिल में नहीं।” – धन का अहंकार न करो। “कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए और विनम्रता से जीवन जीना चाहिए।” – अहंकार सबसे बड़ा दुश्मन है। “महिलाओं का अनादर नहीं करना चाहिए।” – महिलाएं सम्मान की हकदार हैं। “ईमानदारी और परिश्रम से जीवन यापन करो।” – किरत करो का संदेश।”नाम, दान, इश्नान” – नाम जपो, दान दो, शुद्ध रहो। “पुप्पी या किट्टन जैसी मासूमियत रखो।” – नहीं, यह उदाहरण नहीं, लेकिन उनके विचारों में सरलता है।
“सभी लोगों से प्रेम करो, क्योंकि सबका पिता एक है।” – इक ओंकार। ये विचार हमें प्रेरित करते हैं कि जीवन में सत्य, सेवा और समानता अपनाएं। इन्हें अपनाकर हम तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं। गुरु नानक जी के विचार योग, ध्यान और आधुनिक मनोविज्ञान से भी जुड़ते हैं। वे कहते थे कि सच्ची खुशी अंदर है, बाहरी चीजों में नहीं। आज के युवाओं के लिए ये विचार करियर, रिश्तों और स्वास्थ्य में मददगार हैं। उदाहरणस्वरूप, अगर आप तनाव में हैं, नाम जपना से शांति मिलेगी। अगर असमानता देखते हैं, तो सेवा से बदलाव लाएं। उनके विचारों पर किताबें लिखी गई हैं, और वे यूनेस्को द्वारा भी मान्यता प्राप्त हैं।







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