
अशोक झा/ सिलीगुड़ी: छठ महापर्व हिंदू आस्था का सबसे पवित्र और कठोर व्रत माना जाता है। खरना का दिन व्रती के लिए तपस्या की पराकाष्ठा का प्रारंभिक चरण होता है, जो आगे तीसरे दिन अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी की राह खोलता है। सूर्य देव और छठी मइया की उपासना से जुड़े इस चार दिवसीय पर्व में व्रतधारी को शरीर, मन और आत्मा की पवित्रता बनाए रखनी होती है। आज के दिन व्रत करने वाली महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। खरना का यह दिन ही वह निर्णायक क्षण होता है जब छठ व्रती (व्रत करने वाली महिलाएँ और पुरुष) 36 घंटे के कठोर और पवित्र निर्जला उपवास की शुरुआत करते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन ही छठी मैया का घर में आगमन होता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान और परिवार की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। खरना का महत्व: छठ पूजा के चारों दिन धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। दूसरे दिन पड़ने वाला खरना आत्मशुद्धि और तपस्या का प्रतीक है। दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। इसके बाद गुड़, चावल और दूध से बनी खीर, गेहूं के आटे की रोटी या पूरी और केला का प्रसाद बनाकर अर्पित किया जाता है। इसे ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ करते हैं।
चार शुभ योग: इस साल खरना के दिन चार शुभ योग बन रहे हैं, जो पर्व की पवित्रता और फलदायीता को बढ़ा रहे हैं. इनमें सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, शोभन योग और नवपंचम राजयोग शामिल हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से ये योग सुख, सौभाग्य और सिद्धि प्रदान करने वाले माने गए हैं. पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 27 अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 4 मिनट तक रहेगी, जिसके बाद षष्ठी तिथि का आरंभ होगा।
पूजा विधि: सुबह सूर्योदय से पहले व्रती स्नान कर पवित्रता का संकल्प लेते हैं और दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम के समय पूजा स्थल को साफ-सुथरा कर सजाया जाता है। सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर और रोटी या पूरी का प्रसाद तैयार किया जाता है. पूजा के दौरान सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान कर पहले सूर्य देव को और फिर छठी मैया को प्रसाद अर्पित किया जाता है। इसके बाद ही व्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं।
छठ पर्व की धूम न केवल बिहार में देखने को मिलती है, बल्कि बंगाल के सिलीगुड़ी सहित पूर्वोत्तर के कई स्थानों पर इस पर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि खरना पूजा के दिन आपको किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। खरना से जुड़ी खास बातें: खरना का अर्थ होता है, शुद्धता। ऐसे में इस दिन पर शुद्धता व पवित्रता का खास तौर से ध्यान रखा जाता है, ताकि पूजा में किसी तरह की बाधा न आए। इस दिन पर व्रती प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के नए चूल्हे का इस्तेमाल करती हैं। साथ ही चूल्हा जलाने के लिए आम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे प्रसाद की पवित्रता बनी रहती है। इस दिन पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम को देवी-देवताओं और छठी मैया को भोग लगाने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
जरूर करें ये कामसुबह स्नान-ध्यान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।पूजा का प्रसाद बनाने के लिए हमेशा साफ-सुथरी जगह का चुनाव करें। प्रसाद में गुड़, चावल और दूध से बनी खीर, पूरी व ठेकुआ आदि शामिल करें। छठी मैया को इस प्रसाद का भोग लगाएं और फिर व्रती इसे ग्रहण करें।
भूल से भी न करें ये काम: व्रत के प्रसाद में भूल से भी साधारण नमक का इस्तेमाल न करें, इसके लिए हमेशा सेंधा नमक का इस्तेमाल करें। पूजा में इस्तेमाल होने वाली किसी भी सामग्री को गंदे या जूठे हाथों से न छुएं। यदि गलती से गंदे या जूठे हाथों से किसी पूजा की सामग्री को छू लेते हैं, तो इसका पूजा में इस्तेमाल न करें। प्रसाद बनाते समय शुद्धता व साफ-सफाई का पूर्ण रूप से ध्यान रखें। खरना का प्रसाद पूर्ण रूप से सात्विक होना चाहिए।







Hits Today : 4539
Who's Online : 29