आचार्य श्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष का हुआ शुभारंभ

मुनि श्री आनंद कुमार "कालू"* ने बताए कई रहस्यभरी बातें

 

अशोक झा/ सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी तेरापंथ भवन में आचार्य श्री महाश्रमण है ग्यारहवें अनुशास्ता के जन्म त्रिशताब्दी वर्ष का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर मुनि आनंद कुमार “कालू”* ने उनके कई रहस्यभरी बातें उनके अनुयायियों को बताया। तीन सौ वर्ष पूर्व जिस व्यक्ति ने जन्म लिया था आज भी उसका नाम इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित है। जिनकी साधना और आराधना एक प्रेरणा स्फूरणा पैदाकर रही है। वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण है ग्यारहवें अनुशास्ता। जिनके नेतृत्व में आचार्य श्री भिक्षु का 300 वां जन्मदिवस संघ को विकास के लिए मनाने के लिए कटिबद्ध है। मैं इस अवसर पर अपना सर्वस्व समर्पण आचार्य भिक्षु एवं तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता के श्री चरणों में समर्पित कर साधना के मार्ग पर अग्रसर होता रहूं। यह है अन्तः भावना- पुनः केपुनः आचार्य श्री भिक्षु की वह संयम की उत्कृष्ट साधना हमारे जीवन को आलोक प्रदान करे। और अंत में अंतिम लक्ष्य सिद्धगति-मोक्ष को प्राप्त करने की प्रबल भावना। इसका मतलब वह असाधारण व्यक्तित्व का धनी था। सचमुच वह एक महापुरूष था जिनके पदचिन्हों पर लाखों-लाखों व्यक्ति चलने को आतुर है, जिनकी वाणी में अमरत्व का संदेश है ऐसे महापुरूषों का व्यक्तित्व और कर्तृव्व सदैव भवी जीवों के लिए मार्गदर्शक है। जीवन नैया को पार उतरने में एक मजबूत पतवार है जिसके सहारे संसार समुद्र को तैरा जा सकता है। वह व्यक्तित्व भिक्षु नाम से विश्रुत है। नाम था जिनका भीखण जिसने गृहस्थ जीवन में कुछ समय रहने के बाद वैराग्य भाव जागा और तैयार हो गया संयम पथ पर अग्रसर होने को।
भरी जवानी में पत्नि का वियोग, नश्वरता का अवबोध और वह लालयित हो गया, कल्याण मार्ग पर अग्रसर होने पर माता के मन में पुत्र के मोह की चेतना रोक रही है।
मां को भी समझाया न केवल समझाईस दी। अपितु भावी जीवन के लिए आर्थिक व्यवस्था की। आखिर मां की आज्ञा प्राप्त हुई और दीक्षा स्वीकार कर साधना के मार्ग पर महावीर के वाणी के आधार पर चरण चलें। आगमवाणी का वाचन पठन मनन का क्रम चला। कुछ जिज्ञासाएं उभर कर सामने आई समाधान खोजा स्वयं के द्वारा गुरू के समक्ष जिज्ञासाएं रखी पर सटीक समाधान नहीं मिला। संकल्प-विकल्प उभरते रहे। आखिर सटीकता के साथ चिन्तन निर्णय क्रियान्विति को तत्पर हुए। मन में एक ही भावना जिस उद्देश्य से घर बार छोड़ा है उस उद्देश्य की पूर्ति करना है। यद्यपि जानते थे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक कष्ट आऐंगे। लेकिन कष्टों से घबराना तो कायरता का प्रतीक है। कष्ट आऐंगे तो आऐंगे पर मुझे अपना सम्यक् चुनाव कर आगे बढ़ना होगा आगमवाणी के आधार पर ” जं क्षेयं तं समायरे” जो श्रेय है उसका समाचरण करना है। अभिनिष्क्रमण कर चल पड़े साधना के मार्ग पर। आहार और स्थान सम्बन्धित अनेक कष्ट आए, मानसिक कष्ट भी आए। पर निश्चिन्त होकर चलते रहे। योग ऐसा स्वयं की साधना के साथ पर कल्याण के योग बने। सहजयोग से काफिला जुड़ा। पंथ का निर्माण, नाम मिला तेरापंथ अर्थात् हे प्रभों आपका पंथ-मार्ग हम है आपके पथिक। संघ है वहां होती है मर्यादाएं अनुशासन व्यवस्था और आज्ञा। मर्यादाएं बनी पर थोपनेवाली नहीं सहजमन से स्वीकृति। थोपा हुआ कानून होता है। मर्यादाएं सहज स्वीकृत होती है तभी पालना संभव है। आचार्य भिक्षु विलक्षण प्रतिभा के धनी दूर द्रष्टा आचार्य थे। भावी को समझते हुए मर्यादाएं बनाई और आज भी वे मर्यादाएं अक्षुण्ण रूप में पालन हो रही है। भावी की डोर उत्तरवर्ती आचार्यों को सौंप दी जैसा उचित समझे परिवर्तन या संशोधन का अधिकार आचार्य के हाथ में रखा।

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