बस्ती के खबरनवीस से सम्पादक ने कहा काशी नहीं कश्मीर है कलम कम एक 47 ज्यादा चलती है
रोमिंग जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 2
धरती का स्वर्ग जम्मू-कश्मीर है। बस्ती के नार्मल स्कूल में कक्षा आठ में पढ़ाई के दौरान किताब में फोटो के साथ देखकर रटी हुई बात,जेहन की खिडक़ी से निकल रात को आसमान में ही जन्नत खोजने में जुट गयी। अंधेरी रात होने के कारण कुछ समझ में नहीं आया। ठंड की चुभन भी बढऩे लगी थी। ट्रांसफर एडवांस के रूप में मिले दस हजार रुपए जेब में जरूर गरमी का अहसास दिला रहे थे। जेब की गरमी ठंड में बेमतलब लग रही थी तो होटल की तलाश में जुट गया। रात नौ बजे थे, लेकिन सडक़ों पर पसरे सन्नाटे को सेना के गश्ती वाहन और इक्का-दुक्का आटो चीर रहे थे। स्टेशन से निकलकर आटो स्टैंड पर एक आटो वाले ने सौ रुपए में रघुनाथ मार्केट स्थित होटल कैपिटल तक पहुंचाया। रात के दस बज गए थे। बाजार में खाने-पीने की दुकानें बंद हो गयी थी। होटल का गेट भी बंद पड़ा था, आटो वाला अंदर जाकर खुलवाने के बाद मुझे बुलाया। कमरा मिलते ही आटो ड्राइवर को पैसा देकर विदा किया। कमरे में अभी कपड़े बदला ही रहा था कि दरवाजे पर खटखट की आवाज हुई। दरवाजा खोला तो छह फुट लंबा-चौड़ा एक बुजुर्ग एक जग पानी लेकर आया। खाने को क्या मिलेगा? साहब अब होटल बंद हो गया है, कुछ नहीं मिलेगा। चाय तो मिलेगी, साहब वह भी नहीं मिलेगी। फिर आखिर मिलेगा क्या? साहब आप गोश्त खाते हैं? नहीं। साहब.. हम जिस गरम गोश्त की बात कर रहे हैं, वह पूरी दुनिया में मशहूर है। रेडलाइट एरिया के दलालों की तरह आंखों में ग्राहक को रिझाने वाली चमक पैदा करते हुए कहा ठंड भाग जाएगी.. साहब। उसका इशारा समझते हुए देर नहीं लगी, उसको दो टूक कहा एक चाय तो पिला नहीं पा रहे हो आए हो गोश्त खिलाने। उसको विदा करने के बाद पानी पीने के लिए जग से एक गिलास पानी निकाला तो एक घूंट मुंह में डालते ही लगा दांत में करंट उतर गया। बैग में खाने-पीने की बची-खुची चीज खोजने में लग गय। बिस्कुट का आधा पैकेट मिला, उसको साफ करने के बाद भगवान का नाम लेकर सोने की तैयारी में जुट गया। कमरे में रखे दो कंबल के साथ जिस कंबल को ले गया था,उसको भी सटाकर ओढ़ लिया। कमरे में रखे टीवी को आन करके रिमोट लेकर चैनल यात्रा प्रारंभ की। हिंदी,अंग्रेजी चैनलों के साथ जेके चैनल को देखकर ठहर गया। लंबे सफर के चलते थकान के कारण आंखें बोझिल होने लगी। माता रानी का नाम दिल में लिया ताकि सबेरे समय से नींद खुल जाए। सोने की कोशिश जुट गया लेकिन दिमाग में जो विचारों का ज्वार-भाटा आया था वह थमने का नाम नहीं ले रहा था।
शादी के चार साल बाद एक बार पत्नी और दुधमुंही बेटी के साथ माता रानी के दर्शन करने आया था,तब सोचा नहीं था कि रोटी की जंग के लिए मां के चरणों को कर्मभूमि बनानी होगी। नौकरी छोडक़र खेती-बाड़ी करने की पिता जी द्वारा दी गई हिदायतें सोचने को मजबूर कर रही थी। दिल-दिमाग के बीच गजब का वैचारिक संघर्ष हो रहा था। दिमाग में उमड़ रहे सवालों को दिल यह कहकर खारिज करता रहा कि सरहद पर तैनात सेना के जवानों के भी मां-बाप,परिवार होते हैं,जो डर गया वो मर गया, दिल और दिमाग एक दूसरे को तसल्ली देने के लिए कितनी रात को नए-नए तर्क-कुतर्क गढ़ते रहे मालूम नहीं। सबेरे नौ बजे दरवाजे पर खटखट होने के साथ नींद खुली। गर्म पानी से नहाने के बाद तैयार होकर अमर उजाला जम्मू आफिस के लिए चल दिया। तवी नदी पार करते ही विक्रम चौक आ गया। एक बहुमंजिला इमारत के ऊपर अमरउजाला की होर्डिंग दूर से दिखाई पड़ रही थी। नजदीक पहुंचा तो नीचे गार्ड ने रोका, परिचय देने के साथ मकसद समझाया तो ऊपर जाने दिया। घड़ी में साढ़े दस बज गए थे। स्थानीय संपादक प्रमोद भारद्वाज जी अपने चैंबर में आ गए थे। चपरासी ने जाकर बताया तो अंदर बुला लिया। प्रणाम के बाद प्रोफेशनल अनुभव के साथ परिवार के बारे में जानकारी ली। बोले बास (शशिशेखर) ने तुम्हारे बारे में बताया कि रिपोर्टर अच्छे हो लेकिन……. मैने कहा हर आदमी के अंदर कुछ न कुछ लेकिन होता है,नहीं होता है तो भगवान बन जाता है। इस जवाब को उनको उम्मीद नहीं थी। वह कहे तुम्हारे सामने अलीगढ़, बरेली का भी विकल्प था, फिर यहां क्यों आए। जवाब था रोमांच और चुनौती को चीरने की जुनूनी जिद है। उनके हावभाव से लगा कि यह उत्तर भी उनको नहीं भाया। ऐसे कई सवाल का जवाब सुनने के बाद वह काशी और कश्मीर की पत्रकारिता में अंतर समझाने लगे। पहली बाधा तो भाषा की है, आप हिंदी,अंग्रेजी जानते हैं लेकिन यहां डोगरी और कश्मीरी जानने वाले ही रिपोर्टिंग में सफल होते हैं। धारा 370 का फंदा यहां की पत्रकारिता को भी किसी न किसी कोण से निर्भीक बनने से रोकता है। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र होने के कारण कभी भी कहीं कुछ हो सकता है। जम्मू की मंडी में हुए एक आरडीएक्स धमाके का जिक्र करते हुए कहा कि मैं वहां से निकला था कि पांच मिनट के अंदर ब्लास्ट हुआ। घर सामान लेकर पहुंचा उससे पहले धमाके की खबर जेके चैनल पर आ गयी थी। आतंकवाद के चलते पत्रकारिता की राह में ऐसी दर्जनों अनसुनी चुनौतियों को बताने के बाद कहा यह काशी नहीं कश्मीर है, कलम कम एके-56 ज्यादा बोलती है। आप दस दिन जम्मू-कश्मीर घूमकर आप समझ लीजिए, अगर आपको लगेगा तो काम स्टार्ट कीजिएगा। भेड़ के दूध की बनी एक चाय के साथ एक घंटा से ज्यादा का प्रवचन सुनने के बाद, चैंबर से निकलकर जमीं का जन्नत घूमने का दिल कर रहा था। संपादक जी के मंद पड़ रहे प्रवचन को सुनने के बाद बोला सर, आप सही कह रहे हैं पहले घूमता हुं फिर जो समझ में आएगा आपको बताएंगे। और प्रणाम करके संपादक के चैंबर से निकल दिया जन्नत की सैर करने। आगे क्या हुआ पढ़े इस लिंक को क्लिक करके
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