बुन्देलखंड का अनोखा मंदिर जहां ईंट से निकलने वाली ज्वाला की होती है पूजा
बुन्देलखंड के हमीरपुर जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां चौबीसों घंटे एक ईंट से ज्वाला निकलती रहती है। इस मंदिर को मां ज्वाला देवी के नाम से जाना जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि मंदिर मे किसी तरह की कोई मूर्ति नहीं है। सैकड़ों सालों से यहां देवी मां के नाम पर पूड़ी, गुड़,और चने की दाल से बने रोट का भोग लगाए जाने की परम्परा है। यहां हर साल नवदुर्गा पर्व पर सैकड़ों लोग सामूहिक हवन पूजन करते है। इस साल भी नव रात्रि पर्व पर पूरे नौ दिन हवन पूजन होता रहा।
मां ज्वाला देवी का यह अनोखा मंदिर यहां हमीरपुर जिले के भंमई गांव मे स्थित है। यह गांव सिसोलर थाना क्षेत्र में आता है। बांदा-मौदहा और सुमेरपुर-टिकरी मार्ग से पांच किमी दूर इस मंदिर मे छोटे वाहनों से ही मौदहा या सुमेरपुर से पहुंचा जा सकता है। इस गांव के बाहर मां ज्वाला देवी का पवित्र स्थल है ,जहां सिर्फ जलती ईट की ही पूजा होती है। मंदिर का पुजारी और गांव के बडे-बुजुर्ग बताते हैं कि जलती ईट में सैकड़ों सालों का अतीत छिपा है।
गांव और आसपास के इलाकों से आए बड़ी संख्या में लोगों ने मंदिर में सामूहिक रूप से हवन किया। गांव के पूर्व सरपंच दिनेश शुक्ला ने बताया कि त्योहार के मौके पर ज्वाला देवी के दरबार में श्रद्धालुओं की भारी भीड उमडती है। मंदिर में सामूहिक हवन पूजन के बाद कन्याओं को भोजन कराया जाता है। मंदिर के महंत रतन ब्रम्हचारी ने बताया कि मां ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास सात सौ साल पुराना है। यहां सिर्फ जलती ईट की ही पूजा होती है।
गांव के पूर्व सरपंच और महंत ने बताया कि गांव के भुर्जी बिरादरी का एक बुजुर्ग चारो धाम की तीर्थयात्रा पर पैदल निकला था। तभी जंगल में उन्हें एक संत मिल गए। बीहड़ के बीच साधना में बैठे संत ने बुजुर्ग को अपने पास बुलाया। संत के कहने पर बुजुर्ग वहीं बैठ गया। उसने देखा संत के पास एक दिव्य ईट रखी है जिससे आग की लपटें निकल रहीं हैं। संत ने भुर्जी को ईट देकर कहा कि इस ईट को गांव के खाली पडे मंदिर में स्थापित करा देना। गांव और क्षेत्र का बड़ा कल्याण होगा।