एक महिला अपने घर में प्रतिमाह 51 हजार रुपये का काम करती है

सेवा, समर्पण, सम्मान, सहनशीलता और रिश्तों को जोड़ने की कला के नजरअंदाज करने से परिवार टूटा

*नारी के काम को कमतर आंका गया और चारदिवारी में बंद कर दिया गया*

• महिला सशक्तिकरण का मतलब केवल आर्थिक ताकत नहीं, बल्कि धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक भागीदारी की चर्चा की जानी चाहिए
• महिला नेतृत्व का विकास हो ताकि कोई प्रधानपति, विधायकपति होकर महिलाओं को शून्य में न बदल दे
• परिवार को बचाने के लिए महिलाओं के योगदान को स्वीकार्यता देनी होगी
• भारतीय भोजन प्रोत्साहन योजना का हुआ शुभारंभ

वाराणसी। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान के महिला परिषद द्वारा भारतीय नारी : संस्कृति और परम्परा की संवाहक विषयक परिचर्चा का आयोजन लमही के सुभाष भवन में किया गया। महिला परिषद ने तय किया कि महिलाओं की सही वस्तु स्थिति की जानकारी के लिये सर्वे कराया जाएगा। भारत की संस्कृति को बचाने से लेकर देश बचाने तक में महिलाओं के योगदान की चर्चा की जाएगी और उनके इतिहास को संरक्षित करने के लिये बनारस की नारी पुस्तक लिखी जाएगी। इसमें उन महिलाओं का इतिहास होगा, जिन महिलाओं ने अपने परिवार के साथ लोगों की मदद की है और समाज के लिए प्रेरणा बनी हैं।

परिचर्चा एवं शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एटीएस के डिप्टी एसपी विपिन राय ने सुभाष मन्दिर में सलामी दी एवं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं आरती कर परिचर्चा का शुभारम्भ किया।

महिला परिषद की ओर से समाज पत्र तैयार किया गया, जिसमें यह बताया गया कि जो लोग घरेलू महिलाओं के काम को कमतर आंकते हैं, उनको सिर्फ अर्थ से जोड़ते हैं, समाज में प्रचलित कर दिया गया है कि महिलाएं कमाती नहीं हैं इसलिए उनकी कोई कीमत नहीं। तो उनकी आंख खोलने के लिए समाज पत्र जारी कर बताया गया कि एक महिला प्रतिमाह जितना मुफ्त में काम करती है, उसकी कीमत कितनी है। यह देखकर सबकी आंख खुल जाएगी और एक महिला किस तरह से अपने परिवार के लिए जीवन समर्पित करती है। एक छोटे परिवार में एक महिला जो मुफ्त में काम करती है उसकी मेहनत की कीमत देखिए-
1. खाना बनाना – 5 हजार से 10 हजार रुपये प्रतिमाह
2. झाडू पोछा – 1500 रुपया प्रतिमाह
3. बर्तन साफ करना – 2 से 3 हजार रुपये प्रतिमाह
4. बच्चा संभालना – 7000 रुपये प्रतिमाह
5. बच्चे का होमवर्क – 2 से 3 हजार रुपये प्रतिमाह
6. कपड़ा धुलना – 2000 रुपये प्रतिमाह
7. नर्सिंग (बीमार लोगों की सेवा) – 10 हजार रुपये प्रतिमाह
कुल लगभग 36,000 रुपया प्रतिमाह का काम एक घरेलू महिला अपने घर के लिए करती है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि विपिन राय ने कहा कि जहां नारी का सम्मान है वहीं देवता का वास है। मनुष्य महान कैसे बनता है, विचारों से व्यक्ति महान बनाता है। गुरु जी के विचारों से हम सभी प्रभावित होता हूं। आप पुरुषों से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। आप सृजन करती है। दुष्कर्मियों को सजा चलना चाहिये। माँ पुजनीय हैं, पत्नी पूजनीय है। दूसरी सबसे बड़ी शक्ति सहनशीलता है। सनातन कहता है एक में सब है और सबमें एक है। हम सभी परमात्मा के अंश हैं। माँ सबसे बड़ी शक्ति है। चुनौतियों है। पहनावा, रहन-सहन, विचारों से महिला का सम्मान होता है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग होता है, बेटियों को जागरूक होना हैं।

विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि नारी के सेवा, समर्पण, सम्मान, सहनशीलता और रिश्तों को जोड़ने की कला को नजरअंदाज करने से परिवार टूट गया। खराब वाणी घरों को तोड़ रही है, अपने रिश्तों को तकलीफ पहुँचा रही है। केवल प्रेम और सम्मान देकर, मधुर वाणी बोलकर और अपने घर की महिलाओं के सम्मुख अहंकार को छोड़कर अपने परिवार और समाज को खूबसूरत बनाया जा सकता है। पता नहीं क्यों महिलाओं के महान योगदान की चर्चा नहीं की जाती, जबकि दंगाईयों में महिलाओ का नाम नहीं, आतंकवादियों में महिलाओं का नाम बहुत कम है और जमीन कब्जा करना, ड्रग्स का धंधा करना, हिंसा करना और पुरुषों को छेड़ना महिलाएं जब नहीं करतीं, तो ये भी समाज और देश के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है। घरेलू महिला के कार्य को नजरअंदाज किया जाता है। महिला के कार्य के प्रति कोई संवेदना नहीं होती है। घर संभालनें की जिम्मेदारी केवल स्त्री की नहीं, बल्कि पुरुषों की भी है। भारतीय संस्कृति में सेवा, त्याग की जरूरत थी, लेकिन उसके महत्व को समझा नहीं गया। भेदभाव से मुक्त समाज का निर्माण करना होगा। अत्याचार से मुक्त समाज को बेटियां दिलाएंगी। राजनीति में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होगा। भारत को जोड़ने का काम करेगी।

विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ० अर्चना भारतवंशी ने कहा कि गांव-गांव में महिला परिषद का गठन किया जा रहा है। महिलाओं पर अत्याचार और शोषण करने वालों की सूची बनेगी। महिला नेतृत्व को खड़ा करना है। जितना बेटियों पर प्रतिबंध लगाया जाता है, उतना ही बेटों पर लगा दिया जाए, तो समाज सुरक्षित हो जाये। हम महिलायें परिवार की रीढ़ है। महिलाओं को आत्मनिर्भर होना, सही शिक्षा एवं संस्कार की जरूरत है। महिलाओं को अपनी समस्याओं को हल करने आना चाहिए। परिवार और समाज को संस्कार सीखना है। भेदभाव रहित समाज का निर्माण करना होगा। बेटियों की शक्ति को पहचानना होगा। महिलाओं को शक्तिशाली बनाने के लिये ही महिला परिषद का गठन किया गया।

अध्यक्षता करते हुए भारत सरकार में उर्दू काउंसिल की सदस्य हनुमान चालीसा फेम नाज़नीन अंसारी ने कहा कि यह देश सनातन संस्कृति को मानने वाला है। हम परम्पराओं और संस्कारों को मानने वाले हैं। इसलिए आज दुनियां हमारी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही है। टूटते परिवारों को बचाने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज न किया जाए। एक घरेलू महिला अपने परिवार के साथ समाज और देश के लिए काम करती है।

संचालन डॉ० नजमा परवीन ने किया एवं धन्यवाद डॉ० मृदुला जायसवाल ने दिया। इस अवसर पर आभा भारतवंशी, पूनम श्रीवास्तव, खुशी रमन भारतवंशी, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, सरोज देवी, रेखा, रंजना, सालमणी, कुसुम, रीना, पुष्पा, संजू, हीरावती, किरन, शबनम, नगीना, निशा, लक्ष्मीना, राजकुमारी, धनेसरा, हीरामणी, मीरा, मुनका, सेचना, अर्चना श्रीवास्तव, प्रभावती, बेचना आदि महिलाएं मौजूद रहीं।

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