दो तिहाई बहुमत से जीत गई अवामी लीग, चौथी बार शेख हसीना के हाथ बांग्लादेश के सत्ता की बागडोर

ढाका: बांग्लादेश में रविवार को संसद चुनाव के लिए वोट डाले गए। मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के चुनावों के बहिष्कार और छिटपुट हिंसा के मामलों के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और अवामी लीग प्रमुख शेख हसीना ने शानदार जीत दर्ज की। बांग्लादेश मतदान कुल मिलाकर शांतिपूर्ण रहा और बांग्लादेश में आम चुनाव में शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग प्रचंड बहुमत से जीत गयी। भारत क्षेत्रीय शांति के लिए प्रतिबद्ध है और शेख हसीना की जीत इसे आगे ले जाएगी। यह विकास की जीत है और आतंकवाद का समर्थन करने वालों के लिए बड़ा झटका है।
गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने इसे छिटपुट घटनाओं के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करार देते हुए बड़ी संख्या में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए देश के लोगों को बधाई दी। 300 में से 170 सीटों पर तो पार्टी पहले ही जीत दर्ज कर चुकी है और कई अन्य सीटों पर वो अपनी लीड बनाए हुए है। अब शेख हसीना और उनकी पार्टी आवामी लीग के इस शानदार और एकतरफा प्रदर्शन के कई कारण माने जा रहे हैं। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि इस बार के बांग्लादेश चुनाव में विपक्ष नाम के समान रहा है। चुनाव से पहले ही बहिष्कार का ऐलान कर दिया गया था, ऐसे में कई जानकार तो चुनाव को सिर्फ औपचारिकता मात्र मान रहे थे। इसी वजह से शेख हसीना को इस बार की मिली बंपर जीत को सिर्फ उनकी मेहनत या करिश्मे के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता। इसका एक बड़ा कारण ये है कि उनके सामने कोई विपक्ष नहीं था। कुछ निर्दलीय प्रत्याशी जरूर चुनाव जीते हैं, लेकिन उनसे वो कड़ा मुकाबला नहीं मिला जो विपक्ष दे सकता था। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वे इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेने वाली है। तर्क दिया गया था कि शेख हसीना की वजह से कोई भी चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकता और जब तक उनकी तरफ से इस्तीफा नहीं दिया जा सकता, किसी भी तरह के चुनाव का कोई फायदा नहीं। अब क्योंकि शेख हसीना ने इस्तीफा देने से मना कर दिया था, ऐसे में विपक्ष ने लोकतंत्र के उस पर्व में हिस्सा ही नहीं लिया और बड़े आराम से चौथी बार शेख हरीना पीएम बन गईं। यहां ये समझना जरूरी है कि इस बार सिर्फ 40 फीसदी के करीब मतदान हुआ है, ये पिछली बार के मुकाबले आधा रह गया है। बांग्लादेश के पिछले चुनाव में 80 फीसदी वोटिंग हुई थी, तब जनता में नई सरकार चुनने को लेकर एक उत्साह था। लेकिन इस बार सिर्फ हिंसा देखने को मिली, कई जगह पर तनाव रहा और बूथ तो खाली भी पड़े दिख गए। जमीन पर कई लोगों ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं था, कोई अपने घर से बाहर निकलकर वोटिंग करने भी नहीं गया। वैसे भी विपक्ष ने क्योंकि चुनावों का बहिष्कार कर दिया था, ऐसे में उनका बड़ा वोटर भी वोटिंग के लिए नहीं निकला। इसी का नतीजा है कि चौथी बार शेख हसीना बांग्लादेश की सत्ता संभालने जा रही हैं। वैसे उनकी पार्टी को जरूर थाली में सजाकर ये जीत मिल गई है, लेकिन खुद हसीना ने एक बड़ा रिकॉर्ड बना डाला है। उन्होंने अपनी सीट गोपालगंज-3 से बड़े अंतर से जीत दर्ज की, उनके खाते में कुल 249,965 वोट गए, वहीं उनके विरोधी एम निजाम उद्दीन लश्कर को महज 469 वोट ही मिल सके। अभी के लिए विपक्ष की तरफ से चुनावी नतीजों को फर्जी बता दिया गया है और जोर देकर कहा गया है कि आगे भी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन जारी रखा जाएगा। वैसे बांग्लादेश में इस बार के जो चुनाव हुए हैं, उसमें शेख हसीना का साइलेंट सपोर्टर भारत भी था। इस बार की ग्लोबल पॉलिटिक्स ऐसी थी कि भारत हर कीमत पर शेख हसीना को फिर पीएम बनता देखना चाहता था। असल में इसका एक बड़ा कारण राष्ट्रीय सुरक्षा है। भारत और बांग्लादेश हजारों किलोमीटर का बॉर्डर साझा करते हैं, ऐसे में हर लिजार से स्थिति शांतिपूर्ण बनी रहे, ये जरूरी है। जब बांग्लादेश में 2009 तक बीएनपी की सरकार थी, तब भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हो चले थे। इसका एक बड़ा कारण ये था कि बीएनपी के राज में कई कट्टरपंथी संगठन सक्रिय हो गए थे, पाकिस्तान की ISI के साथ भी खूब दोस्ती निभाई जा रही थी। ये सारे वो समीकरण थे जो भारत के लिए बिल्कुल भी मुफीद नहीं हो सकते थे। वहीं दूसरी तरफ जब शेख हसीना और उनकी आवामी पार्टी बांग्लादेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई, जमीन पर काफी कुछ बदल गया। ना सिर्फ दोस्ती का हाथ बढ़ाया गया, बल्कि जिससे भी भारत को दिक्कते थीं, उन सभी को भी बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसके ऊपर बांग्लादेश भारतीय सामान के लिए पांचवा सबसे बड़ा निर्यातक देश बना हुआ है, इस लिहाज से भी शेख हसीना की सरकार हिंदुस्तान के लिए सही साबित हुई है।
कौन है शेख हसीना? : शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं। 1968 में हसीना का निकाह प्रख्यात बंगाली वैज्ञानिक एमए वाजेद मिया से हुआ। अप्रैल 2009 में पति का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया। 1960 के दशक के अंत में हसीना, ढाका विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में भी सक्रिय थीं। 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान विद्रोह में हिस्सा लेने के कारण हसीना और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को हिरासत में लिया गया था, जिसके बाद बांग्लादेश की आजादी हुई। 15 अगस्त, 1975 को, हसीना के पिता, मां और तीन भाइयों की उनके घर में ही कई सैन्य अधिकारियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। कैसे रखा राजनीति में कदम? : 1981 में स्वदेश लौटने पर, हसीना लोकतंत्र की एक प्रमुख और मुखर वकील बन गईं। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कई मौकों पर घर में नजरबंद कर दिया गया। इस बीच, संसद में विपक्ष के नेता के रूप में हसीना ने एक सीट हासिल की, जहां उन्होंने सैन्य शासन की हिंसा की निंदा की और सभी नागरिकों के लिए बुनियादी मानवाधिकारों को सुरक्षित करने के उपाय शुरू किए। दिसंबर 1990 में बांग्लादेश के अंतिम सैन्य नेता ले. जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद ने हसीना द्वारा जारी अल्टीमेटम और बांग्लादेश के लोगों द्वारा व्यापक समर्थन के जवाब में इस्तीफा दे दिया।1996 में पहली बार प्रधानमंत्री चुनी गईं:
जून 1996 में हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं। हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में हसीना के पहले कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ी। 2001 में वह आजादी के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली पहली प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद जनवरी 2009 में हसीना ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। मीडिया रिपोर्ट्स पर नजर डालें तो, 2019 के चुनाव में भी हिंसा की कई घटनाएं देखी गई थीं। भारत और बांग्लादेश PM की सैलरी में जमीन-आसमान का अंतर : फोर्ब्स मैगजीन के अनुसार, दुनिया के पॉवरफुल महिलाओं की टॉप 50 की लिस्ट में हसीना का नाम 46 नंबर पर आता है। पिछले साल के आंकडें के अनुसार, हसीना 5 मिलियन डॉलर संपत्ति की मालकिन हैं। इनकी सालाना सैलरी की बात करें तो, पीएम रहते हुए इनको 86 हजार रुपये के करीब वेतन यानी कि महज सात हजार रुपये मिलते हैं। खास बात यह है कि भारत के पीएम नरेंद्र मोदी का करीब 20 लाख रुपये सालाना वेतन है। रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button