बोस ने दार्जिलिंग से भेजी थी पत्नी को विजयादशमी की शुभकामना
सिलीगुड़ी: भारत के महान सपूत और आजादी के लिए अंग्रेजों से टक्कर लेने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 127वीं जयंती है।भारत के सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारी और दूरदर्शी स्वतंत्रता सेनानी नेताजी ने देश को आजादी दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष किया। नेताजी को आजाद हिंद फौज के सिपाहियों ने सम्मानस्वरूप ‘नेताजी’ की उपाधि दी थी। आजादी के दीवाने नेताजी को प्यार से सुभाष बाबू कहते हैं। सुभाष चंद्र बोस को हर साल कोलकाता में होने वाली दुर्गा पूजा का बेसब्री से इंतजार रहता था। फिर चाहे वे जेल में रहें या सार्वजनिक जीवन में इस मौके पर धूमधाम से पूजा का आयोजन करते थे। 9 नवंबर 1936 में नेताजी ने दार्जलिंग से अपनी पत्नी एमिली शेंक्ल को पत्र लिखकर विजयादशी की शुभकामना भेजी थी।उन्होंने पत्र में लिखा था। हमारा सबसे बड़ा त्योहार दुर्गा पूजा अभी खत्म हुआ है, मैं तुमको विजया की शुभकामनाएं भेजता हूं। इससे यह पता चलता है कि पूरा बोस परिवार और नेताजी के लिए दुर्गा पूजा सबसे बड़ी पूजा होती थी। नेता जी जब अपनी मां, बहन और भाभी को भी पत्र लिखा करते थे तो पत्र के लिखने की शुरुआत ‘मां दुर्गा सदा सहाय’ से करते थे। इन संपूर्ण वांग्मय से पता चलता है कि, नेताजी को मां दुर्गा के प्रति विशेष श्रद्धा-भक्ति थी।
यहां है विश्व का पहला सुभाष मंदिर:
सुभाष चंद्र बोस के जीवन का एक पक्ष आध्यात्मिकता से जुड़ा था और वो देवी पूजा के उपासक थे। लेकिन देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां नेताजी की पूजा होती है। यह मंदिर काशी के लमही में स्थित है, जिसकी स्थापना 23 जनवरी 2020 में हुई थी। इस मंदिर का नाम है ‘सुभाष मंदिर’. मंदिरों के शहर काशी में राष्ट्रदेवता के रूप में प्रतिदिन नेताजी की पूजा भी होती है। इतना ही नहीं इस मंदिर में गर्भवती महिलाएं संतान को देशभक्त बनाने की कामना व उद्देश्य के साथ यहां मन्नतों का धागा भी बांधती हैं।
सुभाष मंदिर के लिए उपयुक्त भारत मां की प्रार्थना की पंक्तियां: जाति धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहां,सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम सम्मान यहां,सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम,आओ यहां अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए ऐसे नारे दिए जिससे भारतीयों के दिलों में आजादी को लेकर जल रही ज्वाला और तेज हो गई। इसलिए हर साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। सुभाष चंद्र बोस के जीवन का एक पक्ष राजनीति और आजादी की लड़ाई से जुड़ा था तो वहीं दूसरा पक्ष आध्यात्मिकता से जुड़ा था। सुभाष चंद्र बोस जिन चीजों को हमेशा अपने पास रखते थे, उनमें भगवत गीता भी एक थी. वो रोजाना इसका पाठ करते थे और इसी के अनुरूप काम करते थे।
मां काली और दुर्गा की भक्त थीं नेता जी की माता
लियोनार्ड गार्डन अपनी किताब “ब्रदर्स अगेंस्ट द राज” में कहते हैं कि, सुभाष चंद्र बोस ने वैसे को कभी भी धर्म पर कोई बयान नहीं दिया, लेकिन हिंदू धर्म उनके लिए भारतीयता का हिस्सा था. गार्डन ने अपनी किताब में लिखा कि, सुभाष चंद्र बोस की माता जी मां दुर्गा और काली की भक्त थीं, जिसका प्रभाव नेताजी पर भी पड़ा। मां काली और दुर्गा की पूजा नेताजी को पारिवारिक विरासत में मिली थी। वे काली मां के भक्त होने के साथ ही तंत्र साधना की शक्ति पर भी भरोसा करते थे। जब नेताजी म्यांमार के मांडला जेल में थे तब उन्होंने तंत्र मंत्र से जुड़ी कई पुस्तकें मंगवाकर पढ़ी थीं। धर्म से परे नेता और दुर्गा-काली के उपासक भी थे सुभाष चंद्र बोस: नेताजी सुभाष चंद्र बोस को धर्म के प्रति आस्था थी। लेकिन साथ ही उनका यह भी मानना था कि अपने धर्म के प्रति आस्था रखो, धार्मिक रहो लेकिन हर धर्म का सम्मान करो और सभी धर्मों को साथ लेकर चलो। इसलिए जब भी बात देशहित,किसी अभियान या आजादी की लड़ाई की होती तो वे हर धर्म के लोगों को साथ लेकर चलते थे। रिपोर्ट अशोक झा