बाबा के विवाह के लिए सज धज कर तैयार है मंदिर, भक्तो में उत्साह
सिलीगुड़ी: आज महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। पूरे देश में शिवरात्रि की जोरो-शोरों से तैयारियां चल रही है। भगवान भोलेनाथ की पूजा के दौरान शिव भक्त उनके सबसे प्रिय शिष्य नंदी की भी पूजा-अर्चना जरूर करते हैं। ऐसे में आपके मन में भी एक बार ही सही, पर ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर भोलेनाथ की पूजा के साथ-साथ नंदी की पूजा क्यों की जाती है। आज हम आपको इस ख़बर में बताएंगी की आखिर नंदी भोलनाथ के सबसे बड़े भक्त कैसे बने। पंडित अभय झा की माने तो जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया था, तब उसमें से अमृत और विष निकला था। अमृत कलश तो देवताओं को दे दिया गया पर विष का कलश भगवान भोलेनाथ ने स्वयं रख लिया था और उस विष को शिव भगवान ने खुद पी लिया था। उन्होंने आगे बताया कि जिस वक्त भगवान भोलेनाथ विष का पान कर रहे थे, विष की कुछ बूंदे उससे टपक कर जमीन पर गिर गई थी।
इस दौरान नंदी ने अपने प्राण की चिंता न किए बगैर उस विष के बूंद को अपनी जीभ से चाट कर साफ कर दिया था। जिसके कारण भगवान भोलेनाथ ने उन्हें अपना सबसे प्रिय शिष्य मान लिया और उन्हें अपने वाहन के रूप में भी स्वीकार कर लिया।माना जाता है कि शिव जी अधिकतर समय तपस्या में लीन रहते हैं, उनकी तपस्या में विघ्न न पड़े इसलिए नंदी जी हमेशा उनकी सेवा में तैनात रहते हैं। जो भी भक्त् भगवान शिव के पास अपनी समस्या या मनोकामना लेकर आते हैं, नंदी उन्हें वहीं रोक लेते हैं।
शिवजी की तपस्या भंग न हो इसलिए नंदी भक्त्गणों की बात सुन लेते हैं और शिवजी तक पहुंचा देते हैं। यही वजह है कि लोग नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया था कि जो तुम्हारे कान में आकर अपने दिल की बात कहेगा, उस व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होंगी।अपनी समस्या या मनोकामना कहने के कुछ नियम होते हैं और उनका पालन करना बहुत आवश्यक होता है। अगर आप ऐसा करते है तो आपकी मनोकामना भगवान शिव तक पहुंच जाएगी और इसका फल आपको तुरंत प्राप्त होगा ।इसके भी कई कारण यह हैं। पहला ये कि नंदी अपने इष्ट को हमेशा अपने नेत्रों के सामने देखना चाहते हैं इसी कारण से वह हमेशा शिव जी के सामने बैठते हैं। वहीं मंदिर से बाहर या गर्भगृह से बाहर बैठने का कारण विवाह। शिव जी विवाहित हैं। भले ही शिव मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की प्रतिमा हो या न हो लेकिन अर्धनारेश्वर के रूप में वह हमेशा साथ ही हैं और एक दूसरे में समाए हुए हैं। इसी कारण से नंदी गर्भ गृह के अंदर या मंदिर के अंदर स्थापित नहीं हैं। क्योंकि नंदी जी के इष्ट के साथ नंदी जी की माता स्वरूप मां पार्वती भी विद्यमान हैं। हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष में महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। इस साल महाशिवरात्रि 8 मार्च, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस बार महाशिवरात्रि के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं, जो इस बार की महाशिवरात्रि को खास बना रहे हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव योग, सिद्ध योग और श्रवण नक्षत्र का योग रहेगा।महाशिवरात्रि 2024 शुभ मुहूर्त?: हिन्दू पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि का आरंभ 8 मार्च को रात 9 बजकर 57 मिनट से होगा. चतुर्दशी तिथि का समापन 9 मार्च की शाम को 6 बजकर 17 मिनट पर होगा. पूजा का शुभ मुहूर्त, रात 12 बजकर 7 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक होगा. व्रत का पारण मुहूर्त, 9 मार्च की सुबह 06 बजकर 37 मिनट से दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।इस महाशिवरात्रि पर बन रहे हैं ये शुभ संयोग: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार महाशिवरात्रि पर कई प्रकार के शुभ संयोग बन रहे हैं। मान्यता है, महाशिवरात्रि के दिन इन दुर्लभ संयोगों में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने का फल कई गुणा ज्यादा बढ़कर मिलता है। इस महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव योग, सिद्ध योग और श्रवण नक्षत्र योग जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं।इस महाशिवरात्रि पर बन रहे शुभ संयोग का समय: सर्वार्थ सिद्धि योग – सुबह 06 बजकर 38 मिनट से आरंभ होकर 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।शिव योग – 9 मार्च को सूर्योदय से रात्रि 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
सिद्ध योग – 9 मार्च की रात को 12 बजकर 46 मिनट से शुरू और 08 बजकर 32 मिनट तक समापन।
श्रवण नक्षत्र- सुबह के 10 बजकर 41 मिनट तक।
इन सब संयोग का धार्मिक महत्व जानें: महाशिवरात्रि के दिन बनने वाले योगों का विशेष महत्व माना जाता है। माना जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।महाशिवरात्रि पर शिव योग बनना भी बेहद शुभ माना जाता है।इस योग में पूजा पाठ, ध्यान और मंत्र जप करना कल्याणकारी माना जाता है। इस शुभ समय में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। माना जाता है कि सिद्ध योग भगवान गणेश से जुड़ा हुआ है और इस शुभ योग में कार्य करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी, शनि देव को माना जाता है। यह नक्षत्र अपने शुभ प्रभाव के लिए जाना जाता है, इसलिए श्रवण नक्षत्र में किए गए कार्य का फल भी शुभ ही प्राप्त होता है। रिपोर्ट अशोक झा