भाजपा बंगाल से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को उखाड़ फेंकने का इरादा लेकर कर रही है काम

– सीएए को लेकर आर-पार के मूड में है पार्टी के शीर्ष नेता
कोलकाता: भाजपा इस बार पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को उखाड़ फेंकने का इरादा लेकर काम कर रही है। उसे पता है कि वामपंथी दल और कांग्रेस का आधार इस राज्य से लगभग खत्म हो गया है। ऐसे में अगर टीएमसी को उखाड़ दिया जाए तो इस राज्य में भी भाजपा की सरकार आसानी से बन सकती है।पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। यह राज्य भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया और पहली बार देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब भी पश्चिम बंगाल से उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। बमुश्किल दो सीटों पर खाता खुल सका था। पर, भाजपा निराश नहीं हुई और अगले चुनाव की तैयारी में जुट गई। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें बढ़कर डेढ़ दर्जन तक पहुंच गईं। ये परिणाम भाजपा के लिए उत्साहजनक रहे।
आम आदमी के बीच बने रहे भाजपा कार्यकर्ता: इसके बाद उसने और ताकत के साथ कार्यकर्ताओं की मदद से पश्चिम बंगाल की जनता के दिलों में जगह बनाने का अभियान शुरू किया। लगातार उसके कार्यकर्ता आम लोगों के बीच बने हुए थे। इसका फायदा साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मिला। पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास में पहली बार भाजपा को विधान सभा में 77 सीटें मिलीं। हालांकि भाजपा ने सरकार बनाने के इरादे से तैयारी की थी। भगवा दल टारगेट तो नहीं अचीव कर पाई लेकिन इन परिणामों ने उसका उत्साह जरूर बढ़ाया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस चुनाव में भाजपा के सुवेंदु अधिकारी से चुनाव हार गईं थीं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भाजपा के पास इससे पहले बंगाल की विधानसभा में केवल तीन सदस्य थे। इस तरह विधानसभा में उसके 3 से 77 सदस्य हुए और लोगसभा में 2 से बढ़कर 18 सदस्य पहुंच गए।।भाजपा को यह स्पष्ट लगता है कि यही वह समय है कि जब और ताकत से जुटकर लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत बढ़ा ली जाए। इससे साल 2026 के विधानसभा चुनावों का रास्ता भी साफ होगा और मोदी के 400 पार नारे को भी बल मिलेगा। क्योंकि एनडीए को 400 और भाजपा को 370 का आंकड़ा पाने की राह में पश्चिम बंगाल की बड़ी भूमिका हो सकती है। साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारत में ज्यादातर सीटें जीत ली थीं। कर्नाटक को छोड़कर अन्य दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा केरल उसके लिए अभी भी अभेद्य किले के रूप में ही बने हुए हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। यहां से सीटें बढ़ने का मतलब होगा कि भाजपा अपने लक्ष्य 370 के करीब होगी, ऐसा अनुमान पदाधिकारी लगा रहे हैं। भाजपा चाहती है कि लोकसभा में इस बार कम से कम 30-32 सीटें उसके खाते में आएं। उसे लगता है कि इस बार यह आसानी से हो जाएगा क्योंकि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का वह जादू अब नहीं रहा। संदेशखाली जैसी घटनाओं के अलावा अनेक घोटाले और उनमें लगातार केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के हौसले भी पस्त हैं। केंद्रीय एजेंसियों के हाथ ममता बनर्जी के भाई अभिषेक तक भी पहुंच गए हैं।
सीएए का यहीं मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा: CAA यानी नागरिकता कानून का सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को इसी राज्य में मिल सकता है। क्योंकि मतुआ और राजवंशी समुदाय के जो लोग लंबे समय तक नागरिकता की मांग कर रहे थे। यह समुदाय पश्चिम बंगाल की कम से कम 15 सीटों पर निर्णायक तथा अन्य कई सीटों पर मददगार साबित होता रहा है। इतिहास गवाह है कि वामपंथी दल जब यहां सत्तारूढ़ हुए तो इसी समुदाय ने सीधी मदद की और ममता बनर्जी के सत्तारूढ़ होने में भी इसी समुदाय ने अहम रोल निभाया था। अब वर्षों पुरानी इस समुदाय की नागरिकता की मांग पूरी करके केंद्र सरकार ने इस समुदाय को अपने प्रभाव में ले लिया है। साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने यह वादा इस समुदाय से किया था और इसका लाभ उसे तुरंत मिल गया था। अब जब नागरिकता कानून नए सिरे से लागू हो गया है तो इसका सीधा लाभ पश्चिम बंगाल में उसे मिल सकता है, देश के बाकी हिस्सों में भी मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। मतों का ध्रुवीकरण इस चुनाव में बहुत तेज होगा, जिसका लाभ भाजपा उठाने को तैयार दिखाई देती है। इस तरह लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए सत्ता का सेमीफाइनल हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी लक्ष्य के मुताबिक अगर 30-32 सीटें लेकर लोकसभा में आ गई तो उसका अगला लक्ष्य ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंकना होगा। साल 2026 में विधानसभा चुनाव है। पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने के लिए 148 विधायकों की जरूरत होती है। इस विधानसभा में भाजपा के पास 77 हैं। यह संख्या तीन से 77 हुई थी, इसलिए भाजपा को भरोसा है कि वह इस बार पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ होने में कामयाब होगी। भाजपा ने पश्चिम बंगाल की चुनावी कैंपेन भी अलग तरीके से बनाने की तैयारी की है। नेशनल कैंपेन के साथ ही स्थानीय इनपुट के आधार पर चीजें तैयार की जा रही हैं। इसमें राज्य सरकार के भ्रष्टाचार की कहानियां, घपले-घोटाले का सिलसिलेवार विवरण, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की ओर से महिलाओं के साथ अत्याचार समेत अनेक मुद्दे शामिल किए जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। यह लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल में ‘दीदी बनाम मोदी’ होगा। देखना रोचक होगा कि किसे कितनी सफलता मिलती है?शाह का कहना था कि चुनाव तक विरोध किया जा रहा है, उसके बाद सारे राज्य सीएए पर सहयोग करेंगे. शाह ने यह भी कहा कि राज्यों को सीएए लागू होने से रोकने का अधिकार भी नही है और इस प्रक्रिया से जुड़े कामकाज को सिर्फ भारत सरकार से जुड़े अधिकारी ही पूरा करें। एक इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा, “मैं ममता बनर्जी से अपील करना चाहता हूं कि वो सीएए को राजनीति का मंच न बनाएं। कृपया बांग्लादेश से आए बंगाली हिंदुओं का विरोध न करें। वो खुद भी बंगाली हैं। मैं उन्हें खुली चुनौती दे रहा हूं कि वो हमें बताएं कि सीएए अधिनियम में कौन सा खंड किसी की नागरिकता छीन रहा है। वह वोट के लिए लोगों के बीच सिर्फ डर पैदा कर रही है और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन पैदा कर रही है। गृहमंत्री शाह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना करते हुए कहा, “आप राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर राजनीति कर रही हैं। लोग आपके साथ खड़े नहीं है। सच्चाई तो यह है कि ममता बनर्जी को शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच का अंतर नहीं पता है।दरअसल सीएए को लेकर हो रहे विवाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि वह पश्चिम बंगाल में सीएए को लागू नहीं होने देंगी। इसके साथ उन्होंने सीएए को लोकसभा चुनाव के लिए केंद्र सरकार की नौटंकी करार दिया था और कहा था कि लोग सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन न करें अन्यथा उनकी नागरिकता छीन जाएगी और वो “अवैध प्रवासियों” की श्रेणी में आ जाएंगे।इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने वाले कानून पर आपत्ति जताने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी जमक निशाना साधा। अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के फैसले को “बहुत खतरनाक” बताते हुए कहा था कि सीएए देश के पक्ष में नहीं है। उन्होंने दावा किया था कि इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से अधिक से अधिक लोगों का पलायन भारत में होगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि जब इतनी बड़ी संख्या में लोग अचानक आएंगे तो उन्हें बसाने के लिए जगह की आवश्यकता होगी और इससे अराजकता की स्थिति पैदा होने की संभावना है। कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगा और चोरी, डकैती और बलात्कार जैसे अपराध में बढ़ोतरी हो सकती है।।गृहमंत्री अमित शाह ने आप संयोजक केजरीवाल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि अगर केजरीवाल वास्तव में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए।उन्होंने कहा, “अरविंद केजरीवाल इस बात से अनजान हैं कि ये सभी लोग पहले ही हमारे देश में शरण ले चुके हैं। वे भारत में रह रहे हैं, हम उन्हीं लोगों को नागरिकता दे रहे हैं, जो 2014 तक हमारे देश में आ गए हैं और अगर उन्हें इतनी ही चिंता है तो वो बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में बात क्यों नहीं करते? वो रोहिंग्याओं के खिलाफ विरोध क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे वोट-बैंक की राजनीति कर रहे हैं। दिल्ली में चुनाव के दौरान उन्हें बहुत कठिन समय का सामना करना पड़ेगा। यही कारण है कि वह वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। क्या रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारी नौकरियां नहीं ले रहे हैं? वह सिर्फ जैन, बौद्ध और पारसियों के अल्पसंख्यकों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।”।अमित शाह ने आगे कहा कि केजरीवाल को उन लोगों से कोई सहानुभूति नहीं है, जो अपने देशों में प्रताड़ित होकर भारत में शरण लिये हुए हैं। उन्होंने कहा, “केजरीवाल देश के विभाजन की पृष्ठभूमि भूल गए हैं। ये शरणार्थी अपनी लाखों की संपत्ति छोड़कर भारत में आए थे। हम उनकी समस्याएं क्यों नहीं सुनेंगे? उन्हें यहां नौकरी और शिक्षा नहीं मिलती है। हम उनके प्रति सहानुभूति क्यों नहीं व्यक्त करेंगे। आखिर देश को विभाजित करने का निर्णय उनका नहीं था। यह कांग्रेस ने निर्णय लिया था और उन्होंने उन्हें नागरिकता देने का वादा किया था। अब वे अपने वादों से पीछे हट रहे हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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